Move to Jagran APP

संत की कलम से: देश को सांस्कृतिक, धार्मिक रूप से एकता के सूत्र में पिरोता है कुंभ- स्वामी दुर्गेशानंद

Haridwar Kumbh 2021 मकर संक्रांति पर्व स्नान कर श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगा कर पुण्य कमा रहे हैं। कुंभ में गंगा स्नान जन्म जन्मांतर के पापों का शमन करता है। कुंभ एक ईश्वरीय निमंत्रण है। इसे स्वीकार कर बड़ी तादाद में श्रद्धालु कुंभ में पहुंचते हैं।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Thu, 14 Jan 2021 12:29 PM (IST)Updated: Thu, 14 Jan 2021 12:29 PM (IST)
संत की कलम से: देश को सांस्कृतिक, धार्मिक रूप से एकता के सूत्र में पिरोता है कुंभ- स्वामी दुर्गेशानंद
संत की कलम से: देश को सांस्कृतिक, धार्मिक रूप से एकता के सूत्र में पिरोता है कुंभ।

Haridwar Kumbh 2021 कुंभ पर्व देश की अनेकता में एकता का दर्शन है। ये पर्व भारत को सांस्कृतिक, धार्मिक रूप से एकता के सूत्र में पिरोने का भी काम करता है। जिस तरह आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में शंकराचार्य पीठ स्थापित कर भारत को धार्मिक रूप से एकता के सूत्र में बांधा, उसी प्रकार कुंभ मेले में संपूर्ण भारत से आने वाले तीर्थ यात्री यहां अमृत और मोक्ष की चाहत में ब्रह्मकुंड में डुबकी लगा पुण्य और धर्मगुरुओं से मोक्ष प्राप्ति करते हैं। 

loksabha election banner

आज मकर संक्रांति पर्व स्नान कर श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगा कर पुण्य कमा रहे हैं। कुंभ में गंगा स्नान जन्म जन्मांतर के पापों का शमन करता है। कुंभ एक ईश्वरीय निमंत्रण है। इसे स्वीकार कर बड़ी तादाद में श्रद्धालु कुंभ में पहुंचते हैं। मनुष्य को परमात्मा की प्राप्ति और जीवन को भवसागर से पार लगाने को गंगा में स्नान कर खुद को पुण्य का भागी बनाना चाहिए। इस बार धर्मनगरी हरिद्वार कुंभ का विशेष योग 12 की बजाय 11 वर्ष में पड़ रहा है। 

11 मार्च महाशिवरात्रि पर पहला शाही स्नान होगा। धर्म नगरी के संत महात्माओं के साथ ही लाखों श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगाएंगे। संत महापुरुषों के साथ ही श्रद्धालु-भक्त कुंभ मेले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। कुंभ मेला सनातन परंपराओं के अनुसार ही होना चाहिए। 

कुंभ की अलौकिक विशेषताओं का वर्णन तो देवताओं की वाणी ने भी किया है। यह धार्मिक आस्था और विश्वास की पराकाष्ठा भी है। क्षीर सागर में शेषनाग की रस्सी से किए समुद्र मंथन से निकले अमृत को हुए देवताओं और असुरों में हुए संग्राम के दौरान धरती लोक पर जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरी वहां-वहां देवताओं के आदेश से कुंभ का आयोजन शुरू हुआ। इस कारण ही कुंभ धरती लोक के साथ-साथ देवलोक में भी आस्था का महापर्व है।

[श्री मानव कल्याण आश्रम के महंत स्वामी दुर्गेशानंद सरस्वती जी महाराज] 

यह भी पढ़ें- संत की कलम से: कुंभ मेला है ईश्वरीय निमंत्रण- महंत जसविंदर सिंह


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.