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    Haridwar Wildlife Rescue: आबादी के बीच पहुंचे वन्यजीवों को नया जीवन दे रही ये टीम, सूचना मिलते ही पहुंचती है तुरंत

    Updated: Tue, 01 Jul 2025 07:26 PM (IST)

    हरिद्वार वन प्रभाग की रक्षक टीम आबादी में आए वन्यजीवों को बचाने में तत्पर है। पिछले पाँच वर्षों में इस टीम ने 7430 से अधिक वन्यजीवों को रेस्क्यू किया है। शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण वन्यजीव भोजन और पानी की तलाश में शहरों की ओर आ रहे हैं। टीम सांप लंगूर हिरण नीलगाय मगरमच्छ और गुलदार जैसे जीवों को सुरक्षित रूप से रेस्क्यू करती है।

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    आबादी के बीच पहुंचे वन्यजीवों को नया जीवन दे रही ये टीम

    शैलेंद्र गोदियाल, हरिद्वार। किसी घर की सीढ़ियों पर कोबरा फुफकारे, चाइनीज मांझे में फंसा पक्षी जीवन के लिए छटपटा रहा हो, तालाब के दलदल में नीलगाय व सांभर फंसा हो अथवा किसी के खेत-खलियान में अजगर या मगरमच्छ पहुंच गया हो, हरिद्वार वन प्रभाग की रक्षक टीम सूचना मिलते ही तत्काल रेस्क्यू के लिए पहुंच जाती है।

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    यह टीम वर्षों से आबादी के बीच पहुंचे वन्यजीवों को सुरक्षित रेस्क्यू कर प्यार, धैर्य व सम्मान के साथ वापस उन्हें उनके प्राकृतिक वास में पहुंचाने का कार्य कर रही है। पिछले पांच वर्षों में रक्षक टीम 7,430 वन्यजीवों का जीवन बचा चुकी है। वन विभाग के अनुसार वन्यजीव रेस्क्यू का यह प्रदेश ही नहीं, देश के बड़े शहरों में भी सबसे बड़ा आंकड़ा है।

    जंगल सिमटते हैं तो वन्य जीव आबादी का रुख करते हैं। इससे या तो मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ जाता है या फिर समय पर रेस्क्यू न होने के कारण वन्यजीवों को जान गंवानी पड़ती है। लेकिन, हरिद्वार के मामले में ऐसा नहीं है। यहां वन्यजीवों को सुरक्षित रेस्क्यू किए जाने रिकार्ड है। जबकि, अन्य शहरों की तरह हरिद्वार में भी शहरीकरण, औद्योगिक विस्तार और पर्यटन के चलते जंगल में वन्यजीवों के प्राकृतिक गलियारे प्रभावित हुए हैं।

    इन गलियारों से हाथी, हिरण, गुलदार आदि की आवाजाही होती है। लेकिन, वन्यजीव अब भोजन व पानी की तलाश में शहरों की चौखट तक आ पहुंचते हैं। कई बार तो वे खेत, स्कूल परिसर, गोदाम या घरों में घुस जाते हैं, लेकिन यहां वनकर्मी वन्यजीवों को बचाने के लिए ने केवल संवेदनशील, बल्कि सक्रिय भी है। भीड़भाड़ या ग्रामीण इलाकों से सुरक्षित रेस्क्यू कर जंगलों में छोड़े जाने के आंकड़े इसके प्रमाण हैं।

    अभियान के तहत सांप सबसे अधिक रेस्क्यू किए गए। इसके अलावा आबादी क्षेत्र में फंसे लंगूर, हिरण, नीलगाय, कछुआ, पक्षी, मगरमच्छ, गुलदार व अजगर सहित अन्य वन्यजीवों को भी बिना किसी हानि के रिहायशी क्षेत्रों से सुरक्षित बाहर निकाला गया। जो पक्षी और वन्यजीव चोटिल होते हैं, वन विभाग की टीम उनका विधिवित उपचार कर फिर उनके प्राकृतिक वास में छोड़ती है।

    मानवीय विस्तार की आक्रामक गति का परिणाम

    विशेषज्ञों के अनुसार वन्यजीवों का आबादी में पहुंचना उनका व्यवहार बदलना नहीं, बल्कि मानवीय विस्तार की आक्रामक गति का परिणाम है। हरिद्वार में धार्मिक पर्यटन, उद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण वे गलियारे, जो कभी वन्यजीवों की सुरक्षित आवाजाही के मार्ग थे, सड़क, इमारत व फैक्ट्रियों में तब्दील हो चुके हैं। गांवों के समीप जंगल सिमट गए हैं, झाड़ियां कट चुकी हैं और नदियों के किनारे तक बसागत हो गई है। इससे भोजन, पानी और आश्रय की तलाश में वन्यजीव मानव बस्तियों का रुख कर रहे हैं।

    पिछले पांच वर्षों में हरिद्वार के आबादी वाले क्षेत्र से रेस्क्यू हुए वन्यजीव

    वन्यजीव, कुल संख्या

    गुलदार (18), लकड़बग्घा (02), नीलगाय/ चीतल/सांभर/हिरण (428), सांप (5808), बंदर/लंगूर (383), मगरमच्छ (231), नेवला (09), पक्षी (236), मानिटर लिजर्ड (198), कछुआ (20), सिवेट कैट (97)

    हरिद्वार में वन्यजीवों को सुरक्षित उनके प्राकृतिक वास पहुंचाने के लिए हमारी रेस्क्यू टीम ने उत्कृष्ट कार्य किया है। किसी भी सूचना पर टीम तत्काल संवेदनशीलता और दक्षता के साथ कार्रवाई करती है। इसी कारण आज तक हरिद्वार में कोई बड़ी संघर्षजन्य घटना नहीं हुई। पिछले पांच वर्षों में रेस्क्यू का जो आंकड़ा सामने आया है, वह प्रदेश ही नहीं, देश के बड़े शहरों में भी सबसे बड़ा है। इसमें स्थानीय निवासियों की सतर्कता और सहयोग की भी अहम भूमिका है। -वैभव कुमार सिंह, डीएफओ, हरिद्वार