कब है शरद पूर्णिमा? इस बार व्रत रखने वालों को प्राप्त होगी चंद्र देव की विशेष कृपा
शरद पूर्णिमा इस बार विशेष है क्योंकि यह सोमवार को पड़ रही है जो चंद्र देव का दिन है। इस दिन व्रत करने वालों को चंद्र देव की विशेष कृपा मिलेगी। शरद पूर्णिमा को सभी पूर्णिमाओं में श्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी की उपासना करने से धन-धान्य की कमी नहीं होती। चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदें गिरती हैं इसलिए खीर बनाकर रखना शुभ होता है।

जागरण संवाददाता, रुड़की । शरद पूर्णिमा सोमवार के दिन पड़ने से इस बार खास होगी। क्योंकि सोमवार का दिन चंद्रमा का होता है और पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा की ही उपासना की जाती है। इसलिए इस बार पूर्णिमा का व्रत करने वालों को चंद्र देव की विशेष कृपा प्राप्त होगी। वहीं, वर्ष भर की 12 पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा को सबसे श्रेष्ठ स्थान दिया गया है।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस पूर्णिमा को रास पूर्णिमा, कौमुदी व्रत और कोजागर व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की परिसर स्थित श्री सरस्वती मंदिर के आचार्य राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी का प्राकट्य माना जाता है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज में गोपियों के साथ रासलीला की थी।
शरद पूर्णिमा के दिन जो भी व्यक्ति मां लक्ष्मी की उपासना करता है उसे धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। क्योंकि इस दिन मां लक्ष्मी रात्रि के समय पृथ्वी लोक पर भ्रमण करती हैं और रात्रि में जागरण करते हुए व्यक्ति को धन-धान्य का वरदान देती हैं। इसलिए इस व्रत को कोजागर व्रत भी कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि इस पूर्णिमा की दूसरी खास विशेषता यह है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत की बूंदे टपकती हैं। रात्रि के समय चंद्रमा की छाया में खीर बनाकर रखने से उसमें अमृत तत्व आ जाता है और यह खीर बड़े-बड़े रोगों में औषधि का भी काम करती है।
आचार्य राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि इस वर्ष पूर्णिमा का संयोग छह एवं सात अक्टूबर दो दिन पड़ रहा है। लेकिन, चंद्रोदय व्यापिनी पूर्णिमा के अनुसार इस व्रत को छह अक्टूबर को करना उचित होगा। सात अक्टूबर को केवल स्नान, दान आदि करना सही रहेगा। उन्होंने बताया कि छह अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ दोपहर लगभग 12 बजकर 20 मिनट पर होगा। जबकि इसका समापन सात अक्टूबर को प्रात: लगभग नौ बजकर 15 मिनट पर हो जाएगा।
क्योंकि सात अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि रात्रि व्यापिनी नहीं होगी। इसलिए छह अक्टूबर को ही पूर्णिमा का व्रत करना और रात्रि के समय खुले आसमान में खीर रखना उचित रहेगा। उन्होंने बताया कि ज्योतिषीय गणना के अनुसार कई वर्षों बाद इस बार शरद पूर्णिमा पर विष योग बन रहा है। इसके अंतर्गत शनि और चंद्रमा मीन राशि में विराजमान रहेंगे। जोकि आम जनमानस के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इसलिए इस दिन चंद्रमा की उपासना अवश्य करें।
चंद्रमा को अर्घ्य देने का समय रात में 8:30 पर उपयुक्त
शरद पूर्णिमा के दिन घर में माता लक्ष्मी के निमित्त दीप जलाकर उनकी आराधना करनी चाहिए। श्री सूक्त का पाठ, लक्ष्मी सूक्त का पाठ और लक्ष्मी चालीसा आदि करने से धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। वर्ष भर लक्ष्मी का आगमन होता रहता है।
शरद पूर्णिमा पर छह अक्टूबर को चंद्रमा को अर्घ्य देने का समय रात में आठ बजकर 30 मिनट पर उपयुक्त रहेगा। आचार्य राकेश कुमार शुक्ल ने बताया कि मां लक्ष्मी की उपासना के अलावा इस दिन चंद्रमा की उपासना करने से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त हो जाता है और मन को शांति प्राप्त होती है।
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