World Sparrow Day 2023: गांवों में सिमटा गौरैया का संसार, विशेषज्ञों के अध्ययन में उजागर हुई पलायन की तस्वीर
World Sparrow Day 2023 शोरगुल और सघन आबादी के कारण वह छोटी सी चिड़िया ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन कर रही हैं। राहत की बात है कि गौरेया की संख्या में बड़ी गिरावट दर्ज नहीं की गई है केवल शहरवासी उनके दीदार से वंचित हो गए हैं।

विजय जोशी, देहरादून : World Sparrow Day 2023: घर के आंगन में चहचहाती वह नन्ही सी चिड़िया अब नजर नहीं आती। आधुनिकता के पथ पर आगे बढ़ते शहरों में नन्ही गौरैया के लिए जगह कहां। शोरगुल और सघन आबादी के कारण वह छोटी सी चिड़िया ग्रामीण क्षेत्रों की ओर पलायन कर रही हैं।
पहाड़ों में गांव अब भी गौरैया की पनाहगाह बने हुए हैं, जहां वह अपने घोंसले बना रही हैं और खाने की भी कमी नहीं। दून घाटी में विशेषज्ञों की ओर से किए गए अध्ययन में गौरैया के पलायन की तस्वीर उजागर हुई है। हालांकि, राहत की बात है कि गौरेया की संख्या में बड़ी गिरावट दर्ज नहीं की गई है, केवल शहरवासी उनके दीदार से वंचित हो गए हैं।
ग्राफिक एरा हिल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमल कांत जोशी अपनी टीम के साथ दून घाटी में गौरैया संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे हैं। इसी क्रम में हिमालय की शिवालिक श्रेणियों दून घाटी में पिछले कुछ समय से गौरैया पक्षी की संख्या में होने वाली कमी के कारणों का पता लगाने के लिए प्रयास किया जा रहा है।
जिसके लिए गौरैया के व्यवहार व दून घाटी के शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में उनकी संख्या के आंकड़े जुटाए गए। आंकड़ों विश्लेषण करने पर जो तथ्य मिले उनसे पता चला कि दून घाटी के मैदानी क्षेत्रों में गौरैया की संख्या पर्वतीय क्षेत्रों की तुलना में बेहद कम रही।
दून को तीन भागों में बांटकर किया अध्ययन
कमल कांत जोशी की टीम ने देहरादून शहर को तीन भागों में बांटकर अध्ययन किया। जिसमें पहला भाग बाजार क्षेत्र रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और घंटाघर क्षेत्र रहा। दूसरे भाग में देहरादून क्षेत्र में स्थित रिहायशी कालोनियों में गैरेया की गणना की गई।
जबकि, तीसरे भाग में देहरादून में उन स्थानों में अध्ययन किया गया, जहां निर्माण कार्य गतिमान हैं। तीनों क्षेत्र से प्राप्त आंकड़ों का अध्ययन करने पर पता चला कि गौरैया की संख्या में सबसे ज्यादा गिरावट बाजार क्षेत्र में आई है। जबकि, ग्रामीण क्षेत्र में इनकी संख्या काफी अच्छी मिली। कई घरों में गौरेया के बनाए घोंसले भी पाए गए।
आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं आ रहा रास
गौरैया के शहरी क्षेत्रों से पलायन करने का एक प्रमुख कारण भीड़-भाड़ और शोरगुल तो है ही, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि गौरैया को शहरों में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर भी रास नहीं आ रहा है।
लगातार हो रहे निर्माण के बीच गौरैया के लिए घोंसले बनाने की जगह ही समाप्त हो गई है। जबकि, इस आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर को अपनाने के कारण दून के शहरी इलाकों में कबूतरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, मोबाइल टावरों से निकलने वाले विकिरण से भी गौरेया शहरों से दूर भागी है।
गांव में घर की देहरी पर गौरेया की चहलकदमी
अध्ययन के अनुसार देहरादून के ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी परंपरागत भवन स्थित हैं और भीड़भाड़ भी कम है। ऐसे में घर की देहरी पर सहज ही गौरैया मंडराती दिख जाएगी। इस दिशा में ग्रामीणों की ओर से भी योगदान दिया जा रहा है। अन्न के दाने उपलब्ध होने के कारण गौरैया को आसान भोजन उपलब्ध है। कई गांव में जागरूक बच्चे घरों में कृत्रिम घोंसले भी रख रहे हैं।
बच्चों के लिए प्रेरणा
कमल कांत जोशी ने कहा कि गौरेया की संख्या में कमी नहीं आई है, केवल शहर से गांव की ओर से पलायन बढ़ा है। हालांकि, भविष्य में गौरेया के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए प्रयास बेहद जरूरी हैं। इसके लिए बच्चों को सांस्कृतिक व पारंपरिक ज्ञान देने की आवश्यकता है।
पहले बचपन में देखी जाने वाली पहली चिड़िया गौरैया ही होती थी। लेकिन, अब शहर में बच्चों को गौरैया के बारे में पता नहीं है। शहरों में कृत्रिम घोंसले बनाकर गौरैया को दाना-पानी उपलब्ध कराया जाए तो एक बार फिर वह यहां लौट सकती है।
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