जानिए उत्तराखंड में कितने हैं सैन्य वोटर और वीर नारियां, जो बदल सकते हैं राजनीतिक दलों की गणित
Uttarakhand Election 2022 प्रदेश की तकरीबन हर विधानसभा सीट पर सैनिक पृष्ठभूमि के और कार्यरत सैनिक (सर्विस वोटर) मतदाता हैं। विशेष तौर पर पर्वतीय सीटों पर ये प्रत्याशियों की हार और जीत में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। Uttarakhand Election 2022 उत्तराखंड एक सैनिक बहुल प्रदेश है। चाहे बात लोकतंत्र के महासमर की हो या फिर सीमा के रण की, पूर्व सैनिकों ने हमेशा ही अपनी उपस्थिति का पुरजोर अहसास कराया है। प्रदेश की तकरीबन हर विधानसभा सीट पर सैनिक पृष्ठभूमि के और कार्यरत सैनिक (सर्विस वोटर) मतदाता हैं। विशेष तौर पर पर्वतीय सीटों पर ये प्रत्याशियों की हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि पूर्व सैनिकों, सैनिकों व सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े मतदाताओं की बातों को प्रदेश में गंभीरतापूर्वक लिया जाता है।
प्रदेश के कुल मतदाताओं में से तकरीबन 13 प्रतिशत मतदाता सैन्य परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। यहां सैनिक व पूर्व सैनिकों की संख्या 2.75 लाख है। यह कुल वोटरों का 3.34 प्रतिशत है लेकिन इनमें यदि इनकेपरिवारों को भी शामिल कर लिया जाए तो यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 13 प्रतिशत के ऊपर पहुंच जाता है। यह संख्या ऐसी है जिसे कोई भी दल नजरंदाज करने की स्थिति में नहीं रहता। इसीलिए प्रमुख राजनीति दल इन्हें लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। अपनी-अपनी सरकारों के दौरान किए गए सैनिक कल्याण के कार्य व वादे इन पार्टियों के एजेंडे में शामिल रहते हैं।
हर परिवार से एक व्यक्ति सेना में
उत्तराखंड से लगभग हर परिवार से एक व्यक्ति सेना में है। इसीलिए चुनावों में यहां सैन्य कल्याण एक बड़ा मुद्दा रहता है। इस मुद्दे को भाजपा व कांग्रेस समेत सभी दल कैश करना चाहते हैं। इन दलों में बाकायदा पूर्व सैनिक अहम ओहदों पर हैं। यहां तक कि सैन्य प्रकोष्ठ भी बनाए गए हैं, जिनकी जिम्मेदारी भी सैनिक पृष्ठभूमि से जुड़े नेताओं के पास है। यही नहीं, सैन्य पृष्ठभूमि से जुड़े नेता भी दलों के प्रत्याशी बनते हैं। उत्तराखंड में सैनिक वोटर विशेष रूप से पौड़ी, टिहरी व अल्मोड़ा जिलों की विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं।
सभी दलों ने सैनिकों के लिए आयोजित किए सम्मेलन
मौजूदा विधानसभा चुनाव की ही बात की जाए तो भाजपा, कांग्रेस व आप समेत सभी दलों ने इस बार अपने चुनाव अभियान की शुरुआत सैनिक सम्मेलनों से की है। इन सम्मेलनों में पूर्व सैनिकों को सम्मानित भी किया गया है। यहां तक कि भाजपा ने तो सैन्यधाम का शिलान्यास करने के साथ ही देहरादून में वार मैमोरियल बनाने की दिशा में भी कदम बढ़ाए हैं।
मे.जनरल खंडूडी व ले. जनरल टीपीएस रावत ने खेली राजनीतिक पारी
प्रदेश में पूर्व सैनिकों की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सैनिक पृष्ठभूमि के नेताओं को भी राजनीतिक दलों ने पूरी तवज्जो दी है। मेजर जनरल पद से सेवानिवृत्त भुवनचंद्र खंडूडी प्रदेश के मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री के पद तक पहुंचे। वहीं, अन्य सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल पद से सेवानिवृत्त टीपीएस रावत प्रदेश सरकार में मंत्री व सांसद रहे।
जिलेवार पूर्व सैनिक वोटर व वीर नारियां
अल्मोड़ा - 14391
बागेश्वर - 11524
चम्पावत - 4995
पिथौरागढ़ - 26222
नैनीताल - 16119
ऊधमसिंह नगर - 10680
चमोली - 15524
देहरादून - 32677
पौड़ी - 30098
हरिद्वार - 6054
रुद्रप्रयाग - 5249
टिहरी - 7015
उत्तरकाशी - 1325
कुल योग- 181833
कुल सर्विस वोटर- 93964
कुल सैन्य पृष्ठभूमि के वोटर - 275796
सर्विस वोटरों पर एक नजर
उत्तरकाशी - 3388
चमोली - 10396
रुद्रप्रयाग - 5388
टिहरी गढ़वाल - 5783
देहरादून - 9805
हरिद्वार - 2179
पौड़ी - 16170
पिथौरागढ़ - 14591
बागेश्वर - 4607
अल्मोड़ा - 7228
चम्पावत - 3028
नैनीताल - 5423
यूएस नगर - 5494
कुल - 93964
प्रमुख समस्याएं
- पर्वतीय जिलों में सीएसडी कैंटीन की पर्याप्त सुविधा न होना।
- स्वास्थ्य सेवाओं के लिए हर जिले में सैनिक अस्पताल न होना।
- जिला सैनिक कल्याण कार्यालयों का मुख्य नगरों में होना।
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