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    Pitru Paksha 2025: नारायणी शिला में धड़कता है भगवान विष्णु का हृदय, तर्पण से मिलेगी पितृ दोष से मुक्ति

    Updated: Sun, 07 Sep 2025 03:52 PM (IST)

    हरिद्वार में गंगा किनारे नारायणी शिला का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यहाँ भगवान विष्णु का हृदय विद्यमान है। इस शिला के दर्शन से पाप नष्ट होते हैं और पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। पितृ पक्ष में यहाँ पिंडदान और तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में इस शिला का विशेष वर्णन है इसे पितृ कर्म के लिए महत्वपूर्ण बनाता है।

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    नारायणी शिला तर्पण से मिलता है पितृों को मोक्ष और भक्तों को पितृ दोष से मुक्ति. File

    शैलेंद्र गोदियाल, हरिद्वार । धर्मनगरी हरिद्वार में गंगा की लहरों के साथ हजारों सालों से हिंदूधर्मावलियों की आस्था भी अविरल है। इसी अविरलता के बीच प्राचीन नारायणी शिला है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु का हृदय स्थान विद्यमान है। मान्यता है कि गंगा तट पर स्थित इस शिला के दर्शन मात्र से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और यहां किया गया पिंडदान व श्राद्ध पितृों को मोक्ष प्रदान करता है।

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    पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु के श्रीविग्रह के तीन महत्वपूर्ण अंग तीन अलग-अलग तीर्थों में स्थित हैं। चरण बिहार के गया में विष्णुपाद मंदिर में, शीर्ष भाग उत्तराखंड के बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल पर और कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार की नारायणी शिला में है। इसी कारण इस स्थान को हृदय स्थल कहा जाता है। मान्यता है कि यहां श्रद्धालु की हर प्रार्थना सीधे भगवान तक पहुंच जाती है।

    ये तीन स्थान पितृ कर्म के लिए अमोघ

    नारायणी शिला मंदिर के मुख्य पुजारी मनोज त्रिपाठी कहते हैं कि वायु पुराण में गयासुर की कथा आती है। गयासुर ने नारद जी से अपने पापों से मुक्ति का उपाय पूछा। नारद जी ने बताया कि या तो कठोर तप और पुण्य अर्जित कर या फिर भगवान से युद्ध कर उनके हाथों मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। असुर बुद्धि से प्रेरित होकर गयासुर ने भगवान बदरीनाथ के दर्शन न मिलने पर उनकी कमल स्वरूप मूर्ति का हरण कर लिया।

    भगवान ने बदरीनाथ के पास ही केस-लोचन तीर्थ में उसे रोका और गदा युद्ध हुआ। युद्ध में प्रहार से भगवान का श्रीविग्रह तीन भागों में विभाजित हो गया। शीर्ष भाग ब्रह्मकपाल, चरण गयाजी और कंठ से नाभि तक का भाग हरिद्वार की नारायणी शिला में आ गिरा। भगवान ने गयासुर को मोक्ष का वरदान देते हुए घोषणा की कि ये तीनों स्थान पितृ कर्म के लिए अमोघ होंगे।

    पंडित मनोज त्रिपाठी कहते हैं स्कंद पुराण के केदारखंड में इसका विशेष वर्णन है कि नारायणी शिला के दर्शन मात्र से व्यक्ति का पाप नष्ट होता है और यहां श्राद्ध करने से सौ पीढ़ियों तक के पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। गरुड़ पुराण में भी कहा गया है कि श्राद्ध कर्म करने वाला, कराने वाला और इसकी प्रेरणा देने वाला, तीनों को पुण्यफल प्राप्त होता है। यही कारण है कि पितृ पक्ष के दिनों में हरिद्वार की नारायणी शिला पर देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचकर अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं। मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति पर पितृ दोष है तो नारायणी शिला पर नारायण बलि, पिंडदान और तर्पण करने से दोष समाप्त हो जाता है।

    नारायणी शिला मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित मनोज त्रिपाठी बताते हैं आज पूर्णिमा श्राद्ध के साथ पितृ पक्ष शुरू हो रहे हैं। 21 सितंबर तक देशभर में लोग अपने पितरों का स्मरण करेंगे। गयाजी, बदरीनाथ धाम और हरिद्वार की नारायणी शिला, इन तीनों स्थलों पर श्राद्ध तर्पण का विशेष महत्व है। हरिद्वार आने वाले श्रद्धालु गंगा स्नान कर नारायणी शिला में अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान, तर्पण करते हैं।

    एक मान्यता ये भी है

    हरिद्वार : एक मान्यता यह भी है कि जब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर असुर हिरण्यकश्यप का वध किया, तब उनकी उग्रता को शांत करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने प्रार्थना की। उसी समय यह नारायणी शिला प्रकट हुई। तभी से यह शिला हरिद्वार में गंगा तट पर देवपूजन का प्रमुख केंद्र बन गई। यहां पिंडदान और श्राद्धकर्म करने से पितृों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी कारण नारायणी शिला को पितृमोक्ष स्थली भी कहा जाता है।

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