Uttarkashi Disaster: श्रीकंठ पर्वत के बेस पर विशाल गड्ढे से गहराया रहस्य, कहीं ये ही तो नहीं आपदा का कारण
उत्तरकाशी के धराली गांव में खीर गंगा से आई जलप्रलय के कारणों का पता चला है । वैज्ञानिकों के अनुसार श्रीकंठ पर्वत क्षेत्र में भारी वर्षा और मलबे के कारण यह आपदा आई। हिमनद विज्ञानी डा डीपी डोभाल और भूविज्ञानी प्रो. एमपीएस बिष्ट ने श्रीकंठ पर्वत के पास एक 20 मीटर गहरे गड्ढे को भी जलप्रलय का कारण बताया है।

सुमन सेमवाल, देहरादून। उत्तरकाशी के धराली गांव पर खीर गंगा से निकली जलप्रलय के कारणों पर काफी कुछ साफ किया जा चुका है। विज्ञानी यह साफ कर चुके हैं खीर गंगा के अपर कैचमेंट (ऊपरी जलग्राही क्षेत्र) में कोई ग्लेशियर झील नहीं फटी है।
आपदा की प्रमुख वजह खीर गंगा के उद्गम स्थल श्रीकंठ पर्वत क्षेत्र में निरंतर भारी वर्षा और उससे जगह जगह जमा भारी मलबे के ट्रिगर होने को माना गया। अब विज्ञानियों ने पाया है कि श्रीकंठ पर्वत के बेस से करीब डेढ़ किलोमीटर नीचे लगभग 20 मीटर गहरा गड्ढा है। इसके चारों ओर ताजा मलबे के निशान भी हैं।
ऐसे में बहुत संभव है कि यहां पानी जमा हुआ और फिर ऊपर से नए मलबे आदि के साथ यह पानी पूरे वेग से जलप्रलय के रूप में धराली पर टूट पड़ा।
हिमनद विशेषज्ञ और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व वरिष्ठ विज्ञानी डा डीपी डोभाल के अनुसार खीर गंगा तीन नालों से मिलकर बनी है। दो नाले श्रीकंठ पर्वत के इर्द गिर्द से बह रहे हैं, जबकि तीसरा नाला हर्षिल की दिशा से आकर खीर गंगा में मिलता है। इसी क्षेत्र में 20 मीटर गहरा गड्ढा बताता है की यहां से कुछ ऐसा हुआ है, जो खीर गंगा को रौद्र रूप में ले आया।
एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. एमपीएस बिष्ट भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। दोनों विशेषज्ञों के अनुसार, चूंकि ऊपरी क्षेत्र में भारी वर्षा निरंतर जारी रही, ऐसे में गड्ढे वाला भाग पानी से भर गया होगा। इस पूरे क्षेत्र में भारी मलबा पहले से जमा था। ऐसे में संभव है कि किसी कारण यह भाग टूटा या ग्लेशियर से एवलांच आने से ऐसा हुआ होगा। यदि ऐसा नहीं होता तो गड्ढे के इर्दगिर्द ताजा मलबा जमा नहीं होता।
श्रीकंठ पर्वत की रेकी कर लौटे एसडीआरएफ और निम के दल की ओर से प्राप्त वीडियो और चित्र में गड्ढे की गहराई का अनुमान तो लग रहा है, लेकिन आकार पता नहीं चल पा रहा है। फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस गड्ढे में भी आपदा का रहस्य छिपा हो सकता है।
अब 4500 मीटर पर भारी वर्षा से तेजी से पिघल रही बर्फ
डा डीपी डोभाल के अनुसार पूर्व में 4500 मीटर की ऊंचाई पर बेहद कम वर्षा होती थी। अधिक ऊंचाई पर सीधे बर्फबारी होने से ग्लेशियर महफूज रहते थे। अब 4500 और इससे अधिक ऊंचाई पर भी तेज वर्षा होने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। ऐसे में गड्ढे के पानी और आसपास जमा मलबे को एवलांच की दशा में बड़ा हिमखंड भी ट्रिगर कर सकता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।