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अब सिस्मिक वेव बताएगी रेलवे ट्रैक पर है कौन सा वन्यजीव, ऐसे बचेगी उनकी जान

अब सिस्मिक वेव रेलवे ट्रैक पर होने वाले हादसों से वन्यजीवों को बचाएंगी। इससे मिलने वाले सिस्मिक सिग्नेचर से यह पता लग जाएगा कि रेलवे ट्रैक के पास कौन से जानवर की मौजूदगी है।

By Edited By: Published: Mon, 06 May 2019 03:00 AM (IST)Updated: Mon, 06 May 2019 08:27 PM (IST)
अब सिस्मिक वेव बताएगी रेलवे ट्रैक पर है कौन सा वन्यजीव, ऐसे बचेगी उनकी जान
अब सिस्मिक वेव बताएगी रेलवे ट्रैक पर है कौन सा वन्यजीव, ऐसे बचेगी उनकी जान

देहरादून, केदार दत्त। जिन तरंगों को मनुष्य अपने कानों से नहीं सुन सकता, अब वही तरंगें रेलवे ट्रैक पर होने वाले हादसों से वन्यजीवों को बचाएंगी। सिस्मिक वेव पर आधारित इस तकनीक पर देश में पहली बार उत्तराखंड के राजाजी टाइगर रिजर्व में काम हो रहा है। इससे मिलने वाले सिस्मिक सिग्नेचर से यह पता लग जाएगा कि रेलवे ट्रैक के पास कौन से जानवर की मौजूदगी है। इसके बाद तुंरत ही इसकी सूचना रिजर्व प्रशासन के साथ ही रेलवे अधिकारियों को दी जाएगी, ताकि वन्यजीवों को ट्रेन की चपेट में आने से बचाया जा सके। यह 'एडवांस एनिमल डिटेक्शन सिस्टम' करीब डेढ़ माह में आकार ले लेगा। राजाजी रिजर्व में इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से कांसरो-मोतीचूर- हरिद्वार के बीच होगा, जहां वन्यजीवों के ट्रेन की चपेट में आने की घटनाएं अक्सर सुर्खियां बनती हैं।

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राजाजी टाइगर रिजर्व भी देश के उन संरक्षित क्षेत्रों में शामिल हैं, जहां से गुजर रही रेलवे लाइन वन्यजीवों के लिए काल बन रही है। अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बीते साढ़े तीन दशक के वक्फे में ही इस रिजर्व व उससे लगे रेलवे ट्रैक पर 29 हाथियों की ट्रेन से कटकर मौत हो चुकी है। इसमें उत्तराखंड बनने के बाद से अब तक के 13 हाथी भी शामिल हैं। लगातार गहराती इस समस्या के निदान के मद्देनजर ही यहां सिस्मिक  आधारित 'एडवांस एनिमल डिटेक्शन सिस्टम' विकसित करने का निश्चय किया गया। केंद्र सरकार के उपक्रम सेंट्रल साइंटिफिक इन्स्ट्रूमेंटेशन आर्गनाइजेशन चंडीगढ़, भारतीय वन्यजीव संस्थान, विश्व प्रकृति निधि और राजाजी टाइगर रिजर्व इस पहल को मुकाम तक पहुंचाने में जुटे हैं।

सिस्मिक  व सिस्मिक सिग्नेचर

राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक पीके पात्रो बताते हैं कि देश में पहली बार वन्यजीव सुरक्षा के मद्देनजर सिस्मिक  पर आधारित इस तकनीक का इस्तेमाल राजाजी में किया जा रहा है। इसके तहत कांसरो-मोतीचूर के बीच रेलवे ट्रैक के दोनों ओर करीब 200 मीटर के दायरे में सेंसर लगाए गए हैं। इनके जरिये किसी भी जानवर के वहां आने पर भूमि में होने वाली हलचल की तरंगें सिस्टम को मिलेंगी। तरंगों के घनत्व के आधार पता चलेगा कि वहां कौन सा जानवर है। इस कड़ी में पालतू हाथी को चलाकर इसका मापन करा लिया गया है। साथ ही अन्य छोटे जीवों को लेकर आने वाली तरंगों का भी आकलन कर लिया गया है। इन्हें नाम दिया गया है सिस्मिक सिग्नेचर।

ऐसे काम करेगा सिस्टम

कंट्रोल रूम में लगे सिस्टम में सिस्मिक सिग्नेचर रिसीव होने पर सिस्टम तुरंत सक्रिय हो जाएगा। ऑटोमैटिक ही मैसेज के रूप में इसकी सूचना रिजर्व के कार्मिकों के साथ ही हरिद्वार रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर को जाएगी। इससे जहां रिजर्व का स्टाफ सतर्क हो जाएगा, वहीं स्टेशन मास्टर तब इस ट्रैक से गुजरने वाली ट्रेनों के लोको पायलट को गति सीमा नियंत्रित करने अथवा अन्य कदम उठाने को कहेंगे।

जून मध्य तक काम करने लगेगा सिस्टम

राजाजी रिजर्व के निदेशक पात्रों के मुताबिक इस सिस्टम को विकसित करने का कार्य पिछले आठ माह से चल रहा है। वर्तमान में डेमो भी किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जून मध्य तक यह सिस्टम काम करने लगेगा। हाथियों के साथ ही दूसरे वन्यजीवों की सुरक्षा के लिहाज से यह कदम खासा अहम होगा।

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