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12 साल बंद रही शहर के 'दिल' घंटाघर की धड़कन, चार माह चली और फिर ठप

घंटाघर की बंद पड़ी धड़कन चार माह धड़ककर फिर बंद हो गई। गत 31 अगस्त को करीब साढ़े नौ लाख रुपये में मंगाकर यहां स्थापित की गईं छह डिजिटल घड़ियां दो दिन पहले फिर बंद हुईं।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 05 Feb 2020 05:42 PM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2020 09:00 PM (IST)
12 साल बंद रही शहर के 'दिल' घंटाघर की धड़कन, चार माह चली और फिर ठप
12 साल बंद रही शहर के 'दिल' घंटाघर की धड़कन, चार माह चली और फिर ठप

देहरादून, जेएनएन। करीब 12 साल बाद शहर के 'दिल' घंटाघर की बंद पड़ी धड़कन चार माह धड़ककर फिर बंद हो गई है। गत 31 अगस्त को बंगलुरू कर्नाटक से लगभग साढ़े नौ लाख रुपये में मंगाकर यहां स्थापित की गईं छह डिजिटल घड़ियां दो दिन पहले फिर बंद हो गईं। इस मामले से बेखबर नगर निगम को मंगलवार की शाम स्थानीय लोगों से जानकारी मिली तो अफसर सक्रिय हुए। जांच कराई गई तो मालूम चला कि बिजली कनेक्शन कटने से घड़ियां बंद हुईं थीं। आनन-फानन में शाम को ही बिजली का कनेक्शन जोड़ा गया, लेकिन घड़ियां गलत वक्त बताती रहीं। बताया गया कि अब टाइम मिलान करना पड़ेगा, उसके बाद ही घड़ियां सुचारू होंगी।

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वर्ष 2007 में घंटाघर की सुईंया बंद पड़ गई थी। पुराने जमाने की मशीन और पुरानी तकनीक का उपचार न मिलने पर 2008 में नगर निगम ने घंटाघर की सुईंया चलाने पर दूसरे विकल्पों पर कसरत की। विचार हुआ कि इसकी मशीन की मरम्मत कराकर घड़ी चलाई जाए, लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ। फिर नई घड़ियां और मशीन लगाने पर विचार हुआ लेकिन बजट का अभाव होने से नगर निगम को हर बार हाथ पीछे खींच लेने पड़ रहे थे। ओएनजीसी ने पहल की और इसके सौंदर्यीकरण के लिए सीएसआर फंड से 80 लाख रुपये देने की बात कही। इसका काम दो साल पहले शुरू कराया जाना था, लेकिन इसकी नींव कमजोर मिली। 

फिर ब्रिडकुल के जरिए पहले इसकी नींव मजबूत की गई और अब सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा। इस बीच यहां कर्नाटक से नई घड़ियां मंगाई गईं और 12 साल से बंद पड़ी घड़ी को शुरू कर दिया गया। डिजिटल घड़ियां बिजली से संचालित होती हैं और इसके लिए नगर निगम ने नया कनेक्शन भी लिया। गत 31 अगस्त को महापौर सुनील उनियाल गामा और नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने घड़ियों का शुभारंभ किया। मौजूदा वक्त में घंटाघर में फव्वारे के साथ ही पार्क में हरियाली और लाइटिंग समेत दीवारों का पुर्ननिर्माण आदि का काम चल रहा है। इस बीच यहां लगाई गई नई घड़ियां फिर बंद हो गईं। मंगलवार शाम तक निगम अफसर इससे बेखबर रहे। डिजिटल घड़ियां बिजली से संचालित होती हैं और घंटाघर के सौंदर्यीकरण की जिम्मेदारी देख रहे निगम के अफसरों को पता ही नहीं था कि चार दिन से घंटाघर की बिजली ही नहीं आ रही। 

बनती-निरस्त होती रही डीपीआर 

घंटाघर के सौंदर्यीकरण की योजना साल 2007 में शुरू हुई थी, जबकि इसकी सुईयों ने काम करना बंद कर दिया था। उस दौरान एक निजी कंपनी ने यह जिम्मा उठाया मगर केवल घड़ी ठीक कराने पर सहमति दी गई। डीपीआर बनी मगर मामला टेंडर तक पहुंच खत्म हो गया। फिर साल 2013 में हुडको के साथ वार्ता आगे बढ़ी और सितंबर-2014 में 56 लाख 36 हजार की डीपीआर बनी। हुडको ने 40 लाख रुपये पर हामी भी भर दी थी, मगर फंड क्लीयरेंस नहीं मिल पाई। निगम ने मसूरी देहरा विकास प्राधिकरण के साथ मिलकर ओएनजीसी से बातचीत की। इसमें विज्ञापन के मसले पर मामला अटका रहा। इस बीच तीनों विभागों में बात चलती रही। 

नई डीपीआर भी तैयार की गई। इसमें तय हुआ कि ओएनजीसी घंटाघर पर अपने विज्ञापन लगा सकेगा। बाद में मामला नींव पर फंस गया। इसकी नींव बेहद कमजोर थी। निगम ने इसके लिए नई डीपीआर को तैयार किया और 60 लाख अलग से फंड दिया और ब्रिडकुल के जरिए नींव मजबूत कराई जाएगी। कुल मिलाकर पूरे कार्य पर करीब सवा करोड़ का खर्च आ रहा। 

घड़ी बंद होने के कारण में विरोधाभास 

घंटाघर की नई घड़ियां बंद होने के पीछे नगर निगम और ऊर्जा निगम के अफसरों के बयानों में विरोधाभास है। नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने बताया कि चार दिन पूर्व हाईटेंशन लाइन शिफ्ट करने को लेकर ऊर्जा निगम ने घंटाघर का कनेक्शन काटा था। तीन दिन तक घड़ियां इंवर्टर पर चलती रहीं और सोमवार सुबह बैटरी खत्म होने के बाद घड़ियां बंद हो गईं।

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मंगलवार की शाम ऊर्जा निगम ने लाइन सुचारू कर दी, जिस पर घड़ियां शुरू हो गईं। डेढ़ दिन घड़ी बंद रहने से अभी इसमें समय गड़बड़ा गया है। नगर आयुक्त ने बताया कि बुधवार सुबह तक इसका समय दुरुस्त कर दिया जाएगा। वहीं, ऊर्जा निगम के अधिशासी अभियंता (मध्य) मनीष चंद्रा ने बताया कि रविवार को घंटाघर की लाइन में लगी डिवाइस में ब्लास्ट हो गया था। जिसे सोमवार को ठीक करा दिया गया। जिसके बाद विद्युत आपूर्ति बहाल हो गई थी। 

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महापौर सुनील उनियाल गामा का कहना है कि घंटाघर हमारी विरासत का हिस्सा है और इसे सहेजना हमारा कर्तव्य है। इसकी घड़ी क्यों बंद हुई और निगम के जिन अफसरों की देखरेख में घंटाघर का कार्य कराया जा रहा है, वे कहां थे। इसके लिए रिपोर्ट मांगी जा रही। अब नियमित रूप से जांच कराई जाएगी कि घड़ियां सुचारू चल रही हैं या नहीं। जल्द बदले स्वरूप में घंटाघर लोगों के सामने होगा। यहां म्यूजिकल लाइट और फाउंटेन भी लग रहे हैं। 

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