उत्तराखंड में इन 'घुसपैठियों' के खतरे से सहमे जंगल, जैवविविधता के लिए है खतरनाक
उत्तराखंड के जंगल खौफ के सात सायों से सहमे हुए हैं। मैदान से लेकर पहाड़ तक सभी जगह जंगलों में घुसपैठ करने वाली ये सात वनस्पतियां जैवविविधता के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं।
By Edited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 03:00 AM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 10:46 AM (IST)
देहरादून, केदार दत्त। जैवविविधता के लिए मशहूर उत्तराखंड के जंगल 'खौफ' के सात सायों से सहमे हुए हैं। मैदान से लेकर पहाड़ तक सभी जगह जंगलों में घुसपैठ करने वाली ये सात वनस्पतियां जैवविविधता के लिए खतरनाक साबित हो रही हैं। इन अनुपयोगी वनस्पतियों के उन्मूलन को 2010 से कोशिशें हो रही हैं, मगर अभी तक प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पाया है। ऐसे में वन महकमे की चिंता भी बढ़ गई है। हालांकि, इस बार प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैंपा) से मिले संबल के बूते इन वनस्पतियों के खिलाफ मोर्चा खोला जा रहा है।
राज्य के जंगलों पर पारिस्थितिकी के लिए खतरनाक मानी जानी वाली प्रजातियों का हमला तेजी से बढ़ा है। लैंटाना, गाजरघास और कालाबांस जैसी झाड़ीनुमा वनस्पतियों ने पहले ही नाक में दम किया हुआ है। शायद ही कोई क्षेत्र अथवा जंगल ऐसा होगा, जहां इनकी घुसपैठ न हुई हो। झाड़ीनुमा ये वनस्पतियां अपने आसपास दूसरी प्रजातियां नहीं पनपने देती। इसी तरह के गुणों वाली बला (सीडाकार्डियो फोलिया), वासिंगा (गोगोस्टीमोन बैंगाली), वासुकि (एढाटोडा वासिका) और अमेला (पॉलीगोनम) जैसी वनस्पतियों ने भी जंगलों में घुसपैठ की है।
चाहे वह कॉर्बेट हो या राजाजी टाइगर रिजर्व या दूसरे संरक्षित-आरक्षित वन क्षेत्र, सभी जगह घुसपैठ करने वाली इन वनस्पतियों ने जड़ें जमाई हैं। जंगलों में इनके पैचेज साफ नजर आ रहे हैं। कॉर्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व को ही लें, तो वहां 40 से 50 फीसद हिस्से पर लैंटाना का कब्जा है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में पॉलीगोनम का खतरा अधिक बढ़ा है। पर्यावरण के लिए खतरनाक इन सात प्रजातियों पर नियंत्रण को पिछले 10 वर्षों से प्रयास हो रहे हैं, मगर ये फलीभूत नहीं हो पाए। जाहिर है कि इसे लेकर सिस्टम में वह तेजी नजर नहीं आई, जिसकी दरकार है। अगर ठीक से कदम उठाए गए होते तो आज स्थिति काफी नियंत्रण में हो चुकी होती। हालांकि, अब इसके लिए गंभीरता से कदम उठाए जा रहे हैं।
प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी ने बताया कि वासस्थल विकास योजना के तहत वन क्षेत्रों में घुसपैठ करने वाली सात अनुपयोगी वनस्पतियों के उन्मूलन की कार्ययोजना को गंभीरता से धरातल पर उतारा जा रहा है। अनुपयोगी वनस्पतियों को हटाकर उनकी जगह घास प्रजातियां रोपी जाएंगी।
आरएसएस ने बांटे गिलोय के पौधे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महाराणा प्रताप नगर की ओर से शुक्रवार को विश्व आयुर्वेद परिषद उत्तराखंड, स्पोर्ट्स एंड फिटनेस ग्रुप और रुद्राक्ष आयुर्वेदिक चिकित्सालय के साथ चमन विहार कॉलोनी में औषधीय पौधे गिलोय और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए काढ़ा का वितरण किया गया।
इस दौरान संघ ने लोगों को आयुर्वेद की महत्ता और रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर योगासनों के भी बारे में बताया।संघ के पर्यावरण और जल संरक्षण गतिविधि के प्रांत प्रमुख रघुवीर सिंह रावत मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। उन्होंने घरों में औषधीय पौधों के रोपण, जल संरक्षण और कूड़ा प्रबंधन करने की अपील की। विश्व आयुर्वेद परिषद के प्रांत अध्यक्ष डॉ. यतेंद्र सिंह मलिक ने कहा कि कोरोना महामारी के इस दौर में बहुत लाभदायक है गिलोय सर्वश्रेष्ठ रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला औषधीय पौधा है।
इसे शास्त्रों में अमृता नाम दिया गया है। परिषद ने इस वर्ष हर घर गिलोय कार्यक्रम के तहत महर्षि चरक जयंती तक ग्यारह हजार गिलोय पौधों के वितरण का लक्ष्य रखा है। परिषद के उपाध्यक्ष और रुद्राक्ष आयुर्वेदिक चिकित्सालय के निदेशक वैद्य विनीश गुप्ता ने स्वास्थ्य रक्षा के लिए आयुर्वेद में वर्णित स्वस्थवृत जीवनशैली, आहार विहार के बारे में विस्तार से लोगों को जानकारी दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्व आयुर्वेद परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ.यतेंद्र मलिक ने की। इस दौरान महानगर व्यवस्था प्रमुख प्रवीण जैन, प्रचार प्रमुख हिमांशु अग्रवाल सह महानगर कार्यवाह संजय तोमर, डॉ. पीके गुप्ता, सुभाष रस्तोगी आदि ने सहयोग दिया।
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