Updated: Sun, 05 Oct 2025 11:31 AM (IST)
उत्तराखंड राज्य बीज एवं जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण एजेंसी पर कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने ₹10 लाख का जुर्माना लगाया है। एजेंसी ने बिना जांच के उत्पादों के निर्यात के लिए प्रमाणपत्र जारी किए कुछ समूहों में किसान नहीं थे और जैविक की जगह रासायनिक उर्वरक इस्तेमाल हो रहे थे। पहले भी एजेंसी पर प्रमाणीकरण में अनियमितताओं के लिए जुर्माना लगाया गया था।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। सरकारी स्तर पर गठित देश की पहली उत्तराखंड राज्य बीज एवं जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण एजेंसी फिर से चर्चा के केंद्र में है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन गठित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के कड़े रुख के बाद भी एजेंसी की कार्यशैली में सुधार नहीं हुआ है।
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प्राधिकरण ने एजेंसी से जुड़े 42 उत्पादक समूहों के आडिट के बाद अब एजेंसी पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। आडिट में बात सामने आई कि एजेंसी ने बिना किसी जांच पड़ताल के इन समूहों को उनके उत्पादों के निर्यात के लिए ट्रांसफर प्रमाणपत्र जारी कर दिए।
यही नहीं, कुछ समूहों में किसान थे ही नहीं, जबकि कुछ समूह जैविक के स्थान पर रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहे थे। कृषि विभाग के अंतर्गत वर्ष 2001 में अस्तित्व में आई उत्तराखंड बीज एवं जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण एजेंसी पूर्व में राज्य के भीतर ही बीज व जैविक उत्पादों का प्रमाणीकरण करती थी।
वर्ष 2005 में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने उसे सभी राज्यों में जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण की अनुमति दे दी। अन्य राज्यों में जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण से एजेंसी को प्रतिवर्ष लगभग साढ़े पांच करोड़ की आय होने लगी।
एजेंसी द्वारा प्रमाणित जैविक उत्पाद निर्यात भी होने लगे। वर्ष 2023 में एजेंसी की साख पर तब आंच आई, जब प्राधिकरण ने आडिट कराया। इसमें जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण में तय मानकों की अनदेखी की बात सामने आने पर प्राधिकरण ने एजेंसी को नोटिस भेजे, लेकिन अधिकारियों ने तवज्जो नहीं दी।
यही नहीं, एजेंसी ने कुछ समय पहले सिक्किम की बंद हुई एजेंसी के विवादित प्रमाणीकरण के प्रस्ताव भी अपने हाथ में ले लिए। इसके अलावा एजेंसी द्वारा कपास के प्रमाणीकरण में भी अनियमितताएं मिलीं। इस पर प्राधिकरण ने फिर नोटिस जारी किया, लेकिन एजेंसी ने इस पर गौर नहीं किया।
नतीजतन, प्राधिकरण ने इसी वर्ष अप्रैल में एजेंसी पर जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही पांच लाख रुपये का जुर्माना ठोका था। यद्यपि, इस प्रकरण के सामने आने के बाद सरकार ने जांच बैठा दी थी, लेकिन अभी इसके पूरा होने की प्रतीक्षा है।
इस बीच प्राधिकरण ने एजेंसी से जुड़े 48 उत्पादक समूहों का आडिट कराया। इसमें कदम-कदम पर खामियां उजागर हुईं। एजेंसी इन्हें लेकर अपने जवाब से प्राधिकरण को संतुष्ट नहीं कर पाई। नतीजतन, प्राधिकरण ने अब एजेंसी पर फिर से जुर्माना लगाया है।
आडिट में ये खामियां आई सामने
- उत्पादक समूहों में सेवा प्रदाताओं के नहीं मिले प्रमाण।
- कुछ समूहों की सूची में फर्जी किसानो के थे नाम पते।
- खेती में जैविक के स्थान पर रासायनिक उर्वरकों का हो रहा था प्रयोग।
- कपास का उत्पादन न करने के बावजूद जारी किए गए थे ट्रांसफर प्रमाणपत्र
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