उत्तराखंड की सात बड़ी आपदा, हजारों की गई जान; उत्तरकाशी को मिले सबसे ज्यादा जख्म
उत्तराखंड में हर साल आपदाएं आती हैं जिनमें कई लोगों की जान जाती है। 1880 में नैनीताल भूस्खलन से लेकर 2021 की रैणी आपदा तक राज्य ने कई बड़ी आपदाएं देखी हैं। उत्तरकाशी में 1991 में भूकंप आया जबकि पिथौरागढ़ के मालपा में भूस्खलन हुआ। 2013 की केदारनाथ आपदा सबसे भयावह थी। हाल ही में धराली में जलप्रलय आया है जिससे पुरानी आपदाओं के जख्म हरे हो गए हैं।

ऑनलाइन डेस्क, देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय जिले लगातार आपदा की चपेट में आ रहे हैं। मानसून सीजन में बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं हर साल तबाही लाती हैं। हर साल सैकड़ों लोग इन आपदाओं में जान गंवाते हैं। पिछले दिनों उत्तरकाशी के धराली में भंयकर जलप्रलय आया। जिसने उत्तराखंड के लोगों के पुरानी आपदाओं के जख्म हरे कर दिए। आइए जानते हैं उत्तराखंड की सात बड़ी प्रकृतिक आपदाओं के बारे में।
नैनीताल भूस्खलन
18 सितंबर 1880 को नैनीताल को प्रकृतिक आपदा से गहरा जख्म मिला। दो दिन से लगातार बारिश से मल्लीताल क्षेत्र में भारी भूस्खलन हुआ। इस दौरान 151 लोग जिंदा दफन हो गए। भूस्खलन का मलबा आने से फ्लैट्स मैदान का निर्माण हुआ था और नैनादेवी मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था।
उत्तरकाशी भूकंप
20 अक्टूबर 1991 को 6.8 रिक्टर स्केल का उत्तरकाशी में भूकंप आया जो कई जिंदगियों को निगल गया। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक, उस घटना में 768 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों घर तबाह हो गए थे।
मालपा भूस्खलन
18 अगस्त 1998 में पिथौरागढ़ जिले के मालपा गांव में चट्टान दरकने से 225 लोगों की मौत हुई थी। मिट्टी और चट्टानों के मलबे ने शारदा नदी का जल प्रवाह रोक दिया था। जिससे कई गावों में पानी घुस गया था।
चमोली भूंकप
1999 में चमोली जिले में 6.8 रिक्टर स्केल का भूकंप आया। इस घटना में 100 लोगों की मौत हुई थी। इससे रुद्रप्रयाग जिले में भी बड़े स्तर पर क्षति हुई थी। भूकंप के चलते नदी नाले का रुख बदल गया था। जिस कारण कई गांवों में पानी घुस गया था। सड़कों और इमारतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गईं थीं।
केदार आपदा
2013 में आई केदारनाथ आपदा उत्तराखंड के इतिहास में सबसे भयावह घटना है। जिसने हजारों लोगों की जान ले ली। कई महीने तक लोगों की खोज में अभियान चलाए गए। सालों तक वहां दफन लोगों के नरकंकाल मिलते रहे।
रैणी आपदा
साल 2021 में चमोली जिले में आई रैणी आपदा में सौ से ज्यादा लोग लापता हो गए थे। 206 व्यक्तियों ने अपनी जान गंवा दी थी। विज्ञानियों ने यह भी बताया कि ऋषिगंगा कैचमेंट से निकली जलप्रलय महज एक घटना नहीं, बल्कि इसमें कई घटनाक्रम शामिल थे। वाडिया संस्थान के अध्ययन के मुताबिक, करीब 5600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रौंथी पर्वत से जब हिमखंड टूटा तो नीचे रौंथी गदेरे (ऊंचाई समुद्र तल से 3800 मीटर) तक पहुंचते हुए मलबे का वेग 55 मीटर प्रति सेकेंड था। इसी ने ही आगे चलकर तबाही मचाई।
धराली आपदा
5 अगस्त 2025 को खीरगंगा के किनारे बसे गंगोत्री धाम के प्रमुख पड़ाव धराली गांव में भारी तबाही हुई। बताया जा रहा है कि यह बादल खीरगंगा नदी के ऊपरी क्षेत्र में कहीं फटा, हालांकि अभी आपदा का कारण स्पष्ट नहीं हुआ है। दोपहर करीब डेढ़ बजे अचानक खीरगंगा नदी में पानी व मलबे के साथ सैलाब आया और इस सैलाब में धराली बाजार समेत आसपास के होटल, होमस्टे ताश की पत्तों की तरह ढह गये। अभी तक सात लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। 68 लोग अब भी लापता हैं।
ग्लेशियरों के मलबे के ऊपर बसे चार दर्जन से अधिक गांव
चिंताजनक है कि गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग विशेषकर भटवाड़ी से गंगोत्री के बीच लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर चार दर्जन से अधिक गांव ग्लेशियरों के मलबे के ऊपर बसे हैं। वैज्ञानिकों की नजर में 100 किलोमीटर लंबे भागीरथी जोन को बेहद संवेदनशील माना गया है, जहां हर तरह की गतिविधियों पर नियंत्रण की आवश्यकता है। वर्ष 1978, 2010, 2011, 2012 व 2013 और 2023-24 में भी यहां पर भीषण बाढ़ आ चुकी है।
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