उत्तराखंड राज्य बीज एवं जैविक प्रमाणीकरण एजेंसी पर लगे प्रतिबंध की जांच सरकार कर रही है। अभिलेख तलब किए गए हैं और अधिकारियों से जवाब मांगा गया है। एपीडा के ऑडिट में प्रमाणीकरण में मानकों की अनदेखी पाई गई जिसके बाद एजेंसी को नोटिस भेजा गया था। लापरवाही के चलते एपीडा ने एजेंसी को अन्य राज्यों में प्रमाणीकरण से प्रतिबंधित कर दिया था।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड राज्य बीज एवं जैविक प्रमाणीकरण एजेंसी पर जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर प्रतिबंध क्यों लगा, ऐसा किन कारणों से हुआ और इसके लिए कौन जिम्मेदार है, ऐसे तमाम प्रश्नों से जल्द ही पर्दा उठेगा। मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार इसकी जांच करा रही है। इस क्रम में एजेंसी से अभिलेख तलब किए गए हैं।
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साथ ही एजेंसी के कुछ अधिकारियों से जवाब तलब किया है। जांच अधिकारी एवं सचिव रणवीर सिंह चौहान ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने कहा कि अभिलेखों व एजेंसियों के अधिकारियों से मिले जवाब का परीक्षण चल रहा है। जल्द ही शासन को रिपोर्ट सौंपी जाएगी।
कृषि विभाग के अंतर्गत गठित उत्तराखंड राज्य बीज एवं जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण एजेंसी सरकारी स्तर पर गठित ऐसी पहली एजेंसी है। पूर्व में यह एजेंसी राज्य में ही बीज व जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण करती थी। वर्ष 2005 में एपीडा (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट डेवपलमेंट अथारिटी) ने एजेंसी को देश के सभी राज्यों में जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण की भी अनुमति दे दी।
इसके पश्चात एजेंसी ने अन्य राज्यों में भी यह कार्य शुरू कर दिया। इस बीच वर्ष 2023 में एजेंसी की कार्यप्रणाली तब प्रश्नों के घेरे में आई, जब एपीडा ने आडिट कराया। इसमें ये बात सामने आई कि तमाम राज्यों में जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण में तय मानकों की अनदेखी की गई।
इसके बाद एपीडा ने एजेंसी को नोटिस भेजा, लेकिन इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं समझी गई। इसके अलावा एजेंसी के खिलाफ आई कई शिकायतों की भी एपीडा ने जांच कराई।
एपीडा ने एजेंसी को दोबारा नोटिस भेजा, लेकिन अधिकारियों ने फिर इसे नजरअंदाज कर दिया। नतीजतन, एपीडा ने इसी वर्ष अप्रैल में एजेंसी पर अन्य राज्यों में जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
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