ग्रीन जोन में होने के बाद भी उत्तराखंड के इस गांव के ग्रामीणों ने बढ़ाया लॉकडाउन
चमोली जिले के सुतोल गांव में ग्रामीणों ने खुद को मानकों में बांध दिया है। घाट ब्लॉक के इस दूरस्थ गांव में ग्रामीणों ने चार मई से 21 दिन का लॉकडाउन घोषित कर दिया है।
गोपेश्वर (चमोली), देवेंद्र रावत। कोरोना महामारी के दौर में जहां शहरों में शारीरिक दूरी के मानकों को ताक पर रखे जाने की शिकायतें मिल रही हैं, वहीं चमोली जिले के सुतोल गांव में ग्रामीणों ने खुद को मानकों में बांध दिया है। घाट ब्लॉक के इस दूरस्थ गांव में ग्रामीणों ने चार मई से 21 दिन का लॉकडाउन घोषित कर दिया है। जबकि, ग्रीन जोन में होने के कारण चमोली जिले में लोगों को तमाम तरह की छूट मिली हुई हैं।
500 की आबादी वाले सुतोल गांव में चौलाई, फाफर, आलू, राजमा आदि नकदी फसलों का बहुतायत में उत्पादन होता है। यहां ग्रामीण इन दिनों शारीरिक दूरी का पालन करते हुए खेती-किसानी में जुटे हैं। इन ग्रामीणों ने यह भी निश्चय किया कि वे महामारी के समूल नाश तक नियमों का कड़ाई से पालन करेंगे। इसके तहत उन्होंने गांव में चार मई से 21 दिन का लॉकडाउन घोषित कर दिया। इसके तहत कोई भी व्यक्ति गांव की सीमा से बाहर नहीं जा पाएगा। बाहर से आने वालों का हालांकि गांव में स्वागत है, लेकिन उन्हें अनिवार्य रूप से गांव से 500 मीटर की दूरी पर स्थित प्राथमिक विद्यालय में 14 दिन के क्वारंटाइन में रहना होगा। क्वारंटाइन में रहने वालों के भोजन की व्यवस्था ग्रामसभा कर रही है।
नायब तहसीलदार घाट राकेश देवली बताते हैं कि बाहरी राज्य व जिलों से अब तक सात लोग गांव लौटे हैं। इनमें से एक अभी क्वारंटाइन है और दो ने क्वारंटाइन पूरा कर लिया है। जबकि तीन लोग गैरसैंण में फैसेलिटी क्वारंटाइन में हैं। हालांकि, इन सभी को प्रशासन ने होम क्वारंटाइन में रहने को कहा था। लेकिन, ग्रामीणों ने अपने नियम खुद तय किए हैं।
कठोर फैसले से मजबूत हुई गांव की एकता
सुतोल के प्रधान राजपाल कुमार का कहना है देश को कोरोना मुक्त करने के लिए हर व्यक्ति का अनुशासित होना जरूरी है। जरा भी लापरवाही बड़े संकट की वजह बन सकती है। पूर्व जिला पंचायत सदस्य दर्शन सिंह रावत ने बताया कि ग्रामीणों के इस कठोर फैसले से गांव की एकता भी मजबूत हुई है। बताया कि गांव में बाहरी लोगों व व्यापारियों का आना भी मना है।
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बाजार से सामान लाने को वाहनों का रोस्टर
सुतोल निवासी देवेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके पास आठ छोटे वाहन हैं, जो लॉकडाउन के चलते फिलहाल खड़े हैं। हालांकि, जब ग्रामीणों को खाद्यान्न या अन्य आवश्यक वस्तुओं की जरूरत होती है, तो वह रोस्टर के हिसाब से तय वाहन को लेकर स्वयं 20 किमी दूर घाट पहुंचते है। बीमारों को अस्पताल पहुंचाने के लिए भी यही व्यवस्था है।
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