Updated: Thu, 14 Aug 2025 04:59 PM (IST)
Uttarkashi Disaster धराली आपदा के बाद उत्तरकाशी लौटना आसान नहीं था। रास्ते में कई बाधाएं थीं जैसे कि पैदल मार्ग का बंद होना और भूस्खलन। यात्रियों को पहाड़ी पर चढ़ना पड़ा और खतरनाक रास्तों से गुजरना पड़ा। सड़क की स्थिति खराब होने के कारण यात्रा और भी मुश्किल हो गई। आखिरकार वे उत्तरकाशी पहुंचने में सफल रहे। नीचे पढ़ें पूरी खबर।
शैलेंद्र गोदियाल, जागरण उत्तरकाशी। आपदाग्रस्त धराली से लौटने की ठानी तो वापसी की राह में शुरू से ही अधिक दुश्वारियां दिखने लगीं। लगा फिर से हम प्रकृति के प्रचंड रूप के बीच जीवन की सबसे कठिन परीक्षा देने निकल रहे हैं। यथार्थ से सामना हुआ तो राह और अधिक कठिन और जोखिमपूर्ण बन गई। रविवार को हम धराली पहुंचे थे। तबाही का मंजर सामने था।
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भागीरथी और खीरगंगा के उफनते प्रवाह के बीच प्रभावितों की सिसकियों में छिपी पीड़ा, खोज-बचाव में जुटी टीमों का अथक परिश्रम और घाटी के लोगों की अदम्य जिजीविषा…..सब कुछ एक साथ आंखों में उतर रहा था। सोमवार का दिन प्रभावितों की पीड़ा को सुनने और समझने में बीता। मंगलवार की सुबह धराली से उत्तरकाशी लौटने का इरादा किया।
हर्षिल पहुंचे तो पता चला कि सोनगाड़ और डबराणी के बीच दो स्थानों पर पैदल मार्ग बंद है। बालकंडार मंदिर से आगे 800 मीटर उत्तरकाशी की ओर भागीरथी का तेज प्रवाह मार्ग को लील चुका है और डबराणी मोटर पुल के पास पैदल रास्ता भी पूरी तरह टूट गया है। मजबूरन हम हर्षिल में ही ठहर गए। शाम करीब चार बजे डबराणी से गंगोत्री तक संचार सेवाएं ठप हो गईं।
भागीरथी का उफनता शोर
घाटी का संपर्क ही देश-दुनिया से टूट गया। रात भर भागीरथी के उफनते शोर के बीच बेचैनी झेलते हुए सुबह का इंतजार किया। बुधवार भोर छह बजे पैदल ही उत्तरकाशी की ओर चल पड़े। कुछ किलोमीटर बाद सुक्की गांव निवासी अनूप राणा की बोलेरो मिल गई। वह हमें सोनगाड़ तक छोड़कर बिना कोई किराया लिए मुस्कुरा कर विदा हो गए। बालकंडार मंदिर के पास पहुंचे तो देखा, लगातार कटाव हो रहा है।
मुखबा निवासी मंदिर के पुजारी अमरकांत ने बताया कि सोमवार की रात और मंगलवार को जलस्तर में हुई बढ़ोतरी से कटाव अत्यधिक हो गया है, और मंदिर के पास का पैदल मार्ग कभी भी ध्वस्त हो सकता है। हमें आगे वही रास्ता मिला जिससे रविवार को धराली की ओर गए थे। अब वह रास्ता भागीरथी के प्रचंड उफान में समा चुका था। जूते-मोजे उतारकर, नदी के पवित्र जल को प्रणाम करते हुए हमने प्रवाह को किनारे-किनारे पार किया।
डबराणी पुल के निकट भूस्खलन क्षेत्र में पहुंचे तो यहां भी पैदल मार्ग पूरी तरह गायब था। पास खड़े एक मजदूर ने बताया कि सोमवार को ध्वस्त सड़क को बनाते समय एक बुलडोजर और उसका चालक नदी में समा गया। 200 मीटर पीछे लौटकर एक खड़ी पहाड़ी पर पगचिह्न मिले। इन्हीं पगचिह्नों पर चलते हुए हम झाड़ियों और कांटों के बीच से होकर चढ़ने लगे। कई जगह कपड़े उलझे, कांटों से छुड़ाए और 300 मीटर की कठिन चढ़ाई पार की। घने जंगल में रास्ता सिर्फ उतना ही था जितना पांवों ने बनाया हो। यहां न कोई पगडंडी, न कोई संकेत और न कोई सुरक्षा कर्मी।
नीचे झाड़ियों के बीच से भागीरथी की गर्जना सुनाई दे रही थी। उतराई में पत्थरों और घास का सहारा लेते हुए तो कभी बैठकर, कभी फिसलते हुए नीचे उतरने लगे। कई बार गिरते-संभलते हुए डबराणी पुल के पास की सड़क तक पहुंचे। वहां भूस्खलन जोन में एक बुलडोजर काम में लगा दिखा, उसकी धीमी गति और खतरनाक हालात को देखकर लगा कि गंगोत्री हाईवे शायद सितंबर से पहले खुलना संभव नहीं है। आगे चलने पर एक सरकारी बोलेरो दिखी लेकिन, उसके चालक ने बैठाने से मना कर दिया। गंगनानी से भी कोई वाहन डबराणी की ओर नहीं भेजा जा रहा है।
चेहरे पर सिस्टम के प्रति नाराजगी
सौभाग्य से हमें बीआरओ का डंपर मिल गया। इसके चालक ने हम पर दया कर डाले पर बैठने के लिए कह दिया। हम भी पर्वतारोहण करते हुए डाले पर सवार हो गए। डंपर के हिलते-डुलते सफर में लिम्मचा गदेरे का बेली ब्रिज पार किया, जिसके एंगल के सहारे हम रविवार को लिम्मचा गदेरा पार कर धराली पहुंचे थे। गंगनानी में काफी देर इंतजार के बाद धराली गांव के पूर्ण सिंह नेगी मिले। चेहरे पर सिस्टम के प्रति नाराजगी दिखी।
कहने लगे, तीन दिन से उत्तरकाशी मातली में हेलीकाप्टर का इंतजार किया, पर भेजा नहीं गया। अब सड़क और पैदल मार्ग से ही जा रहा हूं। गंगनानी से डबराणी तक जाने के लिए गाड़ी उपलब्ध नहीं है। दोपहर एक बजे मैक्स टैक्सी मिली, जिसने हमें नेताला भूस्खलन जोन तक पहुंचाया। नेताला में कीचड़ और दलदल से भरे उस क्षेत्र को पार कर, अंततः अपनी गाड़ी तक पहुंचे और उत्तरकाशी की ओर चल पड़े।
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