उत्तराखंड में कचरे से काला सोना बनाने पर संकट, NTPC ने पीछे खींचे हाथ
उत्तराखंड में कचरे से काला सोना बनाने की परियोजना संकट में है। एनटीपीसी ने परियोजना से हाथ खींच लिए हैं, जिसके कारण अनुमति के लिए उन्हें फिर से पत्र भेजा गया है। एनटीपीसी की अनुमति के बाद ही प्रोजेक्ट आगे बढ़ेगा। इस वजह से परियोजना का भविष्य अनिश्चित है।

परियोजना को लेकर टीएचडीसी ने पुन: एनटीपीसी को प्रस्ताव भेजा
अश्वनी त्रिपाठी, जागरण, देहरादून। गढ़वाल के सभी जिलों से एकत्रित कचरे से हरिद्वार में काला सोना (हरित कोयला) बनाने की परियोजना संकट में पड़ गई है। एनटीपीसी ने इस प्रोजेक्ट से हाथ पीछे खींच लिए हैं। एनटीपीसी ने साफ किया कि टीएचडीसी का कोई भी करार एनटीपीसी की सहमति के बिना मान्य नहीं होगा। अब परियोजना को लेकर टीएचडीसी ने पुन: एनटीपीसी को प्रस्ताव भेजा है। नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन की अनुमति के बाद ही परियोजना आगे बढ़ाई जाएगी।
हरित कोयला प्राेजेक्ट को लेकर टीएचडीसी-यूजेवीएन एनर्जी कंपनी लिमिटेड व नगर निगम हरिद्वार के बीच करार हुआ था। इसमें 140 करोड़ की लागत से हरिद्वार के सराय क्षेत्र में 10 एकड़ भूमि पर प्लांट लगना था। इसमें प्रतिदिन 400 टन कचरे को निस्तारित कर 140 टन हरित कोयले का निर्माण किया जाना प्रस्तावित था।
अब एनटीपीसी के पीछे हटने से परियोजना की गति थम गई है। जानकारी के अनुसार शहरी विकास विभाग ने सभी प्राथमिक अनुमतियां दे दी थीं, लेकिन एनटीपीसी ने बगैर अनुमति करार मानने से इन्कार कर दिया है। इससे परियोजना फाइलों में दब गई है।
एनटीपीसी का इंकार क्यों...?
टिहरी जलविद्युत विकास निगम लिमिटेड का संचालन कुछ वर्षों पूर्व एनटीपीसी के हाथों में आ गया है। एनटीपीसी का कहना है कि अब कोई भी करार एनटीपीसी के निर्देश या सहमति पर ही होगा। इसीलिए इस करार को एनटीपीसी से मानने से इंकार किया है।
गढ़वाल के इन जिलों का कचरा होता निस्तारित 
टारिफिकेशन प्रक्रिया से तैयार होता हरित कोयला
हरित कोयला सालिड वेस्ट, जैविक अपशिष्ट, कृषि अवशेष या सूखी पत्तियों आदि को 200–300 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर सीमित आक्सीजन में टारिफिकेशन प्रक्रिया से गुजारकर तैयार किया जाता है। इससे नमी निकल जाती है और एक ठोस, उच्च-ऊर्जा-घनत्व वाला ईंधन बनता है। इसका प्रयोग थर्मल पावर प्लांट्स में कोयले के विकल्प के रूप में, सीमेंट, स्टील, पेपर, ईंट-भट्ठों में ग्रीन फ्यूल, बायोचार और ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं के पूरक रूप में किया जाता है।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टारिफाइड चारकोल की कीमत करीब 8,000–12,000 रुपये प्रति टन है। कुछ पायलट परियोजनाएं (दिल्ली, इंदौर, नागपुर, हैदराबाद) इसे 9–10 रुपये प्रति किलो तक की कीमत पर बेच रही हैं।
गंगा में थमता प्रदूषण, शहरों में होती सफाई
हरिद्वार शहर रोज़ाना 380 टन से अधिक कचरा उत्पन्न करता है, जो यात्रा सीजन में कई गुना बढ़ जाता है। यदि हरित कोयला प्लांट शुरू हो जाता, तो हरिद्वार समेत गढ़वाल के समस्त जिलों का लगभग पूरा कचरा वैज्ञानिक रूप से निस्तारित होता। इससे गंगा में प्रदूषण कम, ऊर्जा उत्पादन स्वच्छ और नगरों की सफाई व्यवस्था स्थायी होती।
परियोजना की अनुमति के लिए पुन: एनटीपीसी को पत्र भेजा गया है, एनटीपीसी की अनुमति के बाद प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जाएगा।
-संदीप कुमार- महाप्रबंधक-टीएचडीसी

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