Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जल सहेजने वाला शांतिकुंज का यह प्रयास दिला रहा सुकून, रोजाना इस्तेमाल किए हुए 50 हजार लीटर पानी को किया जाता है रिसाइकिल

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Wed, 28 Apr 2021 01:51 PM (IST)

    आध्यात्मिक संस्था गायत्री तीर्थ शांतिकुंज सामाजिक सरोकारों का भी बखूबी निर्वहन कर रही है। खासकर जल संरक्षण के क्षेत्र में। शांतिकुंज में रोजाना 50 हजार लीटर इस्तेमाल किए हुए पानी को रिसाइकिल कर दोबारा उपयोग में लाया जाता है।

    Hero Image
    इस्‍तेमाल किए गए पानी को शोधित करने के बाद फुलवारी की सिंचाई करता शांतिकुंज का साधक।

    अनूप कुमार, हरिद्वार। Water Conservation आध्यात्मिक संस्था गायत्री तीर्थ शांतिकुंज सामाजिक सरोकारों का भी बखूबी निर्वहन कर रही है। खासकर जल संरक्षण के क्षेत्र में। शांतिकुंज में रोजाना 50 हजार लीटर इस्तेमाल किए हुए पानी को रिसाइकिल कर दोबारा उपयोग में लाया जाता है। यहां की हरियाली और बागवानी ही नहीं, रिहायशी इलाके की साफ-सफाई, धुलाई आदि भी इसी पानी से होती है। खास बात यह कि हरिद्वार में शांतिकुंज ने ही सबसे पहले वर्षा जल के संरक्षण की पहल की और इसके लिए पुख्ता इंतजाम भी किए। इसी का नतीजा है कि आज शांतिकुंज में वर्षा जल की एक बूंद भी व्यर्थ नहीं जाती।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में इंजीनियर, कारीगर व कलाकारों के साथ ही साधना व कला कौशल प्रशिक्षण शिविरों के हजारों प्रशिक्षु, साधक और कर्मयोगी निवास करते हैं। इन सभी के लिए अन्य व्यवस्थाओं के साथ-साथ विशाल भोजनालय भी चलता है। यहां पांच से आठ हजार श्रद्धालु भी रोजाना भोजन करते हैं। पर्व व विशेष आयोजनों पर तो यह संख्या 20 हजार से अधिक पहुंच जाती है। ऐसे में भोजन बनाने, सब्जी, बर्तन व हाथ धोने आदि कार्यों में हजारों लीटर पानी इस्तेमाल होता है। पूर्व में यह इस्तेमाल किया हुआ पानी नालियों में बह जाता था, जिसे संरक्षित और दोबारा उपयोग में लाने का अनूठा प्रयोग शांतिकुंज ने किया है। वर्तमान में यहां रोजाना 50 हजार लीटर के आसपास पानी अपव्यय होने से बचाया जा रहा है।

    इस पानी को अलग-अलग टैंक में ले जाकर और फिर विभिन्न चरणों में शोधन करके एक बड़े अंडरग्राउंड टैंक में एकत्र किया जाता है। यहां से इस पानी को मोटर के जरिये पंप करके बागवानी, सिंचाई, साफ-सफाई आदि के प्रयोग में लाया जाता है। फिलहाल यहां करीब 50 हजार लीटर पानी एकत्र करने की व्यवस्था है। गायत्री तीर्थ शांतिकुंज के लिए यह प्रोजेक्ट इंजीनियर जय सिंह ने तैयार किया है। हालांकि, कोरोना महामारी के चलते इन दिनों शांतिकुंज में प्रशिक्षण सत्र नहीं चल रहे। इससे श्रद्धालुओं की संख्या में कमी आई है और शोधित जल की मात्रा पहले से काफी कम है। ऐसे में इन दिनों मुख्य टैंक की साफ-सफाई और मरम्मत का कार्य चल रहा है।

    प्राचीन तरीके से साफ होता है पानी

    प्रोजेक्ट इंजीनियर जय सिंह बताते हैं कि उपयोग में आ चुके पानी को एक महीन जाली से छानकर चरणवार अलग-अलग टैंक से गुजारा जाता है। पहले चरण में पानी को रेत, दूसरे में कोयला, तीसरे में बजरी, चौथे में ग्रेवल, पांचवें में पेवल, छठे में बोल्डर और अंत में ईंट से गुजारा जाता है। यह पानी बहुत हद पेयजल जितना शुद्ध होता है। यह एक प्राचीन पद्धति है, जिसे सदियों पूर्व ऋषि-मुनि प्रयोग में लाया करते थे।

    बाहरी जल का भी संरक्षण

    शांतिकुंज में एक दूसरा प्लांट भी है, जिसमें ऊपरी क्षेत्र (आसपास के आश्रम और खेत खलिहान) से आने वाले जल को संग्रहीत किया जाता है। इस पानी को भी पहले फिल्टर किया जाता फिर अन्य कार्यों में प्रयोग किया जाता है।

    -डॉ. प्रणव पंड्या (प्रमुख, गायत्री तीर्थ, शांतिकुज, हरिद्वार) का कहना है कि  ऐसे छोटे छोटे प्रोजेक्ट बड़ी सफलता का आधार हो सकते हैं। केवल हरिद्वार शहर में ही सैकड़ों ऐसे आश्रम हैं, जहां हर दिन हजारों श्रद्धालु सामूहिक भोजन करते हैं और हजारों लीटर पानी नालियों में बहा देते हैं। यदि इन आश्रमों में भी इस मॉडल को अपनाया जाए तो हर दिन लाखों लीटर पानी को बर्बाद होने से बचाया जा सकेगा। इसके अलावा एक फायदा यह भी है कि इसके बाद सिंचाई के लिए अंडरग्राउंड पानी का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता। इससे अंडर वाटर लेवल को स्थिर बनाए रखने और उसे बढ़ाने में मदद मिली है।

    यह भी पढ़ें-Water Conservation: बारिश की बूंद-बूंद सहेज रही रागिनी, घर की छत पर बनाया सिस्टम

    Uttarakhand Flood Disaster: चमोली हादसे से संबंधित सभी सामग्री पढ़ने के लिए क्लिक करें