Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आस्‍था और परंपरा के खूबसूरत रंगों की दुनिया है ऐपण, जानिए इस कला के बारे में

    By Skand ShuklaEdited By:
    Updated: Sun, 28 Oct 2018 09:17 PM (IST)

    त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है। उत्साह भरे माहौल को और अधिक रौनक भरा बनाने के लिए आइए जानते हैं कुमाऊंनी लोक चित्रकला ऐपण को।

    आस्‍था और परंपरा के खूबसूरत रंगों की दुनिया है ऐपण, जानिए इस कला के बारे में

    हल्द्वानी, सतेन्‍द्र डंडरियाल : त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है। उत्साह भरे माहौल को और अधिक रौनक भरा बनाने के लिए आइए जानते हैं कुमाऊंनी लोक चित्रकला ऐपण को। जिससे हम घर द्वार से लेकर घर के पूजा स्थल तक को एक सौन्दर्यात्मकता और आध्यात्मिकता प्रदान कर सकते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    संपूर्ण भारत में भू-चित्रण के विविध स्वरूप अलग-अलग नामों से अस्तित्व में है। राजस्थान में इन्हें मॉडला ,  महाराष्ट्र में रंगोली, बंगाल त्रिपुरा व आसाम में अल्पना, उत्तर प्रदेश में साची और चौक पुरना, केरल में कोल्लम, बिहार में अरिपन ,आंध्र प्रदेश में मुग्गु  तथा उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में  ऐपण  नाम से जाना जाता है।

    महिलाओं ने लोक चित्रकला को संजोया

    कुमाऊं की लोक कलाएं अन्य प्रांतों के जनमानस को अपनी ओर अनायास ही आकर्षित करती हैं। क्योंकि यहां पर अलग-अलग प्रांतों से आकर बसे लोगों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत, आचार विचार व मान्यताओं के मिले-जुले स्वरूप से एक नवीन संस्कृति को जन्म दिया। लोक चित्रकला को जीवित रखने और उसमें नित नए तत्वों को जोड़ने का श्रेय यहां की महिलाओं को जाता है। जो व्रत, त्योहार और उत्सवों पर आंगन दीवार और घर की चौखट को विभिन्न सुंदर आकृतियों से सजाकर मंगलमय भावनाओं की कामना करती हैं। यह लोक शैली पूर्णता लोक मान्यताओं पर आधारित है। महिलाएं अपने मायके और ससुराल में इनका अंकन करते-करते पारंगत हो जाती हैं और अगली पीढ़ी स्वयं ही इसे आत्मसात करती चलती है।

    ऐपण में बनाए जाने वाली आकृतियां

    ज्यादातर ऐपण में कृष्ण को अपने कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाए हुए दिखाया जाता है। कृष्ण के साथ उनके ग्वाल सखा व गाय भी बनाई जाती है। एक अन्य ऐपण, जिसे दीपावली और गोवर्धन पूजा के लिए खासतौर से बनाया जाता है, उसमें अष्टदल कमल के आसन पर विराजमान महालक्ष्मी के चित्र के नीचे गोवर्धन पट्टा भी समाहित होता है। इसके अलावा सूर्य, चंद्रमा, गणेश व रिद्धि के अतिरिक्त दधि मंथन करते हुए और गायों के बच्चों को चराते हुए गोपियों का भी चित्रण किया जाता है।

    हरबोधनी एकादशी पर खास ऐपण

    दीपावली के 12 दिन बाद पढऩे वाली कार्तिक शुक्ल एकादशी को हरबोधनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वर्षा ऋतु के चातुर्मास में सोए हुए देवगण इस दिन जागृत हो जाते हैं। हरबोधिनी एकादशी की पूजा के लिए विशेष प्रकार के ऐपण पट्टे का निर्माण किया जाता है। जिसमें लक्ष्मी नारायण गन्ने के पेड़ को स्पर्श करते हुए बनाए जाते हैं।

    इस्तेमाल होते हैं प्राकृतिक रंग

    गेरू से लिपि भूमि और दीवार पर ऐपण भीगे हुए चावल को पीसकर उसके घोल से तैयार रंगों बनाया जाता है। इसके अलावा चावल के रंग के साथ थोड़ी हल्दी मिलाकर ऐपण बनाने का चलन है। रंगीन पट्टों के निर्माण के लिए रंगों को परंपरागत तरीके से बनाया जाता है। जिन्हें महिलाएं पहले घर पर तैयार किया करती थी। पीला रंग टेसू के फूलों से, हल्दी या किलमोड़े  की छाल को पानी में उबालकर तैयार किया जाता था। लाल रंग पिठ्या से,  बुरास के फूलों से, काफल की  छाल से तैयार किया जाता था। हरा रंग गेंदे के पत्तों से, कच्चे बिनोली फल के बाहर के छिलके से, धतूरे के पत्तों से तैयार किया जाता था। वर्तमान में इन प्राकृतिक रंगों का स्थान आर्टिफिशियल कलर और केमिकल युक्त पेंट ने ले लिया है। साथ ही बाजार में ऐपण के रेडीमेड स्टीकर भी मिलने लगे हैं।

    कला को लोकप्रिय बनाने में कलाकारों का योगदान

    ऐपण कला को लोकप्रिय बनाने में स्थानीय महिलाओं व कलाकारों का महत्वपूर्ण योगदान है। महिला कलाकारों में मीरा जोशी, विमला साह और हरिप्रिया साह का नाम प्रमुख है, जबकि पुरुष वर्ग में सबसे पहले लिखित रूप में ऐपण को सामने लाने वाले का श्रेय पंडित नाथू राम उप्रेती को जाता है। उनके बाद बालादत्त पांडेय ने संग्रह का कार्य किया। प्रसिद्ध चित्रकार पदमश्री डॉ. यशोधर मठपाल ने भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

     

    बनाए जाते हैं देवी के चरण

    परंपरागत रूप से ऐपण बनाने के लिए पहले फर्श को गोबर से अच्छी प्रकार लीप कर समतल बना लिया जाता है। आमतौर पर यह कच्चे मकानों पर की जाने वाली प्रक्रिया है, जबकि अब पक्के मकानों में ऐपण के लिए पेंट और प्लास्टिक स्टीकर का सहारा लिया जा रहा है। दीपावली पर बनने वाले लक्ष्मी के चरण बड़े ही कलात्मक ढंग से बनाए जाते हैं यह रेखा विहीन चरण इतने सुंदर और एक जैसे होते हैं। इनके निर्माण में ब्रश का इस्तेमाल नहीं होता। महिलाएं अपने दोनों हाथों की मु_ी बांधकर चावल के घोल से तैयार विस्वार (रंग) में डुबाती हैं और फिर मुठियों को पास पास रखकर पैरों के चिन्ह बना लेती हैं। दोनों चिन्हों के ऊपर पांच पांच बिंदी  अंगुली से रखकर अंगुली और अंगूठा बना देती है।