Updated: Sat, 02 Aug 2025 08:20 AM (IST)
देहरादून में पंचायत चुनावों के नतीजों ने भाजपा के प्रदर्शन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। नगर निगम चुनाव में जीत के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा। व्यक्तिगत छवि और स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता मिलने से भाजपा की पकड़ पर असर पड़ा है। पार्टी अब आत्मविश्लेषण कर रही है क्योंकि शहरी विकास गांवों तक नहीं पहुंचा जिससे ग्रामीणों में नाराजगी है।
जागरण संवाददाता, देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक ओर जहां भाजपा ने नगर निगम चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी, वहीं त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के नतीजों ने पार्टी के सामने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
भाजपा का गढ़ माने जाने वाले देहरादून में गांवों ने पार्टी से ज्यादा व्यक्तिगत छवि और स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता दी है। संगठन की ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ के साथ ही दिग्गजों की प्रतिष्ठा को भी यह परिणाम चोट पहुंचा गए। अब भाजपा ने आत्मविशेषण और नतीजों पर मंथन शुरू कर दिया है।
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देहरादून में कुल 30 जिला पंचायत सीटों में से भाजपा महज सात पर सिमट गई है, जबकि कांग्रेस ने 12 पर जीत दर्ज कर अपनी साख मजबूत की है। सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा निर्दलीय प्रत्याशियों का रहा, जिन्होंने 11 सीटों पर कब्जा जमाकर सत्ता संगठनों को चुनौती दे दी है।
यह वही देहरादून है जहां इसी साल नगर निगम चुनाव में भाजपा ने 100 में से 64 वार्डों पर जीत दर्ज की थी और महापौर की कुर्सी पर भी एकतरफा जीत हासिल की थी। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी भाजपा का यहां परंपरागत वर्चस्व रहा है। जिले की 10 विधानसभा सीटों में से नौ पर भाजपा के विधायक हैं और देहरादून जिन दो संसदीय क्षेत्रों में आता है, वहां दोनों सांसद भाजपा से हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पंचायत चुनावों में वोटर स्थानीय चेहरों को प्राथमिकता देता है। यहां जातीय समीकरण, व्यक्तिगत जनसंपर्क और स्थानीय मुद्दे निर्णायक होते हैं। भाजपा की संगठनात्मक ताकत और शीर्ष नेतृत्व की लोकप्रियता पंचायत स्तर पर तब तक असरदार नहीं बनती, जब तक वह ग्राम स्तर पर आमजन से सीधे जुड़ाव न बना पाए।
...तो गांव तक नहीं पहुंचा सका डबल इंजन का विकास
एक कारण यह भी माना जा रहा है कि शहरों में किए गए विकास कार्य गांवों तक समान रूप से नहीं पहुंचे। राजधानी में रहते हुए भाजपा सरकार गांवों की समस्याओं को लेकर उतने सजग नहीं दिखी, जितनी अपेक्षा की जाती है।
गांवों में सड़कों, बिजली, पानी, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दे अब भी ज्वलंत हैं। इस परिणाम ने भाजपा को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि सिर्फ शहरी सफलता ग्रामीण जनाधार को सुनिश्चित नहीं कर सकती।
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