उत्तराखंड कैबिनेट के फैसले से इन योजनाओं के लाभार्थियों को झटका, 15 प्रतिशत घटी सब्सिडी
उत्तराखंड कैबिनेट ने घस्यारी कल्याण योजना और साइलेज व दुधारू पशुपोषण योजना में सब्सिडी को 75% से घटाकर 60% कर दिया है। यह निर्णय अधिक लोगों को योजनाओं ...और पढ़ें

सहकारिता व डेरी विकास विभाग की इन योजनाओं में अभी तक मिल रही थी 75 प्रतिशत सब्सिडी. Concept
राज्य ब्यूरो, देहरादून। सहकारिता विभाग की घस्यारी कल्याण योजना और डेरी विकास विभाग की साइलेज व दुधारू पशुपोषण योजना में अब लाभार्थियों को 75 के स्थान पर 60 प्रतिशत सब्सिडी मिलेगी। कैबिनेट ने दोनों विभागों की इन योजनाओं में मिलने वाली सब्सिडी कम करने से संबंधित प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। बताया गया कि ज्यादा लोगों को इन योजनाओं से लाभान्वित करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया है।
सहकारिता विभाग ने महिलाओं के सिर से पशु चारे का बोझ कम करने के उद्देश्य से पूर्व में मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना प्रारंभ की। इसके तहत महिलाओं व पशुपालकों को गांव में ही पशु चारा उपलब्ध कराया जा रहा था। इसी तरह डेरी विकास विभाग भी पशुचारे की आपूर्ति के दृष्टिगत साइलेज व दुधारू पशुपोषण योजना संचालित कर रहा था। दोनों योजनाओं में लाभार्थियों को 75-75 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही थी। इस बीच पशुचारे की मांग में निरंतर वृद्धि होने के दृष्टिगत ज्यादा से ज्यादा लोग इससे लाभान्वित हों, इसके लिए दोनों योजनाओं में पशु चारे पर सब्सिडी में 15 प्रतिशत कमी की गई है।
अब संस्थान बना सगंध पौधा केंद्र
राज्य में सगंध खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे सगंध पौधा केंद्र का नाम बदलकर अब परफ्यूमरी एवं सगंध अनुसंधान संस्थान कर दिया गया है। कैबिनेट ने कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग के इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी।
बता दें कि उद्यान विभाग के अंतर्गत सगंध पौधा केंद्र की स्थापना वर्ष 2002-03 में की गई थी। केंद्र के प्रयासों से राज्य में सगंध खेती के 109 क्लस्टर संचालित हो रहे हैं, जिनसे 28,000 किसान जुड़े हैं। साथ ही अब महक क्रांति नीति के क्रियान्वयन का जिम्मा भी उसे सौंपा गया है। इसके अलावा टिमरू इत्र व परफ्यूम के साथ ही अन्य सगंध उत्पादों के मामले में इस केंद्र ने अहम भूमिका निभाई है। अब उसे संस्थान में तब्दील करने का निर्णय लिया गया है। यह अब कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग का स्वायत्त संस्थान होगा। इससे जहां संगध खेती की रफ्तार बढ़ेगी, वहीं सगंध क्षेत्र में शोध-अनुसंधान में तेजी आएगी।

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