सही भाव से न मिलने से किसान हाईवे किनारे फेंक रहे टमाटर
संवाद सूत्र चकराता जौनसार-बावर के सीमांत इलाके में सैकड़ों किसान नकदी फसलों का उत्पादन

संवाद सूत्र, चकराता: जौनसार-बावर के सीमांत इलाके में सैकड़ों किसान नकदी फसलों का उत्पादन कर रहे हैं, लेकिन दिल्ली-देहरादून की मंडी में टमाटर के भाव कम होने से ग्रामीण किसानों के चेहरे पर मायूसी छा गई। मंडी में टमाटर के सही रेट नहीं मिलने से किसानों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई। खेतों में दिन-रात पसीना बहा रहे किसानों को उनकी कृषि उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। टमाटर के रेट गिरने से मायूस छोटे किसान कृषि उपज को मंडी ले जाने के बजाय हाईवे किनारे फेंक रहे हैं। जिसे मवेशी चर रही है।
जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में अधिकांश ग्रामीण परिवारों की आर्थिकी कृषि-बागवानी से चलती है। यहां सैकड़ों लोग बड़े पैमाने पर नकदी फसलों का उत्पादन कर सीजन में करोड़ों रुपये का टमाटर और अन्य साग-सब्जी उगाते हैं। इन बार सीमांत बावर खत, देवघार, शिलगांव, बाणाधार, लखौ, कैलोऊ, कांडोई-भरम, बोंदूर खत के अलावा जौनसार के कई अन्य ग्रामीण इलाकों में टमाटर की अच्छी पैदावार है। अणू निवासी प्रगतिशील किसान केशवानंद शर्मा, भगतराम, चंद्रदत्त, चिल्हाड़ के पिताबंर दत्त बिजल्वाण, केसरीचंद, उर्बीदत्त बिजल्वाण, नंदलाल उनियाल, कोटी-बावर के पूर्व प्रधान एवं किसान दिनेश चौहान आदि का कहना है कि दिल्ली की मंडी में टमाटर लेकर गए जौनसार के किसानों को प्रति क्रेट टमाटर का भाव दो से तीन सौ रुपये के बीच मिल रहा है। जबकि उन्हें 120 रुपये प्रति क्रेट टमाटर का गाड़ी ढ़ुलान भाड़ा चुकाना पड़ रहा है। इसके अलावा खेतों में दिन-रात कड़ी मेहनत कर पसीना बहाने का कोई फायदा किसानों को नहीं मिल रहा। एक क्रेट टमाटर का वजन करीब 25 किलो है। मंडी में टमाटर के भाव गिरने से किसानों को प्रति किलो आठ से दस रुपये का भाव मिल रहा है। जबकि फुटकर में तीस से चालीस रुपये प्रति किलो रेट से टमाटर बिक रहा है। टमाटर के सही रेट नहीं मिलने से निराश छोटे किसान कृषि उपज को मंडी ले जाने के बजाय हाईवे किनारे फेंक रहे हैं। त्यूणी-चकराता हाईवे पर दारागाड़ से भंद्रौली के बीच सड़क किनारे जगह-जगह बिखरे पड़े टमाटर के कोई खरीददार नहीं मिलने से उसे बकरे चर रहे हैं। हाईवे पर टमाटर फसल की इस तरह बर्बादी देख सभी हैरान है। प्रभावित किसानों ने सरकार से कृषि उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की मांग की। जिससे खेतीबाड़ी पर निर्भर सैकड़ों किसानों की आर्थिकी में कुछ सुधार लाया सके।
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