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    Uttarakhand Politics News: उत्‍तराखंड में क्या इस चुनाव में टूट पाएगा मिथक

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Mon, 15 Mar 2021 12:22 PM (IST)

    Uttarakhand Politics News उत्तराखंड को अलग राज्य बने अभी चार महीने पहले ही 20 साल पूरे हुए हैं लेकिन इस दौरान यहां 10 सरकारें वजूद में आ चुकी हैं। पिछले सप्ताह ही तीरथ सिंह रावत ने राज्य के 10 वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला है।

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    उत्‍तराखंड में क्या इस चुनाव में टूट पाएगा मिथक।

    राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Politics News उत्तराखंड को अलग राज्य बने अभी चार महीने पहले ही 20 साल पूरे हुए हैं, लेकिन इस दौरान यहां 10 सरकारें वजूद में आ चुकी हैं। पिछले सप्ताह ही तीरथ सिंह रावत ने राज्य के 10 वें मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला है। अब तक केवल एक बार ऐसा हुआ, जब किसी मुख्यमंत्री ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। अन्यथा हर बार सत्तारूढ पार्टी ने सरकार में नेतृत्व परिवर्तन किया, मगर कभी भी इस सियासी पैंतरे के बूते वह विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई।

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    उत्तराखंड सरकार में नेतृत्व परिवर्तन की शुरुआत राज्य गठन के बाद पहली अंतरिम सरकार के दौरान ही हो गई थी। नवंबर 2000 में उत्तराखंड वजूद में आया, लेकिन सवा साल की इस सरकार में भी मुख्यमंत्री बदला गया। भाजपा ने नित्यानंद स्वामी के स्थान पर 2001 में भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी। पार्टी के अंदरूनी कलह के कारण मुख्यमंत्री जरूर बदला गया मगर भाजपा साल 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई और कांग्रेस ने नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में सरकार बनाई।

    वर्ष 2007 में भाजपा की फिर सत्ता में वापसी हुई। भत सिंह कोश्यारी भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, मर भाजपा आलाकमान ने पूर्व केंद्रीय मंत्री भुवन चंद्र खंडूडी को मुख्यमंत्री बनाया। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य की पांचों सीटों पर करारी मात मिली तो खंडूडी को पद से हटना पडा और रमेश पोखरियाल निशंक मुख्यमंत्री बनाए गए। सवा दो साल बाद निशंक को हटाकर फिर खंडूडी को मुख्यमंत्री बनाया गया। मतदाता ने इस बार भी मुख्यमंत्री पद के बदलाव को नकार दिया और भाजपा को सत्ता से बाहर कर कांग्रेस की वापसी करा दी।

    वर्ष 2012 के तीसरे विधानसभा चुनाव में सत्ता कांग्रेस को मिली और मुख्यमंत्री बनाया गया विजय बहुगुणा को। जून 2013 की केदारनाथ आपदा के दौरान बहुगुणा सरकार की भूमिका को लेकर सवाल उठे तो साल 2014 की शुरुआत में बहुगुणा के उत्तराधिकारी के रूप में हरीश रावत को कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री का ताज पहना दिया। रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस में बडी टूट हुई, सरकार गिरते-गिरते बची। हरीश रावत ने सरकार तो बचा ली मगर 2017 के विधानसभा चुनाव में सत्ता नहीं बचा सके। एक दफा फिर उत्तराखंड की मतदाता ने सरकार में अस्थिरता के खिलाफ जनादेश देकर भाजपा को बहुमत सौंप दिया।

    मतदाता ने 2017 में भाजपा को तीन-चौथाई से ज्यादा सीटों पर जीत दिलाई। 70 सदस्यों की विधानसभा में भाजपा को 57 सीटें हासिल हुई। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद यह पहला अवसर था, जब किसी राजनीतिक दल को ऐसा जनादेश मिला। इससे पहले के तीन विधानसभा चुनाव में सत्ता पाने वाले दल या तो बहुमत के नजदीक पहुंचे या फिर मामूली बहुमत ही हासिल कर पाए। उस वक्त लगा कि अब भाजपा की सरकार बगैर अस्थिरता के अपना कार्यकाल पूरा करेगी, लेकिन चार साल पूरे होने से महज नौ दिन पहले नेतृत्व परिवर्तन हो गया। अब यह देखना होगा कि साल भर बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदाता का फैसला क्या होता है।

    तिवारी ने पूरे किए पांच साल, मगर सत्ता फिर भी बदली

    उत्तराखंड के 20 साल के इतिहास में हाल ही में तीरथ सिंह रावत ने दसवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। इस अवधि में केवल राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए। तिवारी को भी मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस के अंतरविरोध का सामना करना पडा। शायद ही कोई साल गुजरा हो, जब दो-तीन बार तिवारी को बदले जाने की चर्चा सियासी गलियारों में न चली हो। तिवारी तजुर्बेकार सियासतदां थे और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में शुमार भी, तो कांग्रेस आलाकमान उन्हें हटाने का साहस नहीं जुटा पाया। आलाकमान तो तिवारी का लिहाज कर गया, मगर मतदाता ने कांग्रेस के इस अंतरकलह को नजरअंदाज नहीं किया और साल 2007 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर कर अपना फैसला सुना दिया।

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