पिता की प्रेरणा से पौधों के रूप में जीवन बांट रहे कमलेश
दिल्ली से नौकरी छोड़कर कमलेश कांडपाल ने हरियाली पनपाने की ठान ली। पिता की प्रेरणा से वह पौधों के रूप में जीवन को बांटने में जुट गए। नतीजन ओर लोग भी उनके साथ जुड़ गए।
हरिद्वार, [विजय मिश्र]: दिल्ली से नौकरी छोड़कर हरिद्वार पहुंचकर कमलेश कांडपाल ने हरियाली पनपाने को जीवन का उद्देश्य बना लिया। पिता की प्रेरणा से वह पौधों के रूप में जीवन को बांट रहे हैं।
अल्मोड़ा जिले में स्वामी विवेकानंद सिद्धपीठ के पास स्थित ककड़ी घाट निवासी कमलेश कांडपाल अपने साहित्यकार पिता के साथ वर्ष 1993 में धर्मनगरी हरिद्वार आए और फिर यहीं बस गए। वर्ष 2012 में उन्होंने सप्तऋषि महाविद्यालय से रुद्राष्टाध्यायी में पीएचडी की उपाधि पूरी की।
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इसके बाद नौकरी के सिलसिले में दिल्ली चले गए। लेकिन, मन में तो समाजसेवा का भाव समाया हुआ था, सो बहुत दिनों तक दिल्ली में नहीं रह पाए और नौकरी छोड़कर हरिद्वार लौट गए। इसी बीच एक वाकया ऐसा घटा, जिसने उनके जीवन की धारा ही मोड़ दिया।
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असल में वाहनों की भीड़भाड़ और बढ़ते धुएं से उनके पिता का मन घबराने लगा। शहरीकरण की चादर ओढ़े धर्मनगरी में उन्हें स्वयं भी घुटन महसूस होने लगी। ऐसे में पिता ने उन्हें हरियाली की याद दिलाई। बस! फिर तो कमलेश ने तय कर लिया कि यहां भी गांव जैसी आबोहवा लेकर आएंगे।
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उत्तरी हरिद्वार के सप्तऋषि घाट में रह रहे कमलेश कांडपाल ने घर के पास ही न केवल नर्सरी तैयार की, बल्कि धर्मनगरी में पौधरोपण कर पर्यावरण संरक्षण की मुहिम भी शुरू कर दी। नतीजा यह रहा कि शहर में करीब नौ सौ लोग पर्यावरण संरक्षण के इस अभियान में उनके साथ जुड़ गए।
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बकौल कमलेश, पिता की स्थिति ने मुझे चिंतित कर दिया और मैं उसी दिन से नर्सरी के साथ बगीचा तैयार करने में जुट गया। पिछले पांच साल के दौरान मैं लगभग 900 लोगों को निश्शुल्क पौधे बांट चुका हूं। इन लोगों ने हरिद्वार के आसपास ही इन पौधों का रोपण किया।
कमलेश कहते हैं कि पेड़-पौधों में बड़ी शक्ति है। इनके बिना जीवन अधूरा है। इसलिए हम अपनी आने वाली पीढ़ी और समाज को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं। ताकि, किसी भी तरह की आपदा और प्रदूषण से धरा सुरक्षित रहे।
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कमलेश ने सप्तऋषि घाट यानी गंगाघाट नंबर 14 के पास अपने घर के पीछे बगीचा बनाया हुआ है। बीते पांच साल में वहां तीन सौ के आसपास पेड़ तैयार हो गए हैं। इनमें ज्यादातर आम, अमरूद, लीची, कटहल, नीम व पीपल के पेड़ हैं। घर के ही एक अन्य हिस्से में उन्होंने फल व छाया देने वाले पौधों की नर्सरी भी तैयार की हुई है। यहां तैयार पौधों को वे लोगों को बांटते हैं।
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