Uttarakhand Tourism: मैरीन ड्राइव तक पहुंचने में अभी लगेगा और समय, जानिए वजह
उत्तराखंड की नैसर्गिक सुंदरता से बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्यटकों को कुछ अलग रोमांच देने के लिए श्रीगनर गढ़वाल में अलकनंदा नदी के किनारे मैरीन ड्राइव बनाने का निर्णय लिया गया। उम्मीद जताई गई कि यह पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बनेगा।
विकास गुसाईं, देहरादून। उत्तराखंड की नैसर्गिक सुंदरता से बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्यटकों को कुछ अलग रोमांच देने के लिए श्रीगनर गढ़वाल में अलकनंदा नदी के किनारे मैरीन ड्राइव बनाने का निर्णय लिया गया। उम्मीद जताई गई कि यह पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बनेगा। कार्ययोजना के अनुसार अलकनंदा नदी के तट पर 7.5 किमी लंबी मैरीन ड्राइव बनाई जाएगी, जो पंचपीपल से लेकर नवनिर्मित चौरास मोटर पुल तक होगी।
मैरीन ड्राइव कुल 12 मीटर चौड़ाई वाले टू लेन में बनेगी। पूरी भूमि उपलब्ध न होने के कारण इसे वाया डक्ट (नदी के ऊपर पिलर व सड़क) तकनीक से बनाने का निर्णय लिया गया। इसके निर्माण का जिम्मा लोक निर्माण विभाग को दिया गया। विभाग को दो साल तो डीपीआर बनाने वाली फर्म को तय करने में लग गए। इसके बाद प्रशासकीय और वित्तीय स्वीकृति को केंद्र को पत्र भेजा गया, जिसकी स्वीकृति का इंतजार किया जा रहा है।
जेल के निर्माण में बजट का रोड़ा
प्रदेश में कैदियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए नई जेल की जरूरत महसूस हुई। चार साल में छह नई जेल बनाने का निर्णय लिया गया। अभी तक इनमें से केवल दो पर ही काम शुरू हो पाया है। प्रदेश में इस समय जेलों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। प्रदेश की 11 जेलों में 3420 कैदियों को रखने की क्षमता है। आलम यह है कि इनमें 5800 सौ कैदी रखे हए हैं। जेलों में क्षमता से अधिक कैदी का मसला विधानसभा में भी उठ चुका है। सरकार ने चंपावत, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, उधमसिंह नगर और उत्तरकाशी में जेल बनाने की घोषणा की। इनके लिए जमीन भी तलाश ली गई। जब इन्हें बनाने की बात। सीमित बजट होने के कारण केवल चंपावत व पिथौरागढ़ में ही जेल बनाने को मंजूरी मिल पाई है। इसके कारण कैदियों को बैरकों में पांव पसारने तक की पूरी जगह नहीं मिल पा रही है।
बेनामी संपत्ति पर नहीं किसी की नजर
उत्तराखंड में बीते कुछ वर्षों में जमीन की खरीद फरोख्त में काफी तेजी आई है। इसके साथ ही इनसे विवाद भी जुड़े हैं। इसमें कई सफेदपोश के नाम भी सामने आए। इसे देखते हुए निर्णय लिया गया कि भ्रष्ट राजनीतिज्ञ, नौकरशाहों और उद्योगपतियों की बेनामी संपत्ति को सामने लाने को सख्त कानून बनाया जाएगा। कहा गया कि जनता से भी इस कानून को बनाने के सुझाव लिए जाएंगे। प्रदेश में सभी बेनामी संपत्तियों की सूची तैयार की जाएगी। इसके लिए संपत्ति क्रय करने वाले व्यक्ति की आय के स्रोत, अचल संपत्ति के क्रय के बाद मौजूदा प्रकृति, क्रय करने के कारण आदि बिंदु शामिल कर जांच होगी। जिससे बेनामी संपत्ति को आसानी से पकड़ा जा सके। कहा गया कि बेनामी संपत्ति राज्य सरकार में निहित होगी तो सरकारी योजनाओं के लिए जमीन मिल सकेगी। इससे काफी उम्मीदें भी जगीं मगर अफसोस, अभी तक यह योजना धरातल पर नहीं उतर सकी है।
सांसद आदर्श गांवों का थर्ड पार्टी ऑडिट
प्रदेश के सांसद आदर्श गांव में हुए विकास कार्यों की सही स्थिति जानने को लेकर अभी तक थर्ड पार्टी ऑडिट नहीं हो पाया है। यहां तक कि जिलों के लिए नामित किए गए प्रभारी सचिवों ने इन गांवों में जाकर भौतिक निरीक्षण करने की जहमत नहीं उठाई है। दरअसल, दो साल पहले सांसद आदर्श ग्रामों की समीक्षा बैठक में सांसद प्रतिनिधियों द्वारा इसमें विकास कार्यों को लेकर प्रस्तुत किए गए आंकड़ों पर सवाल उठाए। कहा गया कि इन आंकड़ों और धरातल पर हुए विकास कार्यों की तस्वीर बिल्कुल अलग है। बात मुख्यमंत्री तक पहुंची तो उन्होंने सभी जिलों के प्रभारी सचिवों को निर्देश दिए कि 45 दिन में एक बार आदर्श गांवों में जाकर भौतिक निरीक्षण करें। इसके लिए भ्रमण कैलेंडर भी बनाकर उपलब्ध कराया जाए। मुख्यमंत्री के निर्देशों पर सबने अपनी सहमति भी जताई मगर इसके बाद धरातल पर कुछ नहीं हुआ। इसके बाद राज्यसभा का एक चुनाव भी हो गया है।
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