Cloudburst In Dehradun: तो आकाशीय बिजली को आकर्षित कर रहे हैं चूना पत्थर के पहाड़
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक ने वातावरण में होने वाले आयोनाइजेशन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि चूना पत्थर के पहाड़ आकाशीय बिजली को आकर्षित कर रहे हैं। देहरादून में बादल फटने से पहले जमकर बिजली गिरी थी।

सुमन सेमवाल, देहरादून। क्या चूना पत्थर (Limestone) व सिलिका की चट्टानें आकाशीय बिजली को आकर्षित करती हैं? क्या सरखेत क्षेत्र के पहाड़ बार-बार गिरने वाली आकाशीय बिजली (Lightning) के चलते कमजोर पड़ रहे हैं? इन प्रश्नों का ठोस उत्तर अभी विज्ञानियों के पास नहीं है, लेकिन उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के निदेशक व भूविज्ञानी प्रो. एमपीएस बिष्ट ने इसकी संभावना व्यक्त कर इस अहम विषय की तरफ विज्ञानी जगत का ध्यान खींचा है।
उनका कहना है कि 19 अगस्त की मध्यरात्रि को देहरादून के सरखेत क्षेत्र में बादल फटने ( Cloudburst In Dehradun) से पहले जमकर आकाशीय बिजली गिरी थी। प्रत्येक मानसून सीजन में यहां सामान्य से अधिक बिजली गिरने की घटनाएं सामने आती हैं। इससे यह संभावना बलवती होती है कि यहां के चूना पत्थर के पहाड़ वातावरण में आयोनाइजेशन की प्रक्रिया के माध्यम से आकाशीय बिजली को आकर्षित करते हैं।
यूसैक के निदेशक प्रो. बिष्ट के मुताबिक वर्ष 1991 में सेवा के शुरुआती दौर में जब वह वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में कार्यरत थे, तब पीपलकोटी से हेलंग (अपर अलकनंदा कैचमेंट) के बीच भूस्खलन की घटनाओं पर अध्ययन किया था। उस अध्ययन में भी इस बात का जिक्र किया था कि चूना पत्थर की चट्टानों वाले क्षेत्रों में बिजली गिरने की अधिक घटनाएं हो रही हैं।
सरखेत और भैंसवाड़ा क्षेत्र भी भूस्खलन प्रभावित रहता है। वहीं, मसूरी के नीचे की पहाड़ियों पर भी बड़े भूस्खलन जोन हैं। वर्तमान में बादल फटने की घटना के साथ पूरे क्षेत्र में जगह-जगह हुए भूस्खलन (Landslide) से इस दिशा में गहन अध्ययन की जरूरत बढ़ गई है। क्योंकि, चूना पत्थर वाले पहाड़ों में बिजली गिरने की अधिक घटनाओं के शुरुआती निष्कर्ष के पीछे भी वैज्ञानिक आधार मौजूद हैं।
वातावरण की ऋणात्मक ऊर्जा व चूना पत्थरों की धनात्मक ऊर्जा बिजली का कारण
यूसैक के निदेशक प्रो. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक वातावरण में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन है और 21 प्रतिशत आक्सीजन। वातावरण में नाइट्रोजन (N2) एटम्स के रूप में होता है। वर्षा के साथ आक्सीजन जब नाइट्रोजन के संपर्क में आती है तो यह उसके एटम्स को तोड़ देता है।
इसके बाद नाइट्रेट (N2o) बनता है, जिससे बड़े स्तर पर ऋणात्मक ऊर्जा निकलती है और जब यह ऊर्जा धनात्मक आयन के संपर्क में आती है तो अर्थिंग होती है। जहां भी अर्थिंग पैदा होगी, बिजली वहीं सर्वाधिक गिरेगी। चूना पत्थर व सिलिका जैसे पहाड़ भी अपने विशिष्ट रासायनिक गुणों के कारण बड़े स्तर पर धनात्मक ऊर्जा पैदा करते हैं। यही कारण है कि आयोनाइजेशन की इस प्रक्रिया में ऐसे क्षेत्रों में बिजली गिरने की घटनाएं सर्वाधिक होती हैं।
नुकसान का कारण बनती है बिजली, समाधान भी है
यूसैक निदेशक के मुताबिक बिजली गिरने की घटनाओं के चलते चट्टानें चटकने लगती हैं। भारी वर्षा व बदल फटने की घटनाओं के बीच यह नुकसान को बढ़ा देती हैं। हालांकि, आज के दौर में उन्नत प्रकृति के तड़िचालक (लाइटनिंग कंडक्टर) के माध्यम से बिजली से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
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