कैंपस में होती है युवाओं की नशे से दोस्ती, पढ़िए पूरी खबर
ज्यादातर युवाओं की दोस्ती कैंपस में होती है। ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। इसलिए पुलिस के जागरूकता कार्यक्रमों का फोकस भी स्कूल और कॉलेजों पर ही होता है।
देहरादून, जेएनएन। युवा वर्ग को नशा पहली बार कॉलेज कैंपस में दोस्तों के बीच ही मिलता है। पुलिस की ओर से आयोजित होने वाले जागरूकता कार्यक्रमों का फोकस भी स्कूल-कॉलेजों पर ही होता है, पर इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि तमाम प्रयासों के बाद भी नशा दून और यहां के कॉलेज और हॉस्टल में रहने वाले छात्रों तक बेरोकटोक पहुंच रहा है। मनोचिकित्सक की मानें तो नशे को लेकर युवा वर्ग की सोच बदलनी होगी, तभी इस पर रोकथाम की उम्मीद की जा सकती है।
नशा शुरुआती दौर में भले ही क्षणिक आनंद की अनुभूति कराए, लेकिन इसकी लत लगने के बाद किशोरों के व्यवहार में धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगता है। ऐसे युवा हमेशा खोए-खोए से रहने लगते हैं और दिनचर्या बेतरतीब होने लगती है। उनकी संगत बदल जाती है और मित्र भी वह लोग बन जाते हैं जो नशा दिलाने में मदद करते हैं। कॉलेज कैंपस में ऐसे युवाओं को देखकर सहज ही उनके बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे युवा न तो नियम-कानून का उल्लंघन करने से डरते हैं और न ही नशे के लिए पैसे का जुगाड़ करने को वह चोरी या अन्य कोई अपराध करने से हिचकते।
कुल मिलाकर नशे की लत व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। शराब, सिगरेट, ड्रग्स, गुटखा या खैनी का सेवन थोड़ी मात्रा में भी शरीर को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन जब यह लत बन जाए, तो स्थिति और बुरी होने लगती है। उसे जब तक नशा नहीं मिलता, वह बेचैन और असामान्य बना रहता है। जब वह नशा उसे मिल जाता है, तो वह कुछ समय के लिए सामान्य महसूस करने लगता है।
दरअसल, परिवार में कोई नशा करता रहता हो तो बच्चों में नशे की गिरफ्त में आने की संभावना बढ़ जाती है। पर देहरादून में नशे की प्रवृत्ति उन छात्र-छात्राओं में अधिक देखी जा रही है, जो घर-परिवार से कोसों दूर यहां अकेले पढ़ाई के लिए आते हैं। उन्हें न कॉलेज कैंपस में किसी के देख लेने का डर होता और हॉस्टल में तो सबकुछ करने की आजादी रहती ही है।
यही वजह है कि युवा वर्ग को नशे की लत से दूर रखने के लिए बुनियादी कदम उठाए जाने की वकालत हमेशा से होती रही है। मनोचिकित्सक डॉ. सोना कौशल का भी मानना है कि नशे के दुष्परिणामों की जानकारी देने के लिए इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। बच्चों में शुरू से यदि नशे की हानियां समझाई जाएंगी तो निश्चित तौर पर वह इससे दूर रहने के लिए मानसिक तौर पर परिपक्व होंगे।
ये लक्षण देते हैं नशे की लत के संकेत
लगातार नशा करने वाला शख्स भीतर से काफी कमजोर हो जाता है। घबराहट, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना, मूड अचानक बदलना, तनाव, मानसिक थकावट, फैसला लेने में दिक्कत, कमजोर स्मरणशक्ति, नींद न आना, सिर में तेज दर्द होना, शरीर में ऐंठन-मरोड़, भूख में कमी, ज्यादा पसीना आना आदि लक्षण आगाह करने वाले होते हैं।
नशे के विरुद्ध चल रहे अभियान में मुख्य फोकस छात्रों और युवा वर्ग पर ही है। एसएसपी निवेदिता कुकरेती ने बताया कि स्कूल-कॉलेजों में नियमित गोष्ठियां कर उन्हें जागरूक किया जा रहा है। साथ ही उनके अभिभावकों को और अध्यापकों को भी सजग किया जा रहा है कि वह बच्चों पर नजर रखें। कॉलेज कैंपस में किसी तरह की अवांछनीय गतिविधि दिखने पर तुरंत पुलिस को सूचित करने का निर्देश भी दिया गया है।
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