उत्तराखंड में परिंदों का अद्भुत संसार, पहाड़ के जंगलों में विदेशी मेहमानों की भी दस्तक
उत्तराखंड की वादियां प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन से काफी हद तक महफूज हैं! देशभर की 1250 परिंदों की प्रजातियों में से 630 प्रजातियों की यहां मौजूदगी यही सुखद संकेत दे रही है।
अल्मोड़ा, दीप सिंह बोरा : उत्तराखंड की वादियां प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन से काफी हद तक महफूज हैं! देशभर की 1250 परिंदों की प्रजातियों में से कुमाऊं व गढ़वाल के जंगलों में लगभग 630 प्रजातियों का खुलासा तो यही सुखद संकेत दे रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो प्रदूषण मुक्त घाटियों, पहाडिय़ों व तलहटी से सटे मैदानी वनक्षेत्रों में 150 से 200 किस्म के मेहमान पक्षी भी पहुंच रहे हैं।
वर्ष 2018 में रानीखेत महोत्सव में इको-टूरिज्म विंग देहरादून, वन विभाग व पर्यटन विभाग की संयुक्त पहल पर पक्षी अवलोकन यानी बर्ड वॉचिंग अभियान चलाया गया। रानीखेत से शुरू यह कार्यक्रम पक्षियों के प्रति प्रेम व संरक्षण का संदेश दे पूरे जनपद फिर राज्य भर में चला। इससे पूर्व भी कॉर्बेट नेशनल पार्क से सटे मरचूला, ऊधम सिंह नगर के हरिपुरा-बौर जलाशय, छोटी हल्द्वानी, अल्मोड़ा के साथ ही गढ़वाल में दल ने पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों का पता लगाया।\
इधर वैश्विक महासंकट के मद्देनजर लागू लॉकडाउन में मानवीय गतिवधियां थम सी गई। वहीं वनाग्नि की घटनाएं भी न के बराबर रही। ऐसे में धूल धुएं के गुबार से निजात क्या मिली परिंदों को शांत व प्रदूषणरहित आबोहवा में आजाद उड़ान का मौका भी मिल गया।
साइबेरियन पक्षियों को भी भाग गई साफ आबोहवा
अंतरराष्ट्र्रीय नेचर फोटोग्राफर एवं पद्मश्री अनूप साह के मुताबिक पूरे देश में 1250 पक्षी प्रजातियां हैं। उत्तराखंड में 630 किस्में चिह्नित की गई हैं। जिनकी पर्यावरण व पारिस्थितिक तंत्र में खास योगदान भी है। बकौल पद्मश्री अनूप साह, यह तादाद राज्य के पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों में करीब-करीब बराबर है। गर्मी व सर्दी में तकरीबन 150 से 200 पक्षी प्रजातियां साइबेरिया व अन्य देशों से माइग्रेट कर यहां पहुंचती हैं। जो मौसम अच्छा होने के कारण अपने वतन देर से लौटे।
बिनसर सेंचुरी में ही 200 प्रजातियां
अल्मोड़ा की बिनसर सेंचुरी में ही 200 पक्षी प्रजातियां मिली हैं। इनमें 65 मेहमान पक्षी हैं। 50 ग्रीष्म तो 15 शरदकाल में यहां प्रवास करती हैं।
पर्यटन नगरी रानीखेत में 600 रंगबिरंगे परिंदे
रानीखेत में मिनी कॉर्बेट दलमोटी, कालिका, चौबटिया, भालू डैम के साथ ही गगास, कुंवाली, कुंजगढ़ व कोसी घाटी की वादियों में पक्षी अवलोकन के दौरान
अफसोस! फिर भी परिंदों के वजूद पर खतरा
- उच्च पहाड़ों का खूबसूरत वेस्टर्न ट्रेगोपैन व मोनाल परिवार के चीर फेजेंट पर संकट
- तराई-भाबर में सारस की तादाद में गिरावट
- अल्मोड़ा: बेशक पहाड़ की वादियां परिंदों के लिए मुफीद है। मगर मानवीय दखल से कुछ पक्षी प्रजातियां संकट में पडऩे लगी है। हिमालयन माउंटेन क्वेल के विलुप्त होने के बाद अब वेस्टर्न ट्रेगोपैन तथा राज्य पक्षी मोनाल के परिवार का चीर फेजेंट भी वजूद बचाने को जूझ रहा है।
- पश्चिमी हिमालया में 2400 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाने वाला वेस्टर्न ट्रेगोपैन पक्षी का दीदार बमुश्किल हो रहा है। यही हस्र लंबी पूछ वाले चीर फेजेंट का भी है। इसके अलावा मैदानी क्षेत्रों में प्रदूषण व कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो रहे खेतों ने सारस को संकट में डाल दिया है।
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