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प्रोटीन के इस नए उपयोग से इन गंभीर बीमारियों का इलाज हुआ संभव

अब प्रोटीन के नए इम्यूनोमॉड्यूलेटरी उपयोग सेप्सिस के साथ ही कर्इ अन्य बीमारियों का इलाज संभव है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 02:07 PM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 05:13 PM (IST)
प्रोटीन के इस नए उपयोग से इन गंभीर बीमारियों का इलाज हुआ संभव
प्रोटीन के इस नए उपयोग से इन गंभीर बीमारियों का इलाज हुआ संभव

रुड़की, [जेएनएन]: आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) रुड़की के शोधकर्ताओं ने प्रोटीन के नए इम्यूनोमॉड्यूलेटरी उपयोग का पता लगाकर बड़ी सफलता हासिल की है। इससे सेप्सिस और सूजन (इन्फ्लेमेशन) जैसी बीमारियों के इलाज में मदद मिलेगी, जो इम्यून सेल्स के सही काम नहीं करने से पैदा होती हैं। 

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संस्थान के जैव तकनीक विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर एवं शोध-प्रमुख डॉ. प्रणीता पी.सारंगी ने बताया कि इम्यून सेल्स के सही काम नहीं करने से सेप्सिस (खून का संक्रमण) की गंभीर समस्या और सूजन की कई बीमारियां हो जाती हैं। सेप्सिस में बेकाबू संक्रमण से न्यूट्रोफिल्स और मैक्रोफेज जैसे महत्वपूर्ण इम्यून सेल्स के एबनॉर्मल एक्टिवेशन और लोकलाइजेशन की समस्या होती है। 

इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) के सही काम नहीं करने से ऐसे सेल्स विसरा अंगों जैसे- फेफड़ों, किडनी और लीवर में जमा हो जाते हैं। ऐसे में विभिन्न अंगों के काम नहीं करने से मृत्यु की नौबत तक आ जाती है। कुछ मामलों में संक्रमण पर एंटीबायोटिक्स के प्रयोग से स्थिति और बिगड़ जाती है। वजह, बैक्टीरिया के कम्पोनेंट टूटकर खून में आने से इम्यून सेल्स ज्यादा एक्टिवेट हो जाते हैं। 

डॉ. प्रणीता के अनुसार सेप्सिस के एनिमल मॉडल में पूर्ण लंबाई वाला एफबीएलएन-7 प्रोटीन व इसके सी-टर्मिनल फ्रेगमेंट सूजन भरे टिश्यू और अंगों (पेरीटोनियल कैविटी और फेफड़ों) में मैक्रोफेज व न्यूट्रोफिल को घुसने से रोकते हैं। इस डाटा से स्पष्ट है कि एफबीएलएन-7 और इसके बायोएक्टिव फ्रेगमेंट या छोटे पेप्टाइड्स में इम्यूनो पैथोलॉजिकल समस्याओं के उपचार की संभावना है। 

इसके लिए इम्यून सेल्स के काम पर प्रतिरोधी नियंत्रण आवश्यक है। डॉ. प्रणीता ने बताया कि इस पहलू पर वर्तमान में शोध जारी है। शोध टीम में डॉ. किरण अम्बातिपुदी, पापिया चक्रवर्ती व शीब प्रसाद दास शामिल हैं। इनके अलावा अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के डॉ. योशीहीको यमादा की टीम भी शोध से जुड़ी हुई है। यह शोध हाल ही में फेडरेशन ऑफ अमेरिकन सोसायटीज फॉर एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी (जर्नल) में भी प्रकाशित हो चुका है। 

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