आइए, इस भीड़ के मूड-मिजाज के अंदर झांकते हैं
उत्तराखंड में प्रधानमंत्री की रजत जयंती समारोह में विशाल जनसमूह उमड़ा, जो देवभूमि के अटूट विश्वास का प्रतीक है। लोगों ने उत्साहपूर्वक मोदी और धामी के समर्थन में नारे लगाए। प्रधानमंत्री ने राज्य के विकास पर संतोष व्यक्त किया और भविष्य के लिए मार्गदर्शन दिया। उन्होंने धामी सरकार के सख्त कानूनों और आपदा प्रबंधन की सराहना की, जिसे जनता का समर्थन मिला। यह आयोजन आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है।

आइए, इस भीड़ के मूड-मिजाज के अंदर झांकते हैं।
मनोज झा, राज्य संपादक, उत्तराखंड। भीड़ के कई मायने और कई व्याख्याएं हो सकती हैं। राजनीतिक आयोजनों या रैलियों में आने वाली भीड़ उसकी सफलता की मानदंड भी होती हैं। कई बार भीड़ जुटाई जाती है और कई बार यह स्वतःस्फूर्त उमड़ती है। जेन-जी के इस दौर में बिना किसी आह्वान के उमड़ने वाली भीड़ अक्सर बदलाव या आक्रोश की प्रतिध्वनि मानी जाती है।
ऐसे में यदि किसी राजनीतिक आयोजन में चौतरफा उमड़ा जनसैलाब अपने नेता को गौर से सुने और उसके पक्ष में जिंदाबाद के नारे लगाए तो माना जाना चाहिए कि राजनीति के प्रति आमलोगों का भरोसा अभी भी बना हुआ है। दूसरे शब्दों में जनमानस की यह उम्मीद बरकरार है कि सच्चे मन से प्रयास हो तो राजनीति या सरकारों के पास हर मुश्किल का समाधान है।
उत्तराखंड की स्थापना के रजत जयंती समारोह में रविवार को प्रधानमंत्री की सभा में जिस तरह विशाल भीड़ उमड़ी, वह कहीं न कहीं इस बात का सीधा संकेत है कि नरेन्द्र मोदी के प्रति देवभूमि का भरोसा आज भी रत्ती भर डिगा नहीं है। वे भावपूर्ण आंखें, आश्वस्ति भरे चेहरे और असंख्य उठे हाथ बता रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी के अभिभावकत्व में उत्तराखंड की दशा और दिशा दुरुस्त है। यह जनज्वार कहीं न कहीं धामी सरकार के प्रति भी प्रदेश के आम जनमानस के भरोसे की झलक थी।
विश्लेषकों के मुताबिक आज की सभा में उमड़ी भीड़ ने उत्तराखंड में अब तक के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों की दृष्टि से देखें तो वाकई इतनी बड़ी भीड़ का उमड़ना असामान्य ही माना जाएगा। कार्यक्रम में प्रदेश भर से लोग ऐसे आए, मानो राजधानी देहरादून में उनका कोई निजी कार्यक्रम हो।
पिथौरागढ़-मुनस्यारी से लेकर उत्तरकाशी-चमोली जैसे दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों से आ रही भीड़ का एक ही गंतव्य था- एफआरआइ का मैदान। बैनर, पोस्टर, झंडे, तख्तियां, बैलून हों या फिर कमीज और टोपी, हर तरफ मोदी, धामी या फिर भाजपा का कमल निशान। कई हाथों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीरें भी थीं।
लोगों में मोदी को सुनने और देखने के प्रति उत्साह और ललक दोनों थी। इस भीड़ और उसके मिजाज को देखकर प्रधानमंत्री गदगद भी हुए। प्रधानमंत्री ने अपने पूरे संबोधन के दौरान उत्तराखंड से अपने विशेष लगाव और स्नेह को कई बार प्रदर्शित भी किया। उन्होंने उत्तराखंड के 25 साल की यात्रा पर संतोष तो जताया, लेकिन आगे के लिए कमर कसने का आह्वान भी किया।
बताया कि राज्य गठन के समय इस पर्वतीय प्रदेश के लिए किस तरह कई मुश्किल चुनौतियां थीं और उनसे पार कैसे पाया गया। धामी सरकार की प्रशंसा के क्रम में उन्होंने उत्तराखंड के उन सख्त कानूनों का उल्लेख किया, जिसने देश भर में ख्याति पाई।
इस क्रम में उन्होंने यूसीसी, दंगा नियंत्रण, मतांतरण, लैंड जिहाद और जनसांख्यिकी बदलाव जैसी चुनौतियों से पार पाने के लिए बनाए गए कानूनों का साफ-साफ उल्लेख भी किया। उन्होंने कुशल आपदा प्रबंधन और पीडितों को तत्परता से राहत पहुंचाने को लेकर भी मुख्यमंत्री की पीठ थपथपाई। प्रधानमंत्री को पता था कि प्रदेश सरकार के इन कदमों ने देवभूमि के निवासियों का दिल जीता है।
भीड़ का मिजाज भांपते हुए प्रधानमंत्री ने जिस तरह प्रदेश के भविष्य का रोडमैप दिखाया, दरअसल वह आगामी विधानसभा चुनाव का एजेंडा है। ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में धामी सरकार इस एजेंडे पर मजबूती से चलते हुई दिखाई भी देगी।
इस विशाल आयोजन में युवा और महिलाओं की विशेष भागीदारी इस बात का संकेत माना जा सकता है कि मोदी और धामी की जोड़ी पर इन वर्गों का भरोसा निरंतर मजबूत हुआ है। देवभूमि की पवित्रता और आध्यात्मिकता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए संतों ने धामी सरकार को आशीर्वाद भी दिया। कुल मिलाकर आज की यह भीड़ राजनीति को कई संकेत और सबक दे गई है।

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