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    कुमाऊं के बाद गढ़वाल में पहली बार दिखीं आर्किड की दुर्लभ प्रजातियां, उत्तराखंड में हैं 244 प्रजाति

    Updated: Thu, 27 Nov 2025 07:35 PM (IST)

    उत्तराखंड में आर्किड की दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण में बड़ी सफलता मिली है। नए शोध में गढ़वाल में पहली बार चार दुर्लभ आर्किड प्रजातियां मिली हैं, जिससे राज्य की जैव विविधता की पुष्टि होती है। पिनालिया बाइपंक्टाटा और प्लेटेंथेरा जापोनिका जैसी प्रजातियां भी महत्वपूर्ण खोज हैं। यह शोध आर्किड संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तराखंड में आर्किड की 244 प्रजातियां पाई जाती हैं।

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    आर्किड के शोध और संरक्षण की दिशा में इसे माना जा रहा बड़ी सफलता। आर्काइव

    जागरण संवाददाता, हल्द्वानी। आर्किड फूल के संरक्षण की दिशा में बड़ी सफलता मिली है। नए शोध में राज्य में नई जगहों पर दुर्लभ प्रजाति के आर्किड मिले हैं। अनुसंधान में मिले कुल 11 महत्वपूर्ण प्रजातियों के आर्किड में से चार पहली बार गढ़वाल में दिखे। इससे पश्चिम हिमालय की असाधारण जैव विविधता की संपन्नता की भी पुष्टि होती है।

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    उत्तराखंड वानिकी अनुसंधान संस्थान के शोध अधिकारी मनोज सिंह के अनुसंधान में उत्तर पश्चिम हिमालय में दूसरी बार आर्किड की पिनालिया बाइपंक्टाटा प्रजाति मिली। इससे पहले 2023 में यह दुर्लभ प्रजाति पिथौरागढ़ में मिली थी, इसके बाद यह चमोली में मिली है। इसी तरह प्लेटेंथेरा जापोनिका प्रजाति सात दशक बाद उत्तराखंड में मिली है। इससे पहले यह 1951 में अल्मोड़ा में मिली थी। इसके बाद चमोली में इसे देखा गया है।

    ऐसे ही कीरोस्टाइलिस ग्रिफिथी भी राज्य में आर्किड की दुर्लभ प्रजाति है। यह 1983 में नैनीताल के सातताल और 2023 में नैनीताल के बजून में मिली थी। अब यह चमोली की मंडल घाटी में मिली है, जो इसके पश्चिम की ओर फैलाव को दर्शाता है। वहीं हेमिपिलिया सेकेंडीफ्लोरा प्रजाति भी पहली बार गढ़वाल में मिली है। फील्ड रिसर्च के दौरान इसे चमोली के औली से संगृहीत किया गया। इससे पहले यह 1986 में पिथौरागढ़ के सोसा गांव और 2023 में चौंदास घाटी में मिली थी। बता दें कि दुनियाभर की 28 हजार आर्किड प्रजातियों में से 1300 भारत में हैं, जबकि 244 उत्तराखंड में हैं।

    उत्तराखंड वानिकी अनुसंधान संस्थान में वन वर्धनिक नैनीताल पर्वतीय विवेक तिवारी ने शोध को आर्किड के संरक्षण को लेकर अहम बताया। उन्होंने कहा कि मुख्य वन संरक्षक डा. तेजस्विनी अरविंद पाटिल के निर्देशन में इस तरह के शोध लगातार हो रहे हैं।