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    पहाड़ का पहला अरबपति, जिसके पास था इतना पैसा और सम्‍पत्ति कि नाम ही पड़ गया 'मालदार'

    By Nirmala BohraEdited By:
    Updated: Wed, 07 Sep 2022 01:53 PM (IST)

    Uttarakhand First Billionaire उनकी संपत्ति के निशान भारत के साथ ही नेपाल तक थे। इसलिए उनका नाम ही मालदार पड़ गया था। लोग उन्‍हें दान सिंह मालदार कहने लगे। उनके व्‍यापार की सूझबूझ की अंग्रेजी हुकूमत भी प्रशंसक थी।

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    Uttarakhand First Billionaire : दान सिंह बिष्‍ट 'मालदार'। Wiki

    टीम जागरण, देहरादून : Uttarakhand First Billionaire : देश के सबसे अमीर उद्योगपतियों में टाटा, बिरला, अड़ानी, अंबानी जैसे घरानों का नाम आता है। लेकिन क्‍या आप उत्‍तराखंड के पहले अरबपति के बारे में जानते हैं।

    आज हम आपको बताते हैं पहाड़ के पहले अरबपति के रूप में प्रसिद्ध दान सिंह बिष्‍ट के बारे में बताने जा रहे हैं। दान सिंह बिष्‍ट अकूत सम्‍पत्ति के मालिक थे। संपत्ति के निशान भारत के साथ ही नेपाल तक थे। इसलिए उनका नाम ही 'मालदार' पड़ गया था। लोग उन्‍हें दान सिंह 'मालदार' कहने लगे।

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    बचपन से ही मालदार नहीं थे दान सिंह

    • आज से करीब आधी सदी पहले देश के अरबपतियों के साथ पिथौरागढ़ के दान सिंह 'मालदार' का नाम भी आता था। दान सिंह बचपन से ही मालदार नहीं थे। उनका बचपन गरीबी में बीता था। लेकिन अपनी सूझबूझ से उन्‍होंने बड़ा साम्राज्‍य खड़ा किया।
    • उन्‍होंने कई गांव तक खरीद लिए थे। कई शहर और रजवाड़ों की रियासत तक खरीद ली थी। दान सिंह ने जिस भी व्‍यापार में कदम रखा वहां सफलता ने उनके कदम चूमे। उनके व्‍यापार की सूझबूझ की अंग्रेजी हुकूमत भी प्रशंसक थी।
    • उनका व्यापार जम्मू कश्मीर से लाहौर तक और पठानकोट से वजीराबाद तक फैला था। उत्‍तराखंड के पिथौरागढ़, टनकपुर, हल्द्वानी, नैनीताल जिले और असम व मेघालय में उनकी सम्‍पत्ति थ। काठमांडू में भी उनकी सम्‍पत्ति थी।
    • दान सिंह 'मालदार' लकड़ी के व्यापार में उतरे और‘टिम्बर किंग ऑफ इंडिया’ कहलाए। उनके लगाए चाय बागनों की चाय की महक से यूरोप तक पहुंची। दान सिंह ने बच्‍चों को शिक्षित करने के लिए कई स्‍कूल और कॉलेज खुलवाए। उन्‍होंने कई बच्‍चों को स्कॉलरशिप भी दी।
    • उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में भारत और नेपाल का बॉर्डर पर नेपाल के कस्बा जूलाघाट में देव सिंह बिष्ट अपनी छोटी सी दुकान में घी बेचा करते थे। वह मूल रूप से नेपाल के बैतड़ी जिले से थे। बाद में वह पिथौरागढ़ के क्वीतड़ गांव में आकर बस गए।
    • 1906 में देव सिंह के घर में उनके बेटे दान सिंह बिष्ट का जन्‍म हुआ। दान सिंह बचपन से ही एक तेज बुद्धि के थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इसीलिए दान सिंह ने पढ़ाई नहीं की।
    • महज 12 साल की उम्र में वह लकड़ी का व्यापार करने वाले एक ब्रिटिश व्यापारी के साथ बर्मा (आज के समय में म्यांमार) चले गए। ब्रिटिश व्यापारी के साथ दान सिंह ने लकड़ी व्यापार की बारीकियों समझीं।
    • बर्मा से लौटने के बाद उन्‍होंने पिता के साथ घी के बेचने का काम किया। घी बेच कर दान सिंह ने अच्‍छे रुपये कमाए और बेरीनाग में चाय का बगान खरीद लिया।
    • तब भारत सहित पूरे विश्‍व में चाय की दुनिया में चीन का बोलबाला था। दान सिंह ने चीन से ही चाय तैयार करना सीखा और उसे ही पछाड़ दिया। बेरीनाग की चाय का स्‍वाद देश के साथ ही विदेश में भी पसंद किया जाने लगा।
    • इसके बाद उन्‍होंने कड़ी मेहनत के दम पर लकड़ी समेत अन्य व्यापारों में नाम कमाया। 1924 में उन्‍होंने ब्रिटिश इंडियन कॉपरेशन लिमिटेड नामक कंपनी से शराब की भट्टी खरीदी और यहां पर अपने परिवार के लिए बंगला, कार्यालय व कर्मचारियों के रहने के लिए आवास बनाए। इसे बिस्‍ट स्‍टेट के नाम से जाना जाता था।
    • दान सिंह वर्ष 1945 में मुरादाबाद के राजा गजेन्द्र सिंह की जब्त हुई संपत्ति 2,35,000 रुपये में खरीदी। जिसके बाद वह चर्चा में आ गए थे। दान सिंह दिलखोर कर दान करते थे। जन कल्याण के लिए उन्होंने कई स्कूल, अस्पताल और खेल के मैदान बनवाए।
    • उन्होंने अपनी मां के नाम पर छात्रों के लिए सरस्वती बिष्ट छात्रवृत्ति ट्रस्ट की शुरुआत की। उन्‍होंने कई बच्‍चों की पढ़ाई में मदद की। उन्होंने 1951 में नैनीताल वेलेजली गर्ल्स स्कूल को खरीदा और इसका पुर्ननिर्माण कराया। दान सिंह ने यहां अपने स्‍वर्गीय पिता के नाम से यहां कॉलेज की शुरुआत की।

    दान सिंह के निधन के बाद सिमट गया व्यापार

    10 सितंबर 1964 को दान सिंह मालदार का निधन हो गया। दान सिंह बिष्ट का कोई बेटा नहीं था। मृत्‍यु के दौरान उनकी बेटियां कम उम्र की थीं, जिस वजह से उनकी कंपनी डीएस बिष्ट एंड संस की जिम्मेदारी छोटे भाई मोहन सिंह बिष्ट और उनके बेटों ने संभाली।

    जिसके बाद उनका खड़ा किया हुआ विशाल व्यापार साम्राज्य सिमटता चला गया। बता दें कि दान सिंह के जीवन पर जगमणि पिक्चर्स द्वारा एक हिंदी फिल्म भी बनाई गई थी। जिसके लिए दान सिंह से ही 70,000 रुपये उधार लिए थे।