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    Uttarakhand News: फूलों की घाटी में अपनी महक बिखेरने लगा है ब्रह्मकमल, पहली बार समय से पहले खिला यह पुष्प

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Sat, 02 Jul 2022 08:36 PM (IST)

    फूलों की घाटी सहित हेमकुंड वैली में ब्रह्मकमल से गुलजार हो गई है। पहली बार समय से पहले राज्य पुष्प ब्रह्मकमल खिला है। आमतौर पर यह पुष्प जुलाई के अंत तक खिलता है। बता दें कि राज्‍य में इस पुष्प की 28 प्रजाति मिलती हैं।

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    फूलों की घाटी सहित हेमकुंड वैली में राज्य पुष्प ब्रह्मकमल अपनी महक बिखेरने लगा है।

    संवाद सूत्र, जोशीमठ (चमोली): फूलों की घाटी सहित हेमकुंड वैली में राज्य पुष्प ब्रह्मकमल अपनी महक बिखेरने लगा है। साथ ही फूलों की घाटी में मानसून के बाद अन्य फूलों के भी दीदार होने लगे हैं।

    उत्तराखंड में मिलती है इस दिव्य पुष्प की 28 प्रजाति

    देवपुष्प ब्रह्मकमल गढ़वाल उच्च हिमालयी क्षेत्र अटला कोटी से लेकर श्री लोकपाल हेमकुंड घाटी आस्था पथ पर अपनी महक बिखेर रहा है। उत्तराखंड में इस दिव्य पुष्प की 28 प्रजाति पाई जाती हैं।

    अमूमन यह पुष्‍प जुलाई के अंत अथवा अगस्त में है खिलता

    यह पुष्प उत्तराखंड में पंच केदार, पांगर चुला, भनाई, नंदी कुंड, नीलकंठ, कागभुशंडी, चेनाप घाटी, सतोपंथ, डयाली सेरा, ऋषि कुंड, सहस्त्र ताल, रुद्रनाथ क्षेत्र में खिलता है। ब्रह्म कमल पुष्प, अमूमन जुलाई के अंत अथवा अगस्त में खिलता है, लेकिन इस बार यह पुष्प जून के अंतिम सप्ताह में ही खिल उठा है।

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    चार हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर खिलता है

    चार हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर खिलने वाला ब्रह्मकमल पुष्प ब्रह्मकमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम सिसुरिया आब्लिटा है।

    इस बार समय से पहले ही खिले राज्य पुष्प ब्रह्मकमल

    लोकपाल घाटी के जानकार और प्रकृति प्रेमी रघुवीर सिंह चौहान व राम नारायण भंडारी ने श्री लोकपाल तीर्थ से लौटकर बताया कि इस बार राज्य पुष्प ब्रह्मकमल समय से पहले ही खिल गया है। लोकपाल घाटी व फूलों की घाटी में दुर्लभ ब्रह्म कमल पुष्प महक रहे हैं।

    मां नंदा की पूजा में चढ़ता है ब्रह्मकमल

    ब्रह्मकमल मां नंदा का प्रिय पुष्प हैं, इसलिए इसे नंदा अष्टमी में तोड़ा जाता है। ब्रह्मकमल साल में एक बार खिलता है, जोकि सिर्फ रात के समय खिलता है। जले-कटे में, सर्दी-जुकाम, हड्डी के दर्द आदि में इसका उपयोग किया जाता है।

    इसे सुखाकर कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अल्सर और कैंसर रोग के उपचार में इसकी जड़ों से प्राप्त होने वाले तेल का उपयोग होता है। इस तरह औषधीय पौधा होने के साथ ही इस पौधे का विशेष धार्मिक महत्व भी है।