योग की अंतरराष्ट्रीय राजधानी के रूप में पहचान रखती है तीर्थनगरी
प्राचीन भारतीय पद्धति योग आज पूरे विश्व में पहचान बना चुकी है। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में भी मनाया जा रहा है। मगर योग और तीर्थनगरी ऋषिकेश को एक दूसरे का पर्याय माना जाता है।
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश :
प्राचीन भारतीय पद्धति योग आज पूरे विश्व में पहचान बना चुकी है। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में भी मनाया जा रहा है। मगर, योग और तीर्थनगरी ऋषिकेश को एक दूसरे का पर्याय माना जाता है। इतना ही नहीं तीर्थनगरी ऋषिकेश को योग की अंतरराष्ट्रीय राजधानी के रूप में भी पहचान मिली है। तीर्थनगरी की यह पहचान यूं ही नहीं बनी बल्कि इसके पीछे योग साधकों की लंबी साधना है।
तीर्थनगरी ऋषिकेश आदि काल से ही ऋषि-मुनियों की योग और तप की भूमि रही है। मगर, आधुनिक योग को यहां पुनर्जीवित करने का श्रेय महर्षि महेश योगी, स्वामी राम जैसे साधकों को जाता है। भावातीत ध्यान योग के प्रेणता महर्षि महेश योगी ने तीर्थनगरी में स्वर्गाश्रम क्षेत्र में योग और ध्यान के लिए साठ के दशक में शंकराचार्य नगर की स्थापना की थी। इसी दौर में वर्ष 1968 में यहां पश्चिम का मशहूर बैंड बीटल्स के चार सदस्य जॉन लेनन, पॉल मैक-कार्टने, रिगो स्ट्रार्र व जार्ज हैरिसन यहां योग साधना के लिए आए थे। जिसके बाद ऋषिकेश पूरी दुनिया में योग के लिए मशहूर हो गया और फिर योग और ध्यान के लिए पूरी दुनिया के लोग ऋषिकेश का रुख करने लगे। समय के साथ ऋषिकेश में योग, ध्यान और मेडिटेशन के नए-नए केंद्र खुलने शुरू हो गये। करीब तीन दशक पूर्व उत्तरप्रदेश सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने मार्च के प्रथम सप्ताह में ऋषिकेश में अंतरराष्ट्रीय योग सप्ताह की शुरुआत कर योग को नए आयाम देने का काम किया। अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव का यह सिलसिला तब से अनवरत जारी है और आज गंगा के दोनों तटों पर सरकारी और निजी प्रयासों से वृहद रूप ले चुका है।
योग की ही महिमा है कि आज तीर्थनगरी का पर्यटन सबसे अधिक योग और वैलनेस पर ही आधारित हो गया है। इतना ही नहीं विदेशों में भी ऋषिकेश के योग शिक्षकों की सबसे अधिक मांग होती है। ऋषिकेश के योग शिक्षक वर्तमान में विश्व के कई देशों में योग का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।
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