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    दीपावली से पहले उल्लुओं की उल्टी गिनती रोकने को वन विभाग का रतजगा, गश्त बढ़ाने के निर्देश

    Updated: Sat, 11 Oct 2025 08:29 PM (IST)

    दीपावली के समय उत्तराखंड के वनों में उल्लुओं के शिकार की घटनाएं बढ़ जाती हैं। तंत्र-अंधविश्वास के चलते इनकी खरीद-फरोख्त और बलि दी जाती है। वन विभाग ने गश्त बढ़ाकर और वनकर्मियों की तैनाती कर उल्लुओं को बचाने के लिए कदम उठाए हैं। उल्लुओं का शिकार वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत अपराध है, और इससे पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

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    देहरादून और मसूरी वन प्रभाग ने सभी कार्मिकों को जारी किए दिन-रात गश्त बढ़ाने के निर्देश। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर



    जागरण संवाददाता, देहरादून। दीपावली के आस-पास हर साल उत्तराखंड के वन में उल्लुओं को लेकर एक पुरानी, लेकिन खतरनाक प्रवृत्ति सक्रिय हो जाती है। तंत्र-अंधविश्वास के चलते उल्लुओं की खरीद-फरोख्त और कभी-कभी बलि देने तक के मामले सामने आ जाते हैं। इन घटनाओं को रोकने के लिए देहरादून वन प्रभाग ने हर साल की तरह इस बार भी संवेदनशील इलाकों में पेट्रोलिंग तेज कर दी है। रेंज और बीट स्तर पर कार्मिकों को रात्रि में सघन गश्त करने को कहा गया है। साथ ही स्थानीय समुदायों से संपर्क बढ़ाया गया है। ताकि किसी भी सूचना पर तत्काल कार्रवाई की जा सके।

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    देहरादून और मसूरी वन प्रभाग के अधिकारियों के अनुसार, रात्रि गश्त और संवेदनशील रेंजों पर फोकस करने को कहा गया है। दीपावली से पहले देहरादून के आस-पास की रेंजों (विशेषकर उन स्थानों जहां, उल्लू पाए जाते हैं) में वन प्रभाग ने रात-दिन गश्त बढ़ा दी है। वनकर्मियों को छुट्टियों पर रोक लगाकर फील्ड में तैनात रखा गया है। प्रभागीय वनाधिकारी मसूरी अमित कंवर ने बताया कि वन्यजीव तस्करी में संलिप्त नेटवर्क को रडार पर रखा गया है। मुखबिर तंत्र से उनकी हरकतों पर पैनी निगाह रखी जा रही है। प्रत्येक सूचना को गंभीरता से लेते हुए सख्त कार्रवाई की जाएगी।

    अंधविश्वास और तंत्र-साधना से जुड़ी मान्यता के बढ़ जाता है खतरा

    भारतीय परंपरा में उल्लू को देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है। दीपावली, जब लक्ष्मी-पूजन होता है, उस समय कुछ तांत्रिक परंपराओं में यह गलत धारणा फैलती है कि उल्लू की बलि या उसके अंगों से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं या धन की वर्षा होती है। यही गलत सोच उल्लू-शिकार की सबसे बड़ी वजह बनती है। देशभर में कुछ लोग दीपावली की अमावस्या रात पर तंत्र-सिद्धि या तांत्रिक अनुष्ठान करते हैं। ऐसे अनुष्ठानों में उल्लू की आंख, पंख, पंजा या खून को शुभ या शक्तिवर्धक माना जाता है। हालांकि, यह पूर्णतः अंधविश्वास है, लेकिन इसी के चलते तस्कर अवैध व्यापार चलाते हैं।


    एक लाख तक पहुंच जाती है उल्लू की कीमत

    दीपावली के समय इन अंधविश्वासों की वजह से बाजार में मांग बढ़ जाती है और एक उल्लू की कीमत 20 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक बताई जाती है। यह प्रजाति और आकार पर निर्भर करता है।

    कानूनी प्रतिबंध होने के बावजूद आसान शिकार पर सवाल

    उल्लू रात में उड़ने वाला पक्षी है। इसलिए आसानी से जाल में फंस जाता है। दीपावली से पहले ग्रामीण और अंधविश्वास-प्रभावित इलाके में शिकार के लिए अंधेरे और पटाखों की आवाज का उपयोग किया जाता है, ताकि पक्षी भ्रमित हो जाए। भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत उल्लू शेड्यूल-4 में आता है। शिकार या व्यापार करने पर तीन से सात साल की जेल और भारी जुर्माना हो सकता है। उल्लू पारिस्थितिक रूप से एक कीट-नियंत्रक और फसल-रक्षक पक्षी है। उल्लू कृषि क्षेत्रों में चूहे और कीट खाते हैं, जिससे किसानों को मदद मिलती है। तस्करी और शिकार से इनकी संख्या घट रही है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ने का खतरा बढ़ गया है। वाइल्डलाइफ ट्रैफिक और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के अनुसार, भारत में 30 से अधिक उल्लू प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से कई अब खतरे में हैं।