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    सत्ता के गलियारे से: सताने लगा फिर नमो मैजिक का भय

    By Raksha PanthriEdited By:
    Updated: Mon, 08 Nov 2021 10:18 AM (IST)

    Uttarakhand Election 2022 हरीश रावत भरसक कोशिश कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में उनका सामना प्रदेश भाजपा से हो न कि भाजपा के सबसे बड़े चेहरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से। 2014 के बाद लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव सभी में नमो मैजिक का असर साफ दिखा।

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    सत्ता के गलियारे से: सताने लगा फिर नमो मैजिक का भय।

    विकास धूलिया, देहरादून। कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के मुखिया हरीश रावत भरसक कोशिश कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में उनका सामना प्रदेश भाजपा से हो, न कि भाजपा के सबसे बड़े चेहरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से। 2014 के बाद लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव, सभी में नमो मैजिक का असर साफ दिखा। दो लोकसभा चुनावों में पांचों सीटें भाजपा के खाते में और कांग्रेस का सूपड़ा साफ। फिर पिछले विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीट जीत भाजपा ने कांग्रेस को 11 पर सिमटा दिया। रावत भलीभांति समझते हैं कि उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव रावत बनाम मोदी हुआ तो कांग्रेस के लिए भारी दिक्कत होगी। इसीलिए कह रहे हैं कि मोदी बड़े नेता हैं, उनका मुकाबला प्रदेश भाजपा के नेताओं से है, मोदी से नहीं। चुनाव से पहले मोदी केदारनाथ पहुंचे तो जिस तरह की हड़बड़ाहट कांग्रेस में नजर आई, उससे साफ हो गया कि रावत की आशंका गलत नहीं।

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    तो यह पड़ोसी की दरियादिली का असर

    केंद्र ने पेट्रोल की कीमत में पांच रुपये और डीजल पर 10 रुपये की रियायत दी तो भाजपाशासित राज्यों ने भी इसमें योगदान देकर उपभोक्ताओं को राहत देने में देरी नहीं की। उत्तराखंड सरकार ने वैट में कमी करते हुए पेट्रोल की कीमत दो रुपये घटा दी। इससे पेट्रोल की कीमत सात और डीजल की 10 रुपये कम हो गई, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के कदम ने उत्तराखंड को सांसत में डाल दिया। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने पेट्रोल में सात रुपये और डीजल में दो रुपये की रियायत दी। इससे हुआ यह कि दो पड़ोसी राज्यों में पेट्रोल व डीजल की कीमत में काफी फर्क आ गया। उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश के मुकाबले पेट्रोल पांच व डीजल दो रुपये महंगा हो गया। जब व्यवहारिक दिक्कत समझ आई तो उत्तराखंड में भी पेट्रोल पर कुल सात रुपये और डीजल पर दो रुपये कम करने का आदेश सरकार को देना पड़ा।

    भाजपा के संकटमोचक कांग्रेस मूल के नेता

    कांग्रेस से आए नेता यूं तो अकसर भाजपा के लिए परेशानी का सबब बने हैं, लेकिन इनमें से कुछ पार्टी और सरकार के लिए संकटमोचक की भूमिका भी निभा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के केदारनाथ पहुंचने से ठीक पहले चारधाम देवस्थानम बोर्ड को लेकर चल रहा विवाद इतना तूल पकड़ गया कि भाजपा सरकार व संगठन असहज नजर आए। तब पंडा-पुरोहित समाज को मनाने के लिए जो दो कैबिनेट मंत्री सक्रिय हुए, वे थे सुबोध उनियाल और हरक सिंह रावत। दोनों कांग्रेस मूल के हैं, पांच साल पहले भाजपा में आए थे। प्रधानमंत्री का कार्यक्रम कुशलता से संपन्न हो गया, किसी तरह का कोई विरोध नहीं, अब इन दोनों को क्रेडिट तो जाता ही है। इससे पहले यशपाल आर्य के कांग्रेस में वापसी के समय विधायक उमेश शर्मा काऊ ने दावा किया था कि वह आर्य को रोकने की कोशिश कर रहे थे। काऊ भी पहले कांग्रेस में ही थे।

    हरदा, 2016 में किसने रोके नए जिले

    उत्तराखंड को अलग राज्य बने अब 21 साल होने जा रहे हैं। 10 साल पहले भाजपा सरकार ने चार नए जिले बनाने की घोषणा की। तब मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक थे, लेकिन 2012 में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद यह घोषणा ही रह गई। फिर 2016 में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक साथ नौ नए जिले बनाने की घोषणा की, यह भी धरातल पर नहीं उतरी। अब रावत ने फिर नए जिलों का मुद्दा उछाल दिया है। रावत ने सफाई दी कि नौ नए जिले 2016 में ही बन जाते, लेकिन तब एक कैबिनेट मंत्री ने इस्तीफे की धमकी दे डाली। हरदा ने वादा किया कि 2022 में सत्ता में आते ही नए जिलों का गठन कर दिया जाएगा। खैर, सब जानते हैं कि यह तो चुनावी शिगूफा है। जनता की दिलचस्पी यह जानने में ज्यादा है कि आखिर 2016 में किस मंत्री ने इस्तीफे की धमकी दी।

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