Government Medical College Haldwani : ऑल इंडिया की 24 सीटें स्टेट कोटे को आवंटित
Government Medical College Haldwani राजकीय मेडिकल कॉलेज में ऑल इंडिया की 24 सीटें स्टेट कोटे के लिए आवंटित कर दी गई हैं।
हल्द्वानी, जेएनएन : राजकीय मेडिकल कॉलेज में ऑल इंडिया की 24 सीटें स्टेट कोटे के लिए आवंटित कर दी गई हैं। इससे राज्य के युवाओं को स्पेशलिस्ट डॉक्टर बनने का मौका मिलेगा। ऑल इंडिया की 32 सीटों में से केवल 18 में दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है।
मेडिकल कॉलेज में 14 विभागों में एमडी व एमएस की 65 सीटें हैं। इसमें से 32 ऑल इंडिया और 33 स्टेट कोटे के लिए आवंटित हैं। ऑल इंडिया में प्रवेश प्रक्रिया पूरी होने से अब 24 सीटों में भी स्टेट कोटे से ही प्रवेश होंगे। बुधवार से प्रवेश प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। स्पेशलिस्ट बनने के लिए 12 डॉक्टरों ने प्रवेश ले लिया है। राजकीय मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. सीपी भैंसोड़ा ने बताया कि प्रवेश प्रक्रिया 31 जुलाई तक चलती रहेगी।
नॉन क्लीनिकल में बढ़ेंगे प्रवेश
राज्य सरकार ने इस बार नॉन क्लीनिकल में प्रवेश के लिए शुल्क कम दिया है। जहां पिछले वर्ष तक प्रतिवर्ष पांच लाख रुपये भरना पड़ता था, वहीं इस बार एक लाख रुपये कर दिया गया है। अगर तीन साल पर्वतीय क्षेत्रों में नौकरी का बांड भरते हैं तो यह शुल्क मात्र 60 हजार रुपये प्रतिवर्ष होगी। इसलिए इस बार नॉन क्लीनिकल विभाग कम्यूनिटी मेडिसिन, फार्माकोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री, फॉरेंसिक साइंस आदि में प्रवेश की संभावना बढ़ गई है।
आधा वेतन मिलने से परेशान डॉक्टर
पीएमएस के जरिये मेडिकल कॉलेज में पीजी करने पहुंचे डॉक्टर परेशान हैं। उन्हें पूरा वेतन नहीं मिल रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी पूरा वेतन दिए जाने की घोषणा कर चुके हैं। इसके बावजूद अभी तक कुछ नहंी हुआ। मेडिकल कॉलेज में ही ऐसे 20 डॉक्टर हैं, जो स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हैं। अब एमडी व एमएस का कोर्स करने के लिए मेडिकल कॉलेज में हैं। इन्हें लगभग 32 हजार रुपये ही वेतन दिया जा रहा है। जबकि दूसरे विद्यार्थियों को 60 हजार रुपये तक वेतन मिल रहा है।
आखिर कैसे भरें चार लाख शुल्क
राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी व दून में सरकार ने एमबीबीएस कोर्स के लिए बांड व्यवस्था खत्म कर दी है। जहां पहले केवल 50 हजार रुपये प्रति वर्ष शुल्क भरना पड़ता था, वहीं अब चार लाख रुपये भुगतान करना पड़ता है। इसके लेकर अभिभावक परेशान हैं। इसके लिए कई बार मुख्यमंत्री से लेकर अन्य जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अभिभावकों का कहना है कि उत्तराखंड में सबसे अधिक शुल्क लिया जा रहा है। यह ठीक नहीं है।
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