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जैविक खेती करके गोबर से सोना उगा रहे तेलूराम, जानिए इनके बारे में

किसान तेलूराम सैनी ने सभी के लिए मिसाल पेश की है। वह आज भी खेतों की जुताई में कभी भी ट्रैक्टर का सहारा नहीं लेते हैं बल्कि बैलों से ही अपनी 30 बीघा जमीन की जुताई करते हैं।

By Edited By: Published: Sun, 05 Jan 2020 11:46 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jan 2020 08:32 PM (IST)
जैविक खेती करके गोबर से सोना उगा रहे तेलूराम, जानिए इनके बारे में
जैविक खेती करके गोबर से सोना उगा रहे तेलूराम, जानिए इनके बारे में

हरिद्वार, बसंत कुमार। परंपरागत तकनीक से भी जुताई और बुआई की लागत कम की जा सकती है। यह सच कर दिखाया है बहादराबाद ब्लॉक के मीरपुर मुआवजरपुर के किसान तेलूराम सैनी ने। वह खेतों की जुताई में कभी भी ट्रैक्टर का सहारा नहीं लेते हैं, बल्कि बैलों से ही अपनी 30 बीघा जमीन की जुताई करते हैं। पशु आधारित खेती करके तेलूराम जैविक खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं। साथ ही जीरो जुताई खर्च पर फसलों की भरपूर पैदावार ले रहे हैं।

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तेलूराम सैनी खेतों में गन्ने से लेकर सब्जी, गेहूं आदि की फसलें अन्य किसानों की तरह ही लेते हैं। उनकी खास बात यह है कि जहां लोग खेतों की जुताई में हर फसल बोने के लिए सैकड़ों रुपये खर्च करते हैं, वहीं ट्रैक्टर पर निर्भर रहने की बजाए वह बैलों से समय पर खेतों की जुताई व फसलों की बुआई कर लेते हैं। ट्रैक्टर से बुआई करने पर एक बार में तीन सौ रुपये प्रति बीघा खर्च आता है। तेलूराम अपने गोवंश से मिलने वाले गोबर को खेतों में डालकर जमीन की उर्वरा शक्ति भी बनाए हुए हैं, जिससे वह रसायन खादों का प्रयोग भी बेहद ही कम करते हैं। इससे खेत की मिट्टी की सेहत भी अच्छी रहती है। इसके साथ ही वह गोबर गैस से शून्य खर्च पर रसोई में भोजन आदि का लाभ भी ले रहे हैं।

मुख्य कृषि अधिकारी विकेश कुमार सिंह यादव ने बताया कि किसान तेलूराम का प्रयास अच्छा है। ऐसा करके वह जुताई खर्च तो बचा ही रहे हैं, साथ ही वह पशु आधारित खेती करके जैविक खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं। रसायनिक खाद का इस्तेमाल न करने से खेत बंजर होने से भी बच जाएंगे। इससे खेतों से उत्पादन लंबे समय तक ज्यों का त्यों मिलता रहेगा।

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अक्षय ऊर्जा विभाग से मिली तेलूराम को प्रेरणा

अक्षय ऊर्जा विभाग की ओर से उन्हें वर्ष 2007 में राज्य सहायता पर बैलों से खेती करने के लिए कामधेनु ट्रैक्टर योजना (बैलों का ट्रैक्टर) से कृषि यंत्र उपलब्ध कराए गए थे, जिनमें जुताई के लिए हेरो और ट्रीलर देने के साथ ही गेहूं बोने की मशीन व पाटा आदि सामान उपलब्ध कराया गया था। यह सब जुताई यंत्र बैलों से ही संचालित होते हैं। तब से खेती में आत्म निर्भर रहने का संकल्प लेते हुए तेलूराम बैलों से ही खेतों की जुताई करते आ रहे हैं।

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