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    Uttarkashi: ...तो क्‍या इस कारण खीर गंगा में आई तबाही? आइआइटी रुड़की के विज्ञानियों के अध्‍ययन में सामने आई नई बात

    By Rena Edited By: Nirmala Bohra
    Updated: Wed, 13 Aug 2025 03:19 PM (IST)

    Uttarkashi Disaster धराली में आई आपदा के कारणों पर IIT रुड़की के प्रोफेसर एसपी प्रधान ने बताया कि खीर गंगा में आया सैलाब मलबा प्रवाह था जिसमें पानी के साथ बड़े पत्थर थे। उन्होंने मड फ्लो और डेब्रिज फ्लो के बीच अंतर स्पष्ट किया। उनके अनुसार लगातार बारिश से जमीन संतृप्त हो जाती है जिससे मलबा तेजी से बहता है।

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    खीर गंगा में मलबा प्रवाह लेकर आया तबाही. File Photo

    रीना डंडरियाल, जागरण रुड़की। धराली में आए जलप्रलय के कारणों का पता लगाने के लिए विभिन्न संस्थानों के विज्ञानी आंकड़ों के विश्लेषण में जुटे हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) रुड़की के विज्ञानी भी इसकी संभावित वजहों पर अध्ययन कर रहे हैं।

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    इनमें आइआइटी रुड़की के भू-विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एसपी प्रधान भी शामिल हैं। उनका कहना है कि खीर गंगा में जो सैलाब आया उसे कीचड़ का प्रवाह (मड फ्लो) कहने के बजाय मलबा प्रवाह (डेब्रिज फ्लो) कहना उचित होगा। क्योंकि, उसमें तीव्र गति से पानी के साथ बड़े-बड़े पत्थर आए हैं, जबकि मड फ्लो में पानी के साथ गाद व मिट्टी आती है।

    उत्तरकाशी के धराली में जलप्रलय बादल फटने, ग्लेशियर झील टूटने, लैंड स्लाइड लेआउट ब्रस्ट या फिर किसी और वजह से आई है, इसको लेकर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो सकी है। हालांकि, इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर की ओर से जारी नए सेटेलाइट चित्रों के बाद स्थिति धीरे-धीरे स्पष्ट होने की संभावना जताई जा रही है।

    पानी के साथ आई चट्टानें 

    वहीं, उत्तरकाशी में आपदा के कारणों का पता लगाने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से गठित विज्ञानियों की टीम में शामिल आइआइटी रुड़की के एसोसिएट प्रोफेसर एसपी प्रधान बताते हैं कि शुरुआत में खीर गंगा की जलप्रलय को मड फ्लो कहा जा रहा था, लेकिन वहां जिस तरह से पानी के साथ चट्टानें आई हैं, उसे देखते हुए इसे डेब्रिज फ्लो कहा जाना चाहिए।

    वह बताते हैं कि मड फ्लो में 80 प्रतिशत मटीरियल (सामग्री) 0.06 मिमी से छोटा होता है, जबकि डेब्रिज फ्लो में 20 से 80 प्रतिशत मटीरियल दो मिमी से बड़ा होता है। धराली में आया 20 प्रतिशत से ज्यादा मटीरियल दो मिमी से बड़ा है।

    एसोसिएट प्रोफेसर प्रधान बताते हैं कि धराली में 30 से 40 सेकेंड में दो से तीन मिलियन क्यूबिक मीटर मलबा आने की बात सामने आ रही है। भूस्खलन में मटीरियल वेलोसिटी (सामग्री का वेग) एक सेकेंड में पांच मीटर, 60 सेकेंड में 300 मीटर और एक घंटे में 20 से 30 मीटर होता है। अगर मटीरियल वेलोसिटी एक सेकेंड में पांच मीटर से अधिक हो तो उसे डेब्रिज फ्लो कहते हैं। प्रोफेसर प्रधान के अनुसार, मलबे का आकार बड़ा था, इसलिए उसकी गति भी अधिक थी।

    डेब्रिज फ्लो की वजह

    एसोसिएट प्रोफेसर एसपी प्रधान बताते हैं कि जमीन के अंदर या चट्टान में पानी अधिक घुस जाता है, तो वह बहुत अधिक सैचुरेट हो जाता है। यानी उसमें और अधिक पानी को समाहित करने की क्षमता नहीं रह जाती। ऐसा मलबा बहुत दूर तक तेजी से बहता हुआ जाता है। ऐसी स्थिति तब आती है, जब लगातार कुछ दिन से वर्षा हो रही हो।