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    त्वरित टिप्पणी: ...क्योंकि पत्थर को तबीयत से उछाला गया

    Updated: Thu, 24 Jul 2025 05:08 PM (IST)

    उत्तराखंड में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देना कठिन है पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे मुमकिन कर दिखाया है। उन्होंने केंद्र सरकार के साथ मिलकर राज्य के औद्योगिक विकास को गति दी है। दवा ऑटो पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्रों में राज्य आगे बढ़ रहा है। सरकार ने सिंगल विंडो सिस्टम को प्रभावी बनाने और बिजली में सब्सिडी देने जैसे कई कदम उठाए हैं जिससे निवेश आकर्षित हुआ है।

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    रुद्रपुर में निवेश उत्सव में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह।

    मनोज झा, राज्य संपादक, उत्तराखंड। कहते हैं कि चढ़ाई के समय कमर झुकानी पड़ती है, सांसों में दम भरना होता है। और यदि पहाड़ की चढ़ाई हो तो धैर्य के साथ-साथ संतुलन भी साधना पड़ता है। दुर्गम हिमालय की गोदी में बसे उत्त्तराखंड जैसे राज्य में उद्योगों के पैर जमाना और फिर विकास के पहिये को आगे बढ़ाना पहाड़ तो क्या, एवरेस्ट की चढ़ाई जैसा दुष्कर है।

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    रुद्रपुर में प्रदेश के निवेश उत्सव में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी माना कि पहाड़ी राज्यों में औद्योगिक निवेश लाना पहाड़ पर चढ़ने जैसा कठिन काम है, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मिथक को तोड़ दिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री के हौंसले और हिम्मत को सलाम भी किया।

    सवाल है कि विकास के मोर्चे पर धामी ये मिथक तोड़कर नये-नये प्रतिमान गढ़ कैसे रहे हैं? जवाब है कि बिना शोर मचाए वह चुपचाप बस पहाड़ की चढ़ाई के तौर-तरीकों पर ईमानदारी और मेहनत से अमल कर रहे हैं। महज 25 साल पहले अस्तित्व में नये-नवेले उत्तराखंड के औद्योगिक क्षेत्र में एक समय सन्नाटा था। 2002 के आसपास उद्योंगों की स्थापना शुरू हुई। फिर सिडकुल के तौर पर इन्हें एक ढांचागत स्वरूप प्रदान करने की पहल भी हुई। हालांकि समय के साथ-साथ सरकारों की

    आवाजाही और निरपेक्ष रवैये के चलते राज्य में उद्योग एक भूला-बिसरा अध्याय बनकर रह गया। कभी प्रदेश की शान बनते दिखाई दे रहे सिडकुल का दायरा भी सिकुड़ने लगा और कारखानों की चिमनियां ठंडी पड़ने लगीं। करीब चार साल पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने के बाद धामी ने मानो विकास की फाइलों पर पड़ी गर्द झाड़नी शुरू की। उन्होंने बड़ी सूझबूझ से केंद्र के साथ समन्वय कायम करते हुए औद्योगिक क्षेत्र की मंद पड़ रही रफ्तार को डबल इंजन से जोड़ दिया। कहने की जरूरत नहीं कि मुख्यमंत्री की इस विकास यात्रा में केंद्र की मोदी सरकार ने भी दिल खोलकर साथ दिया और देखते ही देखते प्रदेश के औद्यौगिक अवस्थानों में रौनक लौटने लगी।

    आज दवा, आटो पार्टस, इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रानिक क्षेत्र में उत्तराखंड बड़े-बड़े राज्यों से प्रतिस्पर्धा कर रहा है। देहरादून के अलावा हरिद्वार, रुद्रपुर, कोटद्वार, पंतनगर, सितारगंज जैसे शहरों में उद्योग और कारपोरेट की निरंतर बढ़ती गतिविधियां बता रही हैं कि पिछले तीन-चार सालों में ठहराव और सुस्ती के आसमान में वाकई पत्थर को तबीयत से उछालकर सुराख करने की कोशिशें हुई हैं। उद्योगों की दशा सुधारने के लिए धामी सरकार ने वास्तव में कई ईमानदार प्रयास किए हैं।

    सिंगल विंडो सिस्टम को प्रभावी बनाने के साथ ही बिजली और स्टांप ड्यूटी में सब्सिडी, औद्योगिक अधिसंरचना का निर्माण, अमृतसर-कोलकाता इंडस्ट्रियल कारीडोर से सितारगंज को जोड़ने जैसे कई महत्वपूर्ण कदमों ने उत्तराखंड में एक नया औद्योगिक वातावरण तैयार किया है। शायद यही कारण है कि दो साल पहले देहरादून में हुए वैश्विक निवेशक सम्मेलन में 3.57 लाख करोड़ रुपये के प्रस्तावों में से करीब एक लाख करोड़ की ग्राउंडिंग हो चुकी है।

    निवेश के वादे और उन पर अमल के मामले में उत्तराखंड हाल के वर्षों में बड़े औद्योगिक राज्यों से होड़ लेता दिखाई दे रहा है। इनके अलावा केंद्र के सहयोग से चारधाम आलवेदर रोड, ऋषिकेष-कर्णप्रयाग रेलमार्ग, दिल्ली-दून एक्सप्रेस-वे जैसी बड़ी और महत्वाकांक्षी योजनाएं भी फलीभूत होती दिखाई दे रही है।

    उत्तराखंड की उड़ान के और भी कई किस्से हैं। कह सकते हैं कि हिमालय की गोद में बसा यह छोटा-सा प्रदेश आज उम्मीदों का नया ठिकाना बन रहा है। और यह सब इसलिए संभव हो पा रहा है, क्योंकि विकसित उत्तराखंड रूपी पहाड़ की चढ़ाई के लिए सांसों में दम भरकर धैर्य और संतुलन को बखूबी साधा जा रहा है। पूरी चढ़ाई बेशक अभी बाकी है, लेकिन मुख्यमंत्री धामी ने जिस तरह चौतरफा प्रयास शुरू किए हैं, उससे तो ऐसा ही लगता है कि एक दिन शिखर पर सफलता का झंडा भी गाड़ा जाएगा।