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    टारगेट थेरेपी है बीमारी का पक्का इलाज

    By Edited By:
    Updated: Sun, 14 Feb 2016 08:15 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : खून से संबंधित किसी भी बीमारी के इलाज के लिए टारगेट थेरेपी की आवश्यकता

    जागरण संवाददाता, हल्द्वानी : खून से संबंधित किसी भी बीमारी के इलाज के लिए टारगेट थेरेपी की आवश्यकता है। इसका तात्पर्य उचित निदान से है, जिससे बेहतर इलाज संभव हो सके। इसके लिए बोन मैरो (अस्थि मज्जा) की उचित जांच भी जरूरी है। फिलहाल इस तरह की जांच दिल्ली व मुंबई जैसे बड़े शहरों में हो रही है। इसकी आवश्यकता हल्द्वानी जैसे छोटे शहरों में भी महसूस होने लगी है। यह विमर्श रविवार को राजकीय मेडिकल कालेज की ओर से आयोजित देशभर के जाने माने पैथोलॉजिस्ट की मौजूदगी में हुआ।

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    रामपुर रोड स्थित एक होटल में आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में मौलाना आजाद मेडिकल कालेज नई दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर डॉ. तेजिंद्र सिंह ने कहा कि टारगेट थेरेपी के लिए मार्कर्स की आवश्यकता है। इससे 100 मरीजों की जांच होती है। यह जांच बीमारी के वास्तविक कारण को स्पष्ट कर देती है। इसके बाद से ही मरीज का इलाज करना आसान हो जाता है। डॉ. सिंह कहते हैं, अगर किसी व्यक्ति में हिलोग्लोबिन कम है, तो यह क्यों हैं। इसके पीछे क्या कारण है। इसे जाने के लिए बोन मैरो जांच की आवश्यकता है। इस जांच से कारण स्पष्ट हो जाता है। खून से संबंधित जांच के लिए विशेष नीडिल का प्रयोग होता है। इसे जमशीदी नीडिल कहते हैं। उन्होंने बताया कि अब जागरूकता बढ़ रही है। डॉक्टर भी इस तरह की जांच करने के लिए आगे आ रहे हैं।

    मुंबई से पहुंचे प्रो. सुमित गुजराल, पीजीआइ चंडीगढ़ के डॉ. प्रशांत शर्मा, एसजीआरआर देहरादून के प्रो. संजीव किशोर, आरएमसी बरेली के प्रो. रंजन अग्रवाल एचआइएमएस देहरादून के प्रो. अनुराधा कुसुम व एम्स ऋषिकेश की डॉ. नेहा सिंह ने बोन मैरो से संबंधित बीमारियों के निदान पर व्याख्यान दिया। संयोजक पैथोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नवीन थपलियाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

    छह से साल भर का प्रशिक्षण

    बोन मैरो की अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धति को समझने के लिए छह से साल भर के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। डॉ. तेजिंद्र सिंह बताते हैं कि राजकीय मेडिकल कालेज हल्द्वानी यह पहल कर सकता है। ब्लड डिजीज सेंटर स्थापित हो सकती है। यहां से फिर प्रदेशभर के मेडिकल कालेजों के साथ ही अन्य डॉक्टर प्रशिक्षण ले सकते हैं। जिससे मरीजों को इलाज के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा।