उत्तराखंड में मिड डे मील की बदहाली, बच्चों की थाली में पोषण के नाम पर मिल रहा सिर्फ 5 ग्राम दूध
हरिद्वार जिले के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील की हालत खराब है। बच्चों को दस साल पहले जैसा ही कम मात्रा और खराब गुणवत्ता वाला भोजन मिल रहा है। उन्हें हफ्ते में दो बार सिर्फ 5 ग्राम पाउडर का दूध और सर्दियों में 5 ग्राम रागी दी जाती है। पोषण के नाम पर कुपोषण परोसा जा रहा है, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। ग्रामीणों ने ताजा दूध और फल उपलब्ध कराने की मांग की है।

बच्चों को हफ्ते में सिर्फ दो दिन पांच ग्राम दूध दिया जाता है, वह भी पाउडर का। Concept Photo
संवाद सहयोगी जागरण,रुड़की। हरिद्वार जिले के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को आज भी वही भोजन मिल रहा है जो एक दशक पहले मिलता था। मात्रा में कम और गुणवत्ता में कमजोर। शिक्षा विभाग के अधीन चल रही मिड डे मील योजना का हाल यह है कि बच्चों को हफ्ते में सिर्फ दो दिन पांच ग्राम दूध दिया जाता है, वह भी पाउडर का। सर्दियों में भी यही हाल है, जब उन्हें सिर्फ पांच ग्राम रागी दी जाती है। जिससे बच्चों के स्वास्थय पर प्रभाव पड़ रहा है।
रुड़की ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले 131 प्राथमिक स्कूलों और मदरसों में पोषण आहार के नाम पर जो कुछ बच्चों की थाली में परोसा जा रहा है, वह कुपोषण को मिटाने के बजाय और बढ़ाने का खतरा पैदा कर रहा है। बच्चों को हफ्ते में एक बार पांच रुपए का फल दिया जाता है। अधिकतर फल में केला ही। कभी-कभी बजट न होने पर वह भी नहीं मिलता। सेब, संतरा या अनार जैसे फल अब बच्चों की थाली से सालों से गायब हैं।
ग्राम प्रधान संगठन के उपाध्यक्ष नरेंद्र कुमार ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में ताजा दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, फिर भी बच्चों को दूध पाउडर दिया जा रहा है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। उन्होंने कहा कि यदि स्थानीय डेयरियों से ताजा दूध लिया जाए तो न सिर्फ बच्चों को बेहतर पोषण मिलेगा, बल्कि ग्रामीण इलाकों में बहुत से सीएलएफ चल रहे है। जो दूध उत्पादन कर उसे डेरियों पर भेज रहे है।
उन्होंने बताया कि बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव पोषण से ही रखी जाती है। दूध पाउडर में कई बार अत्यधिक प्रोसेसिंग के कारण प्राकृतिक पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं, जबकि ताजा दूध में कैल्शियम, प्रोटीन और विटामिन अधिक मात्रा में बने रहते हैं, जो बच्चों की हड्डियों और मस्तिष्क के विकास के लिए जरूरी हैं।
स्कूलों में मिड डे मील योजना के तहत मिलने वाले बजट का उपयोग हेडमास्टरों के माध्यम से किया जाता है। लेकिन शिक्षक अब बच्चों की पढ़ाई के बजाय भोजन और खरीदारी के प्रबंधन में उलझ गए हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। इस ओर शासन का ध्यान अब तक नहीं गया है, जबकि गांवों में ताजा दूध और फल सुलभ हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार स्थानीय स्तर पर सहयोगी व्यवस्था बनाकर ताजा दूध और मौसमी फल मुहैया कराए, तो बच्चों की सेहत और पढ़ाई दोनों सुधर सकती हैं। वही मुख्य शिक्षा अधिकारी आशुतोष भंडारी का कहना है कि मिड डे मील सरकार की संचालित योजना है, इसमें कोई भी बदलाव शासन स्तर से ही संभव है।
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