Uttarakhand Panchayat Chunav: भाजपा जीती 2027 का सेमीफाइनल, सरकार-संगठन की जुगलबंदी से पंचायतों में खिला कमल
उत्तराखंड पंचायत चुनावों में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया है जिसे 2027 के विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है। हरिद्वार को छोड़कर 11 जिलों में भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद जीते और क्षेत्र पंचायतों में भी दबदबा बनाया। ग्रामीण मतदाताओं ने भी भाजपा पर भरोसा जताया है जिससे पार्टी का मनोबल बढ़ा है। इस सफलता के पीछे सरकार-संगठन के समन्वय को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

रविंद्र बड़थ्वाल, जागरण, देहरादून। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों की छोटी सरकार में भाजपा के ट्रिपल इंजन ने दम दिखा दिया। हरिद्वार को छोड़कर शेष 12 जिलों में से 11 में जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों पर घोषित चुनाव परिणाम में भाजपा ने एकतरफा बढ़त लेकर 10 पर जीत दर्ज की।
89 क्षेत्र पंचायतों में प्रमुखों के 70 प्रतिशत पद सत्ताधारी दल की झोली में गिरे। छह माह पहले शहरी मतदाताओं के बाद अब ग्रामीण मतदाताओं ने भी दल पर भरोसा जता दिया।
वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल के रूप में लिए जा रहे इस चुनाव परिणाम ने भाजपा का मनोबल इस मायने में भी बढ़ाया कि राजधानी देहरादून की जिला पंचायत सीट जीतने के बाद भी मुख्य प्रतिपक्षी कांग्रेस प्रदेशभर में उसे कड़ी टक्कर नहीं दे पाई। इस प्रदर्शन के पीछे सरकार और संगठन के बीच समन्वय की बड़ी और निर्णायक भूमिका मानी जा रही है।
वर्षाकाल की विषम परिस्थितियों और आपदा के मोर्चे पर मिल रही चुनौती के बीच उत्तराखंड में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के परिणाम के राजनीतिक निहितार्थ आगामी विधानसभा चुनाव के दृष्टिगत महत्वपूर्ण हैं। ग्रामीण मतदाता संख्याबल में राज्य का सबसे बड़ा वर्ग है।
नये जोश से भरा सत्ताधारी दल
प्रदेश की कुल 70 विधानसभा सीट में से आधी से अधिक सीट पर इन मतदाताओं की निर्णायक भूमिका मानी जाती है। पंचायत चुनाव के परिणाम ने सत्ताधारी दल को नये जोश से भर दिया है तो इसके कारण भी हैं। वर्ष 2022 में प्रचंड बहुमत के साथ प्रदेश में लगातार दूसरी बार सरकार बनाने वाली भाजपा ने चुनावी वर्ष में ही हरिद्वार जिले में हुए पंचायत चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी।
लगभग ढाई वर्ष बाद अब शेष 12 जिलों में हुए इस चुनाव को भाजपा के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के जनादेश के रूप में देखा जा रहा है। इससे ठीक पहले गत जनवरी माह में नगर निकाय चुनाव में भी भाजपा ने 11 में से 10 नगर निगमों में अपना परचम लहराया था।
नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में भी उसने भारी बढ़त बनाई थी। शहरी मतदाताओं का रुझान पक्ष में आने के बाद पंचायतों में जनमत जानने को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें टिकी रहीं। इस चुनाव के बहाने भाजपा प्रदेश संगठन के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के प्रदर्शन का स्वाभाविक आकलन किया जा रहा है।
प्रदेश भाजपा ने अपने सांगठनिक कौशल के बूते इस बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के माध्यम से अपने कैडर को गांवों में मजबूत बनाने की रणनीति बनाई। पिछले पंचायत चुनाव में जिला पंचायतों में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा था। इस बार पार्टी जिला पंचायतों पर तो दोबारा दबदबा बनाया ही, साथ में क्षेत्र पंचायतों में प्रमुखों और ग्राम प्रधानों के अधिकतर पदों पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए सधे अंदाज में कदम बढ़ाए।
क्षेत्र पंचायत प्रमुख के 70 प्रतिशत से अधिक तो ग्राम प्रधानों की 85 प्रतिशत सीट भाजपा के पाले में हैं। नगर निकाय चुनाव की भांति पंचायत चुनाव स्थानीय मुद्दों और सांगठनिक क्षमता के लिए परीक्षा माने जा रहे थे। विशेष रूप से कांग्रेस ने एंटी इनकंबेंसी को पहले नगर निकाय चुनाव और फिर पंचायत चुनाव में प्रमुख मुद्दा बनाया, लेकिन यह दांव प्रभावी नहीं रहा है। चुनाव के परिणाम भाजपा और धामी सरकार, दोनों को नई ऊर्जा देने वाले हैं।
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