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    देश में पहली बार संकटग्रस्त पौधों को मिलेगा 'नया जीवन', उत्तराखंड वन विभाग की अनुसंधान शाखा की अनूठी पहल

    Updated: Sun, 13 Jul 2025 08:41 PM (IST)

    उत्तराखंड वन विभाग ने संकटग्रस्त वनस्पति प्रजातियों को बचाने के लिए अनूठी पहल की है। वन्यजीव संरक्षण के बाद दुर्लभ पौधों को उनके प्राकृतिक स्थानों में पुनर्स्थापित किया जाएगा। अनुसंधान शाखा ने 14 रेड लिस्टेड प्रजातियों की प्रवर्धन तकनीक विकसित की है। मानसून में इन्हें रोपित किया जाएगा। यह पहल उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है और अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी।

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    देश में वन्यजीवों पर किया जा चुका प्रयोग, वनस्पति पर पहली बार. Concept Photo

    जागरण संवाददाता, देहरादून। देश में संकटग्रस्त वनस्पति प्रजातियों को बचाने की उत्तराखंड में अनूठी पहल शुरू हुई है। वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धियों के बाद अब उत्तराखंड वन विभाग ने दुर्लभ पौधों की प्रजातियों को उनके प्राकृतिक स्थलों में पुनर्स्थापित करने जा रहा है।

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    जैव विविधता संरक्षण कार्यक्रम की शुरुआत वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने की है, जो न केवल राज्य बल्कि पूरे देश के लिए हरित भविष्य की दिशा में एक प्रेरणास्रोत कदम माना जा रहा है। चार वर्ष की मेहनत को इस मानसून में धरातल पर उतारने की तैयारी है।

    वन विभाग की अनुसंधान टीम ने वर्षों की मेहनत से रेड कैटेगरी में शामिल 14 प्रजातियों की बीज, कंद और राइजोम से प्रवर्धन तकनीक विकसित की। विभाग के उच्च हिमालयी अनुसंधान केंद्रों में इन पौधों को सफलतापूर्वक तैयार किया गया। इसके साथ ही इन प्रजातियों के प्राकृतिक आवास स्थलों का वैज्ञानिक रूप से मानचित्रण किया गया।

    मानसून के आगमन के साथ इन प्रजातियों को उनके मूल प्राकृतिक स्थानों पर भूमि सुधार के बाद रोपित किया जा रहा है। जुलाई के अंत तक प्रथम चरण का रोपण कार्य पूरा हो जाने की संभावना है। मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि इस पहल की सफलता न केवल उत्तराखंड के लिए गौरव की बात होगी, बल्कि यह देश के अन्य राज्यों में भी संकटग्रस्त पौधों के संरक्षण के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी।

    अगले चरण में और अधिक प्रजातियों को जोड़ने की योजना है। इसके लिए स्थायी निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली भी विकसित की जा रही है।

    प्रारंभिक चरण में 14 संकटग्रस्त प्रजातियां शामिल

    कार्यक्रम के पहले चरण में 14 ऐसी प्रजातियों को शामिल किया गया है, जो या तो इंटरनेशनल यूनियन फार कंजरवेशन आफ नेचर (आइयूसीएन) की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त/अति संकटग्रस्त के रूप में सूचीबद्ध हैं या फिर उत्तराखंड राज्य जैव विविधता बोर्ड की संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में आती हैं।

    इनमें मुख्य रूप से त्रायमाण, रेड क्रेन आर्किड, सफेद हिमालयन लिली, गोल्लन हिमालयन स्पाइक, दून चीजवुड, कुमाऊं फैन पाम, जटामांसी, पटवा और हिमालयन अर्नेबिया शामिल हैं।

    पहली बार वन्यजीवों की तर्ज पर पौधों के लिए संरक्षण माडल

    मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी के अनुसार, यह पहली बार है जब वन्यजीवों की तर्ज पर पौधों की प्रजातियों के लिए संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया है। अब तक ऐसे प्रयास केवल जानवरों के लिए होते थे, लेकिन पौधों की प्रजातियां भी संकट में हैं और उनका संरक्षण समय की मांग है।

    उन्होंने बताया कि इनमें से अधिकांश प्रजातियां औषधीय रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जिनका अत्यधिक दोहन किया गया, जिससे इनकी प्राकृतिक जनसंख्या में तेजी से गिरावट आई।

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