नौ साल बाद उत्तराखंड में अब आकार लेगा जल आयोग, छह माह में होगा अस्तित्व में
उत्तराखंड में जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग के गठन की प्रक्रिया तेज हो गई है। 2016 में निर्णय के बावजूद आयोग अस्तित्व में नहीं आया। केंद्र सरकार के निर्देशानुसार राज्य सरकार छह महीने में इसे स्थापित करने का प्रयास कर रही है। आयोग जल संसाधनों का विनियमन और उचित आवंटन सुनिश्चित करेगा। अध्यक्ष पद के लिए अनुभवी अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी।

राज्य ब्यूरो, जागरण, देहरादून। तंत्र की गाड़ी किस तरह से सरक-सरक कर चलती है, इसकी बानगी है राज्य में गठित होने वाला उत्तराखंड जल संसाधन प्रबंधन और नियामक आयोग। अधिनियम के अस्तित्व में आने के तीन साल बाद वर्ष 2016 में इसके तहत जल आयोग के गठन का निर्णय हुआ, लेकिन यह धरातल पर मूर्त रूप नहीं ले पाया।
यह स्थिति तब है, जबकि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों में जल आयोग के गठन को अनिवार्य किया है। नौ साल बाद अब आयोग के गठन को लेकर गंभीरता से पहल की जा रही है। सरकार का प्रयास है कि छह माह के भीतर जल आयोग अस्तित्व में आ जाए। इसी हिसाब से कदम उठाए जा रहे हैं।
जून 2013 में केदारनाथ में आई जल प्रलय के बाद राज्य में उत्तराखंड जल प्रबंधन एवं नियामक अधिनियम लाया गया। इसके तहत ही जल आयोग का गठन निर्धारित किया गया। राज्य के भीतर जल संसाधनों को विनियमित करना, पर्यावरण एवं आर्थिक दृष्टि से जल संसाधनों का आवंटन व अनुकूलतम उपयोग सुगम बनाना, कृषि, औद्योगिक, पेयजल, विद्युत व अन्य प्रयोजन के लिए प्रभार तय करने जैसे तमाम कार्य आयोग के माध्यम से होने हैं।
यद्यपि, 16 मई 2023 में आयोग के गठन के दृष्टिगत इसके अध्यक्ष व दो सदस्यों की नियुक्ति के लिए आवेदन मांगे गए, लेकिन फिर भी यह कसरत परवान नहीं चढ़ पाई।
अब लंबी प्रतीक्षा के बाद आयोग के गठन की कसरत शुरू की गई है। सूत्रों के अनुसार इस क्रम में पेयजल, सिंचाई, लघु सिंचाई, जल संस्थान, जलागम समेत अन्य विभागों के साथ दो-दौर की बैठकें हो चुकी हैं। प्रयास यही है कि अगले छह माह के भीतर यह आयोग अस्तित्व में आ जाए।
आयोग के अध्यक्ष पद पर उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जा सकता है, जो राज्य में मुख्य सचिव अथवा केंद्र सरकार में सचिव स्तर या इसके समकक्ष पद पर रहा हो और उसे जल संसाधन से जुड़े विभागों का अनुभव हो।
इसी तरह सदस्य के दो पदों के लिए इंजीनियरिंग, वित्त, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, विधि प्रशासन या प्रबंधन से संबंधित ऐसे विशेषज्ञ, जिन्हें कम से कम 25 वर्ष का अनुभव हो, को नियुक्त किया जा सकता है। आयोग का गठन होने के बाद कैबिनेट द्वारा इसके ढांचे के संबंध में निर्णय लिया जाएगा।
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