लंदन में बनेगी भारतीय पक्षियों के गीतों की वीथिका, पढ़िए पूरी खबर
लंदन स्थित साउंड आर्काइव लाइब्रेरी में भारतीय पक्षियों के गीतों की वीथिका बनाने पर भी सहमति बनी है।
हरिद्वार, जेएनएन। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलसचिव और अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रो. दिनेश भट्ट ने यूके के ब्राइटन शहर में आयोजित इंटरनेशनल बायोकास्टिक्स काउंसिल में प्रतिभाग कर हरिद्वार लौट आए। उन्होंने काउंसिल में न केवल सिम्पोजियम की अध्यक्षता की, बल्कि लंदन की नेशनल लाइब्रेरी में विजिट भी की। प्रो. भट्ट ने बताया कि इस दौरान लंदन स्थित साउंड आर्काइव लाइब्रेरी में भारतीय पक्षियों के गीतों की वीथिका बनाने पर भी सहमति बनी। यह देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
प्रो. भट्ट ने बताया ससेक्स यूनिवर्सिटी ब्राइटन में पक्षी और वन्य जीवन के संवाद विज्ञान पर आयोजित विश्व सम्मलेन में पौलैंड के वैज्ञानिक औसेजुक ने बोउबोउ नामक वनीय पक्षी की मधुर जुगलबंदी यानी डुएट सॉन्ग की वीडियो रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की। इसमें नर पक्षी के गाए गए कुछ शब्दों के विन्यास को पूरा वाक्य बनाने में मादा पक्षी तुरंत ही अपने शब्दों को जोड़ देती है। यह जुगलबंदी इतनी सटीक और सलीके से होती है कि सुनने वाले को लगता है कि एक ही पक्षी गा रहा है।
प्रो. भट्ट के अनुसार उन्होंने अपने शोध में अल्ट्रामैरिन फ्लाई कैचर नामक पक्षी की चर्चा की। इस पक्षी की पूर्वी हिमालयी और दक्षिण हिमालयी प्रजाति के गीतों की संख्या ही नहीं, गायन कला में भी अंतर है। संस्कृति और भौगोलिक परिस्थिति का भी पक्षी गीतों की संरचना के साथ ही गायन कला पर सीधा और गहरा प्रभाव पड़ता है। महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि ब्रिटिश लाइब्रेरी (साउंड आर्काइव) की क्यूरेटर और आइबीएसी की जनरल सेक्रेटरी डॉ. चेरिल टिप ने भारतीय पक्षियों के गीत और संवाद विज्ञान की रिकॉर्डिंग को संकलित कर रखने के लिए एक अलग सेक्शन बनाने की बात कही। इससे विश्व फलक पर दुनिया की सबसे पुरानी और ध्वनि संग्रहों की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में भारतीय पक्षियों के गीतों की ध्वनियां आधुनिक तरीके संग्रहीत हो सकेंगी।
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यह विश्व में पक्षी और जीव विज्ञानियों और कंजर्वेशन बायोलॉजिस्ट के लिए उपयोगी साबित होंगी। इस प्रयास में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का सांस्कृतिक प्रकोष्ठ सहयोग करेगा। प्रो. भट्ट ने बताया ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन 1753 में स्थापित दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी मानी जाती है। इसमें लगभग 200 मिलियन किताबें उपलब्ध हैं। गुरुकुल कांगड़ी विवि के कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने प्रो. भट्ट के इस प्रयास की सफलता को विवि एवं देश के लिए बड़ी उपलब्धि करार दिया।
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