सरकारी आदेशों को ऑनलाइन करने में विभागों की सुस्ती, 58 में से 42 ने अपलोड नहीं किया शासनादेश
देहरादून में कई सरकारी विभाग शासनादेशों को ऑनलाइन करने में लापरवाही बरत रहे हैं। 58 में से 42 विभागों ने 2024 के बाद कोई नया शासनादेश अपलोड नहीं किया है जिससे नागरिकों को जानकारी प्राप्त करने में परेशानी हो रही है। मुख्य सचिव ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं। सरकार ई-गवर्नेंस के माध्यम से पारदर्शिता लाने का प्रयास कर रही है।

विकास गुसाईं, जागरण, देहरादून। प्रदेश सरकार जहां एक ओर ई-गवर्नेंस के माध्यम से आमजन को सेवाएं त्वरित सुलभ कराने पर बल दे रही है। वहीं, विभाग सरकार के इन प्रयासों के प्रति गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। स्थिति यह कि सभी विभागों के शासनादेश के लिए बनाई गई वेबसाइट uk.gov.in पर शासनादेश संबंधी सूचनाओं को अपडेट नहीं कर रहे हैं।
अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वेबसाइट पर अंकित 58 विभागों में से 42 विभागों ने वर्ष 2024 के बाद एक भी नया शासनादेश इस वेबसाइट पर नहीं डाला है। इनमें पर्यटन, परिवहन, सैनिक कल्याण, कौशल विकास, वित्त, गृह, औद्योगिक विकास, खाद्य व आपदा प्रबंधन जैसे विभाग सम्मिलित हैं। इससे आमजन को विभाग के महत्वपूर्ण निर्णयों की ऑनलाइन जानकारी नहीं मिल पा रही है।
प्रदेश सरकार इस समय ऑनलाइन सेवाओं पर जोर दे रही है, ताकि विभागीय कार्यों में पारदर्शिता के साथ तेजी लाई जा सके। इसके लिए सरकार ने डिजिटल उत्तराखंड नाम से एक वेबसाइट बनाई है। इस वेबसाइट के जरिये आमजन बिजली पानी के बिलों को जमा करने से लेकर विभिन्न विभागों द्वारा समय-समय पर जारी किए गए शासनादेशों की जानकारी भी ले सकता है। इसके लिए संबंधित लिंक पर क्लिक करने के बाद यह उस सुविधा से संबंधित वेबसाइट को खोलता है।
ऐसी ही एक साइट शासनादेशों के लिए बनाई गई है। इसमें गवर्नमेंट आर्डर यानी जीओ नाम से एक आइकन भी बनाया गया है, जिसमें क्लिक करने से विभागों से संबंधित शासनादेशों को देखा जा सकता है। इस वेबसाइट पर 58 विभागों के नाम दिए गए हैं। इनके सामने शासनादेशों के संबंध में जानकारी दी गई है। लापरवाही देखिए, सरकार के कड़े दिशा-निर्देशों के बावजूद विभाग इसमें शासनादेश डालने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
पेयजल, आयुष, शहरी विकास, लोक निर्माण विभाग, पंचायत राज व स्वास्थ्य विभाग जरूर इसके अपवाद हैं। शेष विभागों की स्थिति इस बात से समझी जा सकती है कि प्रोटोकाल विभाग ने इसमें वर्ष 2011 में आखिरी शासनादेश डाला था।
वहीं, भाषा विभाग ने वर्ष 2014 और मुख्यमंत्री कार्यालय, राज्य पुनर्गठन व मंत्रिपरिषद विभाग ने वर्ष 2017 के बाद इसमें कोई शासनादेश डालने की जहमत नहीं उठाई है। आठ विभागों ने वर्ष 2018 के बाद इसमें कोई शासनादेश नहीं डाला है। नौ विभागों ने इसमें अपना आखिरी शासनादेश वर्ष 2024 में अपलोड किया था।
‘यह प्रकरण गंभीर है। यह लापरवाही है। ऐसा क्यों हो रहा है इसे दिखाया जाएगा।’ -आनंद बर्द्धन, मुख्य सचिव
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