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देवभूमि में निर्मल गंगा के लिए काफी कुछ होना बाकी

गोमुख से ऋषिकेश तक ही गंगा के जल की गुणवत्ता उत्तम है, लेकिन इससे आगे हरिद्वार तक जगह-जगह सहायक नदियों के जरिये आ रहे मल मूल की मात्रा पानी को दूषित कर रही है।

By Edited By: Published: Sun, 23 Dec 2018 03:00 AM (IST)Updated: Sun, 23 Dec 2018 08:59 PM (IST)
देवभूमि में निर्मल गंगा के लिए काफी कुछ होना बाकी
देवभूमि में निर्मल गंगा के लिए काफी कुछ होना बाकी

देहरादून, केदार दत्त। राष्ट्रीय नदी गंगा भले ही हरिद्वार से आगे बहुत ज्यादा प्रदूषित हो, लेकिन उत्तराखंड में भी उसकी स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के तीन वर्षों के आंकड़ों पर आंकड़ों पर ही गौर करें तो गंगा अपने उद्गम स्थल गोमुख से लक्ष्मणझूला (ऋषिकेश) तक ही गंगा के जल की गुणवत्ता उत्तम है, लेकिन इससे आगे हरिद्वार तक जगह-जगह सहायक नदियों के जरिये आ रहे फीकल कॉलीफार्म (मल-मूल) की मात्रा पानी को दूषित कर रही है। साफ है कि लक्ष्मणझूला से हरिद्वार तक गंगा की निर्मलता के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

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जीवनदायिनी गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाना केंद्र व राज्य सरकारों की प्राथमिकता में शामिल है। इस कड़ी में नमामि गंगे परियोजना समेत अन्य योजनाओं के जरिये गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषणमुक्त करने को प्रयास चल रहे हैं, मगर आशानुरूप नतीजों का अभी इंतजार है। उत्तराखंड के क्रम में बात करें तो उद्गम स्थल गोमुख से लेकर लक्ष्मणझूला तक गंगा पूरी तरह स्वच्छ और निर्मल है। 

उत्तरकाशी, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, श्रीनगर में हुए प्रयासों के बूते यह संभव हो पाया है, लेकिन इससे आगे हरिद्वार तक उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। पीसीबी के 2016 और इस वर्ष जुलाई तक के आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। लक्ष्मणझूला तक गंगा जल सभी मानकों पर एकदम खरा है।

अलबत्ता, लक्ष्मणझूला से आगे हरिद्वार तक गंगा में मिल रही सहायक नदियों के साथ ही नालों के जरिये गंदगी गंगा में समा रहा है। यही सबसे बड़ी चिंता का कारण भी है। आंकड़े देखें तो देहरादून की सुसवा और सौंग नदी के जरिये सबसे अधिक गंदगी गंगा में जा रही है। सुसवा नदी में 2016 में फीकल कॉलीफार्म की मात्रा 1600 थी, जबकि 2018 में भी यह बरकरार है।

यह मानक से कई गुना अधिक है। इसी प्रकार सौंग नदी के अलावा नहरों के जरिये भी गंदगी गंगा में जा रही है। साफ है कि उत्तराखंड में गंगा स्वच्छता के लिए लक्ष्मणझूला से हरिद्वार तक गंगा में मिल रहे नदी-नालों को लेकर ठोस एवं प्रभावी कदम उठाने की दरकार है। 

हालांकि, अब देहरादून को भी नमामि गंगे परियोजना में शामिल किया गया है और इसके तहत एसटीपी समेत सुसवा व सौंग नदियों के जरिये गंगा में जा रही गंदगी को रोकने के उपायों को रणनीति तैयार हो रही है। इसके साथ ही लक्ष्मणझूला से लेकर हरिद्वार तक सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के निर्माण के साथ ही नालों की टैपिंग का कार्य चल रहा है। उम्मीद है कि अगले वर्ष से इन प्रयासों के आकार लेने पर गंगा स्वच्छता में अपेक्षित सुधार आएगा।

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