Uttarakhand Panchayat Chunav: यहां लोटा-नमक की सौगंध दिला वोट पक्के कर रहे नेताजी, पढ़ें कैसे चुनावी दांव बना लोक परंपरा?
देहरादून के जौनसार बावर में पंचायत चुनाव में प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने के लिए लोटा-नमक की सौगंध का सहारा ले रहे हैं। यह वर्षों पुरानी परंपरा है जिसमें लोग अपने ईष्ट देवता को साक्षी मानकर वादा करते हैं। माना जाता है कि सौगंध लेने के बाद लोग अपने वादे से पीछे नहीं हटते। 2014 में कुछ गांवों ने इसी सौगंध के कारण मतदान नहीं किया था।

चंदराम राजगुरु, जागरण त्यूणी। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के मतदान की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे मतदाताओं को रिझाने का क्रम तेज हो गया है। मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए प्रत्याशी हर पैंतरा आजमा रहे हैं।
लोक-लुभावने वादों की झड़ी लगाने के साथ लोक परंपराओं का भी सहयोग लिया जा रहा है। राजधानी देहरादून के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में चुनावी दंगल में उतरे नेताजी लोटा-नूण (लोटा-नमक) के जरिये वोट पक्के करने में जुटे हैं। वर्षों पुरानी यह लोक परंपरा एक तरह की सौगंध है, जिसे लेने के बाद लोग पीछे नहीं हटते।
नेताजी नाप रहे पहाड़ की पथरीली पगडंडियां
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के पहले चरण के मतदान को अब सिर्फ चार दिन बचे हैं। ऐसे में चुनाव मैदान में खम ठोक रहे नेताओं ने प्रचार अभियान में पूरी ताकत झोंक दी है। वर्षा की रिमझिम फुहारों के बीच वह खूब पसीना बहा रहे हैं। वर्षाकाल की चुनौती के बावजूद पहाड़ की पथरीली पगडंडियां नाप रहे हैं।
खास बात यह कि माहौल अपने पक्ष में करने के लिए नेताजी को लोटा-नमक जैसी लोक परंपराओं के इस्तेमाल से भी गुरेज नहीं है। इसमें प्रत्याशी एक स्थान पर सभी घरों के मुखिया को बुलाते हैं। वहां लोटे और नमक के साथ सभी को वादा करना होता है कि वे उस व्यक्ति के प्रति समर्पित हैं।
परंपरा है कि यह सौगंध लेने के बाद लोग पीछे नहीं हटते। एक समय था, जब यह प्रथा चुनाव में सबसे बड़ा हथियार होती थी। अब इसमें कुछ कमी आई है, लेकिन इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। पंचायत के चुनाव हों या फिर विधानसभा और लोकसभा के, इस प्रथा को अधिकांश प्रत्याशी ग्रामीण क्षेत्रों में आजमाते हैं।
यह होती है लोटा-नमक सौगंध
इस परंपरा के तहत सौगंध लेने वाला व्यक्ति अपने ईष्ट देवता को साक्षी मानकर पानी से भरे लोटे में नमक डालता है और कहता है कि सौगंध दिलाने वाले का वादे पूरा न करने या झूठा साबित होने पर मेरा व मेरे परिवार का अस्तित्व उसी तरह समाप्त हो जाए जैसे पानी से भरे लोटे में नमक का हो जाता है।
बुजुर्गों की मानें तो यह प्रथा राजा-महाराजाओं के समय से चली आ रही है। तब बड़े-बड़े विवाद, चोरी आदि के मामले लोटा-नमक से निपटा दिए जाते थे। आज भी देहरादून के चकराता, जौनसार बावर और उत्तरकाशी व चमोली के कुछ हिस्सों में यह प्रथा प्रचलन में है। मान्यता है कि वचन तोड़ने वाले व्यक्ति व उसके परिवार को सात पीढ़ियों तक देवता का रोष झेलना पड़ता है।
वर्ष 2014 में तीन गांवों के लोगों ने नहीं डाला था वोट
लोटा-नमक उठाकर सौगंध लेने का बड़ा उदाहरण वर्ष-2014 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला था। तब चकराता क्षेत्र के बूथ संख्या-120 ककनोई से जुड़े तीन गांवों के लोगों ने लोटा-नमक के कारण मतदान नहीं करने की सौगंध ली थी। ये लोग सड़क नहीं बनने से नाराज थे। प्रशासन के काफी प्रयासों के बाद भी ग्रामीण अपनी सौगंध से पीछे नहीं हटे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।