Uttrakhand Politics: पंजाब के बाद उत्तराखंड में पार्टी की समस्याओं को सुलझाने पर जोर
Uttrakhand Politics पिछले लगभग चार वर्षो से प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को इंदिरा हृदयेश से खासी ताकत मिलती थी। अब उनकी स्थिति कमजोर देखते हुए पार्टी का एक बड़ा धड़ा उन्हें बदलने की पुरजोर वकालत करने लगा है।
देहरादून, कुशल कोठियाल। पंजाब में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का मसला सुलझ गया है। तमाम दुश्वारियों के बाद पार्टी हाईकमान ने हल निकाल ही लिया। पंजाब की इस समस्या के समाधान के बाद उत्तराखंड के कांग्रेसी भी खासे उत्साहित हैं। चुनाव के मुहाने पर खड़े राज्य में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष का मसला करीब एक माह से लटका हुआ है। नेता प्रतिपक्ष का पद तो डा. इंदिरा हृदयेश के देहावसान के कारण रिक्त हुआ, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष बदलने का सुझाव हाईकमान तक पहुंच रखने वाले बड़े नेताओं का है। इनमें प्रदेश की राजनीति पर खासी पकड़ रखने वाले हरीश रावत प्रमुख हैं।
पिछले लगभग चार वर्षो से प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को इंदिरा हृदयेश से खासी ताकत मिलती थी। अब उनकी स्थिति कमजोर देखते हुए पार्टी का एक बड़ा धड़ा उन्हें बदलने की पुरजोर वकालत करने लगा है। प्रांत में अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का चयन यूं तो कांग्रेस का आंतरिक मामला है, लेकिन जिस तरह की खींचतान चल रही है, उससे यह जाहिर होता है कि कांग्रेस के लिए यह सात माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से कम महत्वपूर्ण नहीं है। पंजाब में तो सरकार भी कांग्रेस की है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी शासित राज्य में तो पार्टी को संगठन के बूते ही लड़ना होगा। लिहाजा प्रदेश अध्यक्ष की अहमियत बढ़ गई है।
पंजाब में प्रदेश अध्यक्ष के समाधान में निर्णायक भूमिका निभाने वाले हरीश रावत स्वयं उत्तराखंड कांग्रेस के कैप्टन हैं। यहां प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का मुद्दा उठाने, उलझाने, गरमाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हरीश रावत इसके समाधान में भी निर्णायक भूमिका निभाएंगे। इस दौरान वह स्वयं पंजाब कांग्रेस को लेकर मसरूफ रहे, अब उम्मीद जताई जा रही है कि उत्तराखंड कांग्रेस के लिए उपलब्ध होंगे।
पार्टी हाईकमान के लिए भी पंजाब संकट उत्तराखंड के मुकाबले ज्यादा गहरा था। यही वजह है कि छोटे राज्य का मसला वरीयता नहीं प्राप्त कर सका। प्रदेश में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है। कभी उत्तराखंड के राजनीतिक हलकों में एकाधिकार सा रखने वाली पार्टी वर्तमान में सियासी मुफलिसी से गुजर रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में तो कई पार्टी दिग्गज भाजपा में शामिल हो गए। विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज, डा. हरक सिंह, यशपाल आर्य जैसे दिग्गजों का कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होना कांग्रेस के लिए इतना बड़ा झटका था कि अभी तक पार्टी पटरी पर नहीं आ पाई। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश का गुजर जाना भी पहले से ही बड़े चेहरों की कमी से जूझ कांग्रेस के लिए बड़ी हानि रही।
चुनाव से पहले पार्टी का चेहरा घोषित करने का अघोषित अभियान चला रहे हरीश रावत अब अपने स्तर का अकेला चेहरा रह गए हैं। हालांकि कांग्रेस के प्रांतीय नेता अब भी कह रहे हैं कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में ही होगा। पार्टी हाईकमान का रुख भी सामूहिक नेतृत्व की तरफ रहा है। यही देखते हुए रावत को भावी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने वाले धड़े ने प्रदेश अध्यक्ष बदलने की मांग को हवा दी। अगर रावत अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदेश अध्यक्ष पद पर मनपसंद को बिठा पाए, तो बिना कुछ किए ही वह चुनाव में कांग्रेस का स्वाभाविक चेहरा हो जाएंगे। इसके अलावा, टिकट वितरण में भी वह निर्णायक हो जाएंगे। इस अंदेशे को देखते हुए पार्टी में उनके विरोधी सतर्क और सक्रिय हो गए हैं।
[राज्य संपादक, उत्तराखंड]