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रोमांच के शौकीन लोगों की मनपसंद जगह है उत्तराखंड, पर अब भी ट्रेकिंग नीति का इंतजार

रोमांच के शौकीन हजारों ऐसे पर्यटक हैं जो प्रतिवर्ष उत्तराखंड के दुर्गम रमणीय स्थलों पर ट्रेकिंग के लिए जाते हैं। बावजूद इसके ट्रेकिंग नीति को अब भी इंतजार है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 01 May 2020 05:53 PM (IST)Updated: Fri, 01 May 2020 10:44 PM (IST)
रोमांच के शौकीन लोगों की मनपसंद जगह है उत्तराखंड, पर अब भी ट्रेकिंग नीति का इंतजार
रोमांच के शौकीन लोगों की मनपसंद जगह है उत्तराखंड, पर अब भी ट्रेकिंग नीति का इंतजार

देहरादून, विकास गुसाईं। उत्तराखंड का नैसर्गिक सौंदर्य और सुदूरवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में बुग्याल (घास के मैदान) और पर्वत ट्रेकिंग करने वालों के मनपसंद स्थान हैं। रोमांच के शौकीन हजारों ऐसे पर्यटक हैं, जो प्रतिवर्ष उत्तराखंड के दुर्गम रमणीय स्थलों पर ट्रेकिंग के लिए जाते हैं। इसके लिए वे टूर और ट्रेवल कंपनियों के साथ ही स्थानीय लोगों की भी मदद लेते हैं। 

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ट्रेकिंग में रोमांच तो है, लेकिन इसमें जोखिम भी बहुत है। यहां कई कई स्थल ऐसे हैं जो आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। इन स्थानों में ट्रेकिंग को विशेषज्ञ ट्रेकर्स की जरूरत होती है। उत्तराखंड में ट्रेकिंग के लिए कुछ नियम बने हैं। हालांकि, कई बार रोमांच के शौकीन इनका उल्लंघन करने से बाज नहीं आते। इसके लिए लिए ट्रेकिंग नीति बनाने का निर्णय लिया गया। इसका एक विस्तृत खाका भी खींचा गया। शुरूआती दौर में इस पर तेजी के बावजूद अभी तक बहुत अधिक काम नहीं हो पाया है।

15 साल नोटिफिकेशन का इंतजार

साल 2005 से पहाड़ों की रानी मसूरी में चल रही प्राइवेट फॉरेस्ट एस्टेट के सर्वेक्षण की कवायद आज तक पूरी नहीं हो पाई है। कारण यह कि सर्वे ऑफ इंडिया ने जो 115 एस्टेट के जो नक्शे मसूरी वन प्रभाग के सुपुर्द किए थे, उसे प्रभागीय वनाधिकारी ने बैरंग लौटा दिया। वन विभाग की ओर से नक्शों पर कई तरह की आपत्तियां भी लगाई गई। कहा गया कि इनमें सिर्फ सीमा को ही स्पष्ट किया गया है। नोटिफाइड फॉरेस्ट में नदी-नाले, खाली और पेड़ युक्त भूमि या अन्य तरह के निर्माण (यदि हैं तो) और विशेष संरचनाओं को नहीं दर्शाया गया है। लिहाजा, नक्शों में इस तरह की स्थिति स्पष्ट कर दिए जाने के बाद ही नक्शे पास किए जा सकेंगे। इससे सालों बाद मंजिल की तरफ बढ़े प्रयासों को झटका लगा है। सरकारी सिस्टम की कार्यशैली के चलते यह मामला एक बार फिर से अधर में लटक गया है।

नियमावली में अटकी दारोगा पदोन्नति

प्रदेश में इस समय पदोन्नति की बयार चल रही है, लेकिन एक संवर्ग ऐसा भी है जो नियमावली के फेर में पड़कर इससे महरूम हो रखा है। यह संवर्ग है दारोगाओं का। दरअसल, पुलिस महकमे में राज्य गठन के बाद सब इंस्पेक्टर व इंस्पेक्टर संवर्ग की कोई नियमावली नहीं थी। विभागीय पदोन्नति उत्तर प्रदेश की व्यवस्था के आधार पर ही होती थी। व्यवस्था यह थी कि सब इंस्पेक्टर पद पर भर्ती होने के दौरान बनने वाली मेरिट नहीं बल्कि पदोन्नति का आधार विभाग में दस वर्ष की सेवा और प्रशिक्षण के दौरान पुलिस ट्रेनिंग सेंटर (पीटीसी) में मिले नंबरों को माना जाता था। इसे लेकर आपत्तियां भी थीं। कारण यह कि लिखित परीक्षा में अच्छा करने वाले कई बार इस सूची में स्थान नहीं बना पाते थे। लिहाजा नई नीति बनाई गई लेकिन मुख्यालय से आपत्ति लग गई।

गांवों को सड़क का इंतजार

घोस्ट विलेज यानी गैर आबाद गांवों तक सड़क पहुंचाने की कवायद। मकसद विलेज टूरिज्म के लिए इन्हें बढ़ावा देना। कहा गया कि गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ने के बाद पर्यटकों को यहां विलेज टूरिज्म के तहत आने के लिए प्रेरित करने के साथ ही गामीणों को रिवर्स पलायन के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। इसके लिए पूरा ताना बाना बुना गया। रिवर्स पलायन को प्राथमिकता बताते हुए लोगों को वापस कैसे लाया जाए, इसके मूल में यही सोच थी।

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पुराने और राजशाही की परंपरा के गवाह रहे बड़े खाली गांव यानी घोस्ट विलेज में पर्यटकों को आकर्षति करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए सबसे पहले इन सभी गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ने का फैसला भी हुआ। इसके लिए बकायदा नियमावली बनाने के साथ ही कुछ गांवों को चिह्नित भी किया गया। बावजूद इसके आज तक इन गांवों में सड़क पहुंचाने का कार्य पूरा नहीं हो पाया है। 

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